The Lallantop
Advertisement

RSS के अंदर अपने विरोधियों को कैसे खत्म करते थे अटल बिहारी

अटल के अजातशत्रु होने के पीछे सिर्फ उनका व्यवहार ही नहीं, बल्कि राजनीतिक चतुराई भी थी.

Advertisement
Img The Lallantop
RSS के एक कार्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी
pic
विशाल
22 अगस्त 2018 (Updated: 22 अगस्त 2018, 07:23 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी में तमाम खासियतें थीं. जिस एक बात का ज़िक्र हमेशा प्रमुखता से किया जाता है, वो ये कि वो सभी सहयोगियों और यहां तक कि विरोधियों को भी साधकर चलते थे. भारतीय राजनीति में उनके विरोधी मिल जाएंगे, लेकिन उनके आलोचन कम मिलते हैं. उनका ये गुण उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले भी देखने को मिलता है, जब वो इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस की इंदिरा सरकार की खिलाफत करते थे.

इमरजेंसी के दौरान अटल का एक किस्सा है कि उन्होंने इंदिरा सरकार के गृह-राज्यमंत्री ओम मेहता से मुलाकात की. जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के महासचिव राम बहादुर राय ने उनसे पूछा कि क्या मेहता उनसे मिलने आए थे, तो अटल ने कहा, 'नहीं, वो बड़े आदमी हैं. वो नहीं आए थे मुझसे मिलने. मैं उनसे मिलने गया था.'

फिर अपनी पत्रकारिता के दिनों में राय ने अटल के बारे में कहा, 'वो एक उदार नेता हो सकते हैं, लेकिन फैसले लेते समय विचारधारा उनके लिए ज़्यादा मायने नहीं रखती.'

atal-rss

इमरजेंसी के दौरान अटल ने ही राम बहादुर राय से कहा था, 'ABVP को अपनी गलती मान लेनी चाहिए. आपको सरकार से माफी मांग लेनी चाहिए.' वो अलग बात है कि राम बहादुर राय ने माफी नहीं मांगी. लेकिन रोचक तो ये जानना है कि जिन दिनों अटल अपने ही खेमे को माफी मांगने की सलाह दे रहे थे, उन दिनों संघ उनके बारे में क्या सोचता था. इसका जवाब उल्लेख एनपी की किताब 'द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशयन ऐंड पैराडॉक्स' में मिलता है. उल्लेख लिखते हैं,

'संघ के भीतर ही कुछ लोग मानते थे कि इमरजेंसी के दौरान बालासाहब देवरस का इंदिरा गांधी के प्रति जो रवैया था, उसके पीछे अटल की बड़ी भूमिका थी. अटल मानते थे कि अभी शांत रहा जाए और सही मौके पर लड़ा जाए. ऐसे में स्वयंसेवकों पर गाज गिरी, लेकिन अटल और देवरस ने सरकार से बातचीत के रास्ते खुले रखे.'

'इसी दौरान संघ का एक खेमा वाजपेयी को शांत रहने वाला, खुशनुमा, लेकिन महत्वाकांक्षी नेता के तौर पर देखता था. उनके हिसाब से वाजपेयी संगठन और विचारधारा के मामलों में बहुत परवाह नहीं करते थे, जबकि उस समय विचारधारा की मांग उग्र हिंदुत्व और कांग्रेस-विरोध था. अंदरवालों के लिए अटल महज़ एक अच्छे वक्ता थे, जिसने बाहर लोगों में लोकप्रिय होने के बूते संगठन में अपनी जगह बना ली थी.'

atal-rss1

'संघ में अटल को इस नज़रिए से भी देखने वाले लोग थे, जिनके मुताबिक अटल ने संगठन में अपने विरोधियों को सोच-समझकर बदनाम किया. राय याद करते हैं कि अटल 'ऑर्गनाइज़र' और 'पांचजन्य' के संपादकों के सामने ऐसी कहानियां सुनाते थे, जो पार्टी में उनके विरोधियों की छवि खराब करती थी. इससे विरोधियों को खत्म करना आसान हो गया. वहीं लोगों में उनकी छवि नर्म व्यक्ति की रही. बाद में RSS ने उनकी इस छवि को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया.'


ये भी पढ़ें:

जब अटल ने इंदिरा से कहा, 'पांच मिनट में आप अपने बाल तक ठीक नहीं कर सकतीं'

जब अटल बिहारी थाने में जाकर बोले- मेरे खिलाफ मुकदमा लिखो

जब वाजपेयी के साथ बैठे मुशर्रफ खाना खा नहीं, बस देख रहे थे

मेट्रो का उद्घाटन करने गए थे वाजपेयी और फिर अपने ही पैसे से खरीदा टिकट

कांग्रेस की सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार थे अटल बिहारी वाजपेयी, बस एक शर्त थी

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement