समंदर में अकेले फंसे नौसैनिक अभिलाष को बचाए जाने की कहानी जानकर गला सूख जाता है
जिन हालात में वो थे, उसमें तो कोई आम आदमी निराशा में खत्म हो जाए.

Abhilash Tomy Rescued.एक रोमांचक समुद्री सफर की 50वीं सालगिरह. 18 जहाजी. 30,000 मील का सफर. चुनौती- पूरी दुनिया का चक्कर लगाना. जो सबसे पहले ये कर दिखाएगा, वो होगा गोल्डन ग्लोब रेस का विनर. इस इंटरनैशनल मुकाबले में एक इंडियन भी था- 39 साल का जहाजी अभिलाष टोमी.
दो दिन से ये शब्द दुनियाभर में ट्रेंड हो रहा है. क्यों?
जहां आज डेनमार्क और स्वीडन हैं, वहां कभी समंदरी लुटेरों का एक खतरनाक कबीला बसता था. वो जहाज पर बैठकर दूसरी जगहों को जाते. वहां से लूट-मारकर घर लौट आते. यही उनका पेशा था. इन जहाजी लुटेरों का एक नियम था मगर. कुछ भी हो, पश्चिम की ओर नहीं जाना. उन्हें लगता, पश्चिम में बस पानी है. उनके लिए वेस्ट माने अंतहीन समंदर की दिशा. जहां मीलों धुंध रहती है. सूरज नहीं निकलता. और जहां जान लेने वाले तूफान आते हैं. फिर उनमें एक आदमी हुआ- रेगनर लोथब्रोक. वो पहला आदमी था, जिसने अपना जहाज पश्चिम की ओर बढ़ाया. वहां की जमीन खोजी. रेगनर वाइकिंग्स था. मतलब- समुद्री लुटेरा. रेगनर की पहचान एक खौफनाक लुटेरे की है. मगर देखिए, तो लुटेरे से ज्यादा वो एक महान जहाजी था. बहादुर और निडर जहाजी.

ये रॉबिन की वही नाव है, जिसपर बैठकर उन्होंने अकेले पूरी दुनिया का चक्कर लगाया. गोल्डन ग्लोब रेस के लिए ये एक बेंचमार्क बन गया. आज भी जो इसमें हिस्सा लेते हैं, वो उन्हीं सुविधाओं और उन्हीं तकनीकों-मशीनों के साथ सफर करते हैं, जो रॉबिन ने इस्तेमाल की थीं (फोटो: टेरी गिब्सन)
उसने 312 दिनों में अकेले दुनिया का चक्कर लगा लिया था ऐसे ही बहादुर जहाजियों के लिए 1968 में एक मुकाबला शुरू हुआ. नाम था- गोल्डन ग्लोब रेस. जीतने के लिए जहाज में बैठकर पूरी दुनिया का चक्कर लगाना था. अकेले. बिना किसी की मदद लिए. उस साल नौ लोगों ने इस रेस में हिस्सा लिया. बस एक इसे पूरा कर पाया. उसका नाम था- रॉबिन नॉक्स जॉन्सटोन. रॉबिन को 312 दिन लगे ये कारनामा कर दिखाने में. उनके साथ रेस शुरू करने वालों में से किसी की नाव डूब गई, किसी ने रेस छोड़ दी, तो किसी ने आत्महत्या कर ली. फिर तो ये दुनियाभर के जहाजियों का अल्टिमेट ड्रीम हो गया. एक ऐसी रेस, जिसे जीतने की ख्वाहिश लोग सालो-साल पालते हैं. ये महसूस किया गया कि नई-नई तकनीकों की वजह से शायद इस रेस का रोमांच खत्म हो जाएगा. इसीलिए नियम बना कि रॉबिन ने अपनी नाव पर जितनी तकनीक और जैसी मशीनें इस्तेमाल की थीं, आप उससे ज्यादा इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसीलिए आप जीपीएस की मदद नहीं ले सकते. कम्यूनिकेशन के लिए बस एक रेडियो का सहारा होता है.

ये अभिलाष हैं. 2013 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से पुरस्कार लेते हुए (फोटो: abhilashtomy.com)
अभिलाष टोमी कौन हैं? अभिलाष टोमी. केरल में पैदा हुए. पिता भी नेवी अफसर. साल 2000 में अभिलाष ने भी नेवी जॉइन की. अभिलाष ने 2018 के गोल्डन ग्लोब रेस में हिस्सा लिया. पूरे एशिया से वो अकेले थे इस रेस में हिस्सा लेने वाले. 1 जुलाई को फ्रांस से रेस शुरू हुई. साथ में 1,000 रेडी-टू-ईट मील्स, 300 लीटर पानी और 140 लीटर ईंधन लेकर अभिलाष अपनी नाव 'थुरिया' में बैठकर सफर पर रवाना हुए.
ये स्टोरी लिखे जाने तक इसे शुरू हुए 85 दिन, 22 घंटे, 35 मिनट और 57 सेकेंड हो चुके हैं. जो पांच लोग इस रेस में सबसे आगे थे, उनमें अभिलाष का नाम तीसरे नंबर पर था. अब वो इस रेस से बाहर हो चुके हैं. एक समुद्री तूफान ने उन्हें रेस से बाहर कर दिया. उनकी नाव तूफान में फंस गई. अभिलाष बुरी तरह से जख्मी हो गए. उन्हें बचा पाना बहुत मुश्किल लग रहा था. बहुत जद्दोजहद के बाद 24 सितंबर को उन्हें बचा लिया गया. ये रेस्क्यू ऑपरेशन बहुत मुश्किल था. जिस जगह पर अभिलाष फंसे हुए थे, वो बहुत मुश्किल जगह थी. एक किस्म का ब्लैक होल. जहां से बाहर निकलने की उम्मीद बहुत धुंधली थी. इसीलिए इस रेस्क्यू ऑपरेशन की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

ये अभिलाष की नाव है थुरिया. तूफान में फंसकर इसकी पाल टूट गई.
तूफान में क्या हुआ? 21 सितंबर को अभिलाष हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में थे. उनकी नाव तूफान में फंस गई. नाव की पाल टूट गई. अभिलाष को काफी चोट भी आई. पीठ में इतनी तेज चोट आई कि अभिलाष बिल्कुल पस्त हो गए. वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं रहे. उनके पास जो प्राइमरी सैटेलाइट फोन था, वो भी खराब हो गया. 21 तारीख की रात 10.44 मिनट पर अभिलाष ने किसी तरह एक सेटेलाइट मेसेजिंग सिस्टम से इमरजेंसी मेसेज भेजा. रेस के ऑर्गनाइजर्स को भेजे गए इस मेसेज में लिखा था-
खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूं. कल दिन में फोन और नाव की पाल देखने की कोशिश करूंगा.ठीक तीन मिनट बाद उनका दूसरा मेसेज आया-
पीठ बुरी तरह अकड़ गई है. ठीक-ठीक हालत बता पाना मुश्किल है.अभिलाष ने मेसेज के साथ अपनी लोकेशन भी बताई थी. फिर अगली सुबह उनका एक और मेसेज आया-
मैंने EPIRB (इमरजेंसी पॉजिशन इंडिकेटिंग रेडियोबीकन स्टेशन) ऐक्टिवेट कर दिया है. मेरे लिए चलना भी बहुत मुश्किल है. शायद स्ट्रेचर की जरूरत पड़े. मैं चल नहीं सकता. नाव के अंदर सुरक्षित हूं. सैटेलाइट फोन भी बंद है.
कैसे शुरू हुआ रेस्क्यू ऑपरेशन? अभिलाष नाव के अंदर अपने बिस्तर पर बड़े थे. एक किस्म से अपाहिज की हालत में. हिल भी नहीं पा रहे थे. न खा पा रहे थे, न कुछ पी ही पा रहे थे. अभिलाष की लोकेशन ऑस्ट्रेलिया के पर्थ से करीब 2,000 मील दूर थी. इसीलिए अभिलाष की तलाश में एक एयरक्राफ्ट ने ऑस्ट्रेलिया से उड़ान भरी. भारत ने मॉरीशस के अपने ठिकाने के एक सैनिक विमान भेजा. भारतीय नौसेना के जहाज 'INS सतपुड़ा' और टैंकर INS ज्योति मिशन को भी अभिलाष की मदद के लिए रवाना किया गया. अभिलाष का सैटेलाइट फोन खराब हो गया था. एक दूसरा सैटफोन बी था, मगर अभिलाष वहां तक चलकर नहीं जा सकते थे. जरूरी था कि वो कम्यूनिकेट कर सकें. फिर पता चला कि फ्रांस का एक जहाज 'ओसिरिस' उस इलाके में है. उससे मदद मांगी गई. फ्रांस तैयार भी हो गया. मगर उसे वहां तक पहुंचने में कुछ दिन लग जाते. ऑस्ट्रेलिया नेवी की भी मदद ली जा सकती थी, मगर उसमें भी कम से कम पांच दिन लग जाते. फिर और विकल्प तलाशे जाने लगे. ये देखा गया कि क्या उस इलाके के आस-पास से कोई जहाज गुजर रहा है, ताकि उसकी मदद ली जा सके.I might be wrong - But I think Australia looks after Search and Rescue for the greatest area of the ocenas of any country on earth.https://t.co/K1uQVY1YPx
— Prof Marc Tennant (@MarcTennant) September 24, 2018
Fantastic to see action moving. Fantastic to see techology already giving a chance of success!

अभिलाष घायल थे. अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहे थे. इसीलिए उन्हें रेस्क्यू कर पाना ज्यादा मुश्किल साबित हो रहा था.
कई देश साथ जुटे थे एक तरफ भारत. दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया का जॉइंट रेस्क्यू कॉर्डिनेशन सेंटर. और फिर फ्रांस. सब मिलकर अभिलाष को बचाने की कोशिश में लग गए. इनके अलावा गोल्डन ग्लोब रेस में हिस्सा ले रहे एक और जहाजी ग्रेगर मैकगुकिन भी अपने स्तर पर जुटे थे. ग्रेगर आयरलैंड के हैं और रेस में चौथे नंबर पर चल रहे थे. उनकी भी नाव उसी तूफान में फंस गई थी. ग्रेगर से कहा गया था कि वो अभिलाष के पास पहुंचकर उनकी मदद करें. फिर आगे की मदद पहुंचने से पहले ग्रेगर के सैटेलाइट फोन के सहारे अभिलाष को मेडिकल सलाह दी जा सकती थी.
HMAS Ballarat is on its way assist an injured solo yachtsman, approximately 1800 nautical miles off the WA coast. The sailor, an officer in the Indian Navy is understood to have suffered a serious back injury when his ten metre vessel, “Thuriya” was de-masted in extreme weather. pic.twitter.com/e5zgO6F7bj
— RoyalAustralianNavy (@Australian_Navy) September 23, 2018

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ से तकरीबन 2,000 मील दूरी पर फंसी थी अभिलाष की नाव. ये मैप में देखिए (फोटो: न्यूज स्काई)
खराब मौसम, जख्मी नाव और बिस्तर पर पड़े अकेले अभिलाष समंदर में खराब मौसम की वजह से रेस्क्यू में दिक्कत आ रही थी. समंदर में बहुत उफान था. पांच-पांच मंजिल ऊंची लहरें उठ रही थीं. इतनी ऊंची लहरों की वजह से अभिलाष की नाव थुरिया भी काफी डिस्टर्ब थी. ये सारी चीजें अभिलाष की हालत और नाजुक बना रही थीं. एक डर ये भी था कि कहीं अभिलाष की नाव समंदर में पलट न जाए.
अभिलाष को किसने रेस्क्यू किया? 24 सितंबर की तड़के सुबह करीब साढ़े पांच बजे फ्रांस का जहाज 'ओसिरिस' अभिलाष के पास पहुंच गया. जहाज का क्रू अभिलाष को उनकी नाव से उठाकर अपने जहाज पर लाया. उन्हें फर्स्ट ऐड दिया गया. फिर उन्हें न्यू ऐम्सटर्डम आइलैंड ले जाया गया. ग्लोबल ग्लोब रेस रोजाना अभिलाष के रेस्क्यू ऑपरेशन का बुलेटिन निकालता.#IndianNavy
— SpokespersonNavy (@indiannavy) September 24, 2018
is truly indebted to all the agencies involved in the rescue op of Cdr Abhilash Tomy KC esp. @Australian_Navy
& #FVOsiris
for their timely & proactive help - Adm Sunil Lanba CNS @DefenceMinIndia
@ggr2018official
@nsitharaman
@SpokespersonMoD
@HCICanberra
@AusHCIndia

अमूल ने ये स्पेशल ऐड तब निकाला था, जब अभिलाष ने 2013 में नॉन-स्टॉप दुनिया का चक्कर पूरा किया था. सोलो, बिना किसी मदद के. ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय और दूसरे एशियाई थे.
नौसिखिया नहीं हैं अभिलाष टोमी अभिलाष को समंदर की आदत है. 18 साल के अपने नेवी करियर में वो 52,000 समुद्री मील से ज्यादा का सफर कर चुके हैं. मार्च 2013 में उन्होंने बिना रुके समंदर के रास्ते पूरी दुनिया का चक्कर लगाया था. ऐसा करने वाले वो पहले हिंदुस्तानी थे. अपने 151 दिन लंबे सफर में उन्होंने लगभग 23,000 समुद्री मील का सफर तय किया. तब भी वो अकेले थे. इस सफर के आखिरी 15 दिन बहुत मुश्किल थे. अभिलाष के पास बस 15 लीटर पानी ही बचा था. तब उन्होंने बारिश का पानी जमा करके काम चलाया. जब वो इस मिशन से लौटे, तो राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उनसे मिले. इस बहादुरी के लिए उन्हें कीर्ति चक्र भी दिया गया. ये 39 साल बाद था, जब भारतीय नौसेना के किसी शख्स को कीर्ति चक्र मिला था.

ये अभिलाष के एक समुद्री सफर की तस्वीर, जो उन्होंने अपनी वेबसाइट abhilashtomy.com पर पोस्ट की है.
आई विश आई वॉज़ सेलिंग अगेन अभिलाष इस बार कामयाब नहीं हो सके. मगर उनकी काबिलियत ही थी कि गोल्डन ग्लोब रेस ने उन्हें इस मुकाबले में शामिल होने का न्योता भेजा. समंदर ने कई नाविकों की जान ली है. पहले जब नाविक जहाज लेकर निकलते थे, तो अलविदा कहकर जाते थे. उनसे मुहब्बत करने वाली लड़कियां प्यार की निशानी में उन्हें अपने बालों का कतरा काटकर देती थीं. ऐसे सुनहरे बालों और उन्हें सहलाकर प्रेमिकाओं को याद करने वाले जहाजियों की कई सारी कहानियां हैं. उन्हीं जहाजियों ने समंदर के रास्ते दुनिया खोज निकाली. ये भारत, वो अमेरिका. ये सब इन्हीं जहाजियों की तलाश हैं. एक सफर बुरा जाने पर जहाजी समंदर से नहीं उखड़ते. वो गाते हैं-
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