नक्सली हमले के बाद अपने ही साथियों के शवों को सीधे छूने से क्यों बचते हैं जवान?
नक्सली हमले का वो सच, जो अमानवीय है लेकिन जिंदा रहने के लिए जरूरी है.
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सर्च ऑपरेशन के दौरान की तस्वीर (फोटो- PTI)
इस वक्त देश भर में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले की चर्चा है. इस हमले में 22 जवान शहीद हो गए और 31 जवान घायल हैं. 1 जवान अभी भी लापता है, जिसकी तलाश की जा रही है. 3 अप्रैल को नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच ये मुठभेड़ हुई थी, लेकिन 4 अप्रैल को ही उन जवानों के शव मौके से उठाए जा सके जो शहीद हो गए थे. शहीदों के शव को उठाने से पहले भी सुरक्षाबलों को बहुत तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती हैं.
शवों के नीचे बम लगा देते हैं नक्सली
बीजापुर में 22 जवान शहीद हुए. नक्सली इन शहीदों के हथियार लूट कर ले गए. शहीदों की बुलेटप्रूफ जैकेट, उनकी एसेसरीज़ और उनके जूते तक नक्सली लूट कर ले गए. जब इन जवानों के शवों को मौके से लेने के लिए जब सुरक्षाबलों की टीमें पहुंचीं, तो उनके सामने भी सुरक्षा की चुनौती थी. वजह ये कि नक्सली अक्सर शवों के नीचे प्रेशर बम लगा देते हैं. कई बार ऐसा हुआ है कि शवों के नीचे बम लगाया गया था, जब जवानों ने शव को उठाया तो प्रेशर बम फट गया और शव उठाने पहुंचे जवान भी मारे गए.
छत्तीसगढ़ के पत्रकार और बस्तर टाकीज के फाउंडर विकास तिवारी बताते हैं,
"4 अप्रैल को जब मैं मौके पर पहुंचा तो देखा कि जवान, शहीदों के शवों के हाथ या पैर में बहुत धीरे से एक रस्सी बांध रहे थे. इसके बाद थोड़ा दूर जाकर उस रस्सी को खींचते थे ताकि शव पलट जाए. इसके बाद शव को वहां से उठाने की प्रक्रिया शुरू की जाती थी. ऐसा इसलिए किया जा रहा था कि ये सुनिश्चित किया जा सके कि किसी शव के नीचे प्रेशर बम तो नहीं है."विकास ने बताया कि पहले कई बार ऐसा हो चुका है, इसलिए अब सुरक्षाबलों के जवान चौकस रहते हैं और इस बात को फॉलो किया जाता है कि किसी भी शव को पहले पलट लिया जाए और उसके बाद ही उसे मौके से उठाया जाए. इससे बाकी जवानों को सुरक्षित किया जा सकता है. हो सकता है कि ये तरीका कुछ लोगों को अमानवीय लगे, लेकिन बाकी जवानों की सुरक्षा के लिए ये जरूरी है. लाशों के भीतर भी बम प्लांट कर देते हैं ऐसा नहीं है कि नक्सली केवल शवों के नीचे ही बम लगाते हैं. बहुत सारे ऐसे मामले भी सुरक्षाबलों के सामने आए हैं जिनमें नक्सलियों ने शवों के अंदर बम प्लांट कर दिया था. ऐसे में बम निरोधक दस्ते की मदद ली जाती है. नक्सली शवों के पेट में IED लगा देते हैं और इसे छुपाने के लिए ऊपर से टांके लगा देते हैं. इनमें सूजन भी नहीं होती, क्योंकि शवों की सर्जरी शरीर में सूजन पैदा नहीं करती है.

ऐसे बमों को निष्क्रिय करके शव को बचाना बड़ी चुनौती होता है. क्योंकि शहीद का परिवार शव का इंतजार कर रहा होता है. इस तरह के मामलों में बम निरोधक दस्ते के लोग शव की सुरक्षा पर सबसे अधिक ध्यान देते हैं, क्योंकि बम अगर फटा तो शव के भी चीथड़े हो सकते हैं. जानवरों तक को नहीं बक्शते नक्सली नक्सलियों का एकमात्र उद्देश्य सुरक्षाबलों को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने का होता है. ऐसा करने के लिए वो हर संभव तरीका आजमाते हैं. जानवरों को मारकर उनके शव में बम लगा दिए जाते हैं और जब जवान रास्ते में पड़े किसी जानवर के शव को हटाने की कोशिश करते हैं तो बम फट जाता है. यही नहीं बमों को नक्सली पेड़ पर भी बांध देते हैं. इसके अलावा दूध के बर्तनों में और खाली डिब्बों तक में बम फिट करके सुरक्षाबलों के जवानों की जान लेने का प्रयास नक्सली करते रहते हैं.

IED बमों के जरिए भी नक्सली जवानों को नुकसान पहुंचाते रहते हैं. IED यानी Improvised Explosive Device. इसमें विस्फोट कराने के लिए केमिकल का इस्तेमाल होता है. इसमें रिमोट की मदद से भी ब्लास्ट किया जा सकता है और टाइमर भी लगाया जा सकता है. IED किसी खिलौने, बर्तन, डिब्बे में फिट किया जा सकता है. ये छोटा और हल्का होता है, इसलिए अब माओवादी इसका काफी इस्तेमाल कर रहे हैं. डबल नुकसान पहुंचाने के लिए ऐसा करते हैं नक्सली यूट्यूब चैनल बस्तर टाकीज के फाउंडर विकास तिवारी बताते हैं कि सुरक्षाबलों को दोहरा नुकसान पहुंचाने के लिए नक्सली इस तरह की हरकतें करते हैं. पहला वार जब नक्सली करते हैं तो काफी जवान शहीद हो जाते हैं, इसके बाद जब उनके साथी शवों को उठाने के लिए पहुंचते हैं, तो प्रेशर बम या फिर IED के जरिए उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जाती है. ऐसा भी देखा गया है कि घात लगाकर जवानों पर हमला किया गया. जवान शहीद हो गए. इसके बाद जब बाकी जवान अपने साथियों के शव लेने पहुंचे तो नक्सलियों ने उन्हें भी घेरकर मार दिया.