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कांग्रेस सत्ता में आई तो राहुल नहीं, ये आदमी बनेगा भारत का प्रधानमंंत्री!

डिजिटल इंडिया बनाने वाले आदमी के बारे में ये दावा कांग्रेस के एक महासचिव ने ही किया है.

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अविनाश
21 नवंबर 2017 (Updated: 21 नवंबर 2017, 05:55 PM IST)
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राहुल गांधी को दिसंबर 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की औपचारिकता पूरी हो जाएगी. औपचारिकता इसलिए राहुल गांधी के नाम पर आम सहमति बन चुकी है. इसका सीधा सा मतलब है कि 2019 में होने वाला लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में होगा. आम तौर पर कांग्रेस के लोग राहुल गांधी को भविष्य का प्रधानमंत्री मानते हैं, लेकिन कांग्रेस में ही कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो राहुल के नाम पर सहमत नहीं हैं.
इंडिया टुडे के मुताबिक अगर 2019 के चुनाव में कांग्रेस की जीत होती है, तो प्रधानमंंत्री के तौर पर राहुल गांधी का नाम सामने नहीं आएगा. इंडिया टुडे का दावा है कि कांग्रेस के एक महासचिव ने कहा है कि अगर कांग्रेस जीत भी जाती है, तो राहुल गांधी सरकार की जिम्मेदारी लेने से बचेंगे और फिर वही दाव खेलेंगे, जैसा पहले सोनिया गांधी कर चुकी हैं. कांग्रेस महासचिव के मुताबिक राहुल गांधी जिस शख्स पर दाव लगा सकते हैं उसका नाम है सैम पित्रोदा. सैम पित्रोदा वो शख्स हैं, जो फिलहाल सियासी मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहे हैं.
सैम पित्रोदा गुजरात में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं.
सैम पित्रोदा गुजरात में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं.

कुर्ता और गांधी टोपी में दिख रहे सैम पित्रोदा का सियासी बयान उस महासचिव की बात को सिरे से खारिज करने पर रोक देता है. सैम ने कहा था-
"अगर आप लोकतंत्र की बात करें, तो आपको सामूहिक अगुआई की जरूरत होती है. आप ऐसा नहीं कर सकते कि तमाम फैसले एक ही आदमी ले. वह भगवान ही क्यों न हो, यहां तक कि वह भी इतना काबिल नहीं है."
जिस तरह से अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे मनमोहन सिंह ने 10 साल तक देश का नेतृत्व किया था, अगर कांग्रेस को मौका मिलता है तो ये नेतृत्व सैम पित्रोदा को सौंपा जा सकता है. सैम की खासियत ये है कि देश जिस डिजिटल इंडिया बनने का सपना देख रहा है, उसकी नींव सैम ने ही रखी थी.
saim pitroda

काले धन पर जब सर्जिकल स्ट्राइक वाली तोप घूमी तो उसका मुंह कैश की तरफ कर दिया गया था. कहा गया कि कैश खतम होगा., तभी न कैशलेस इकॉनमी आएगी. और कैशलेस इकॉनमी के खेल में सबसे बड़ी कंपनी जो आगे चल रही थी, वो थी पेटीएम. लेकिन ई वैलेट और डिजिटल पेमेंट वाला इसका आइडिया पेटीएम की पैदाइश से बहुत पुराना है. यहां तक कि इसका आइडिया पेटेंट तब ही हो गया था जब आम लोगों के पास स्मार्टफोन छोड़ो, फोन भी नहीं होते थे. 1994 में इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया था सैम पित्रोदा ने. जो 1996 में हासिल हो गया. अब दिमाग की याददाश्त वाली टाइम मशीन में बैठकर 20 साल पीछे जाओ और याद करो कितने लोगों के हाथ में स्मार्टफोन था? किसी के पास नहीं था न? लेकिन तब और शायद उससे भी पहले सैम के दिमाग में इसका आइडिया आ गया था. सैम पित्रोदा की वेबसाइट पर उनके 70 से ऊपर पेटेंट्स की जानकारी पड़ी है. जिसमें से एक ये है.
E-Wallet Sam Pitroda

इस तस्वीर में जो डिस्क्रिप्सन लिखा है. उसके हिसाब से ये पेटेंट एक ऐसी डिवाइस का था जिसमें बैंक कार्ड, क्रेडिट-डेबिट कार्ड, आई कार्ड, इंप्लॉई कार्ड और मेडिकल कार्ड की जानकारी एक साथ रखी जा सके. यूनिवर्सल इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन के लिए कम्पैटिबल इस डिवाइस में इनपुट इंटरफेस, जिसे आज कीपैड या टच कह सकते हो. एक प्रोसेसर. डिस्प्ले और कम्युनिकेशन की सुविधा ध्यान में रखी गई थी. यानी आज के मोबाइल फोन जैसा ही, बस उसमें फीचर बैंकिंग और कार्ड स्टोरेज वाले रखे गए थे.
हां तो पहले थोड़ी सी बात पेटीएम के बारे में. क्योंकि डिजिटल पेमेंट के सारे ऐप्स की बाप कंपनी है. विजय शेखर शर्मा ने 2010 में इसे शुरू किया था. मोबाइल रिचार्ज के लिए. 2014 में इसका कलेवर बदला. ऑनलाइन पेमेंट के लायक बनाया. उसके बाद इतनी तेजी से बढ़ा कि मार्च 2015 में रतन टाटा ने भी इसमें इनवेस्ट किया. इसी महीने कंपनी को चाइनीज कंपनी अलीबाबा का साथ मिला. उसने तकरीबन 39 अरब रुपए का इनवेस्टमेंट पेटीएम में किया. आज पेटीएम क्या है, वो देख ही रहे हो. क्रिकेट की पिच से लेकर रिक्शे पर चिपका एक ही ऐड दिखता है, पेटीएम.
अब आओ सैम पित्रोदा पर. पूरा नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा. 4 मई सन 1942 को ओडिशा के छोटे से गांव तीतलागढ़ में पैदा हुए सैम टेलीकॉम इंजीनियर, इनवेंटर और इंटरपेन्योर हैं. भारत में टेलीफोन से लेकर आज की डिजिटल क्रांति का पिता आप इनको कह सकते हैं.
सैम बालपने से खुराफाती थे. ये बात उन्होंने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताई थी. कि छोटे में वो रेलवे ट्रैक पर दस्सी रख देते थे. दस पैसे का सिक्का. और ट्रेन निकल जाने के बाद उठा लेते. ऐसे सिक्के बटोरते जाते थे. पापा पढ़ाई के लिए इतना स्ट्रिक्ट थे कि शारदा मंदिर बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया. स्कूलिंग के बाद बड़ौदा यूनिवर्सिटी. वहां फिजिक्स में एमएससी किया, फर्स्ट डिवीजन. आगे तकनीकी की पढ़ाई करने निकल लिए अमेरिका. शिकागो.
शिकागो में पहली बार सैम पित्रोदा
शिकागो में पहली बार सैम पित्रोदा

पिछले साल इनकी लिखी एक किताब आई थी. इनकी ऑटोबायोग्राफी 'ड्रीमिंग बिग माई जर्नी टू कनेक्ट इंडिया.' इसकी लॉन्चिंग के मौके पर मौजूदा सरकार के द्वारा डिजिटल इंडिया कॉन्सेप्ट भुनाने की खूब खिंचाई की थी. कहा था कि ये तो राजीव गांधी के जमाने से शुरू हुई. 25 साल पहले. और इसे पूरी तरह डिजिटल होने में 20 साल और लगेंगे. लेकिन कायदे से देखो तो कैशलेस वाला फॉर्मूला सफल हो गया तो और जल्दी हो जाएगा. हालांकि ये थोड़ा मुश्किल है. इंडिया में नेट की जो स्पीड है वो देख ही रहे हो. 5 एमबी की फाइल डाउनलोडिंग में लगाकर चले जाओ. नहा-खा आओ फिर भी एकाध मिनट रिमेनिंग दिखाएगी. आप कहोगे कि नहीं है ऐसा. तो भैया शहर के बाहर निकलकर गांवों में जाओ. 70 परसेंट भारत गांव में है अभी.
तो राजीव गांधी से करीब रहे सैम. हमेशा. उनकी आखिरी सांस तक. राजीव ने उनको 1984 में अमेरिका से बुला भेजा. कहा कि यहां आओ, देश के लिए फुल टाइम जॉब करो. सैम भारत आए. यहां सी-डॉट कंपनी खड़ी की. यानी सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलिमौटिक्स. ये टेलीकॉम इंडस्ट्री में रोज नई खोज और डेवलपमेंट के लिए बनी थी, सरकार का इसमें दखल नहीं था. सैम इसके हेड बने, एक रुपए सालाना के मेहनताने पर.
Image: Sam Pitroda
Image: Sam Pitroda

इसे शुरू करना आसान नहीं था. इंदिरा गांधी पीएम थीं. और उनके मंत्रिमंडल के सामने सैम ने एक घंटे का प्रजेंटेशन दिया था. इंप्रेस होने पर सबने उस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी. बैंगलोर में हार्डवेयर डिजाइनिंग का काम शुरू हुआ. दिल्ली में सॉफ्टवेयर का काम शुरू होने में काफी दिक्कत आई. 400 नए इंजीनियर्स को भरकर ट्रेनिंग दी. उनमें लड़के ही थे सिर्फ, लड़कियां नहीं, तो कहा कि ऐसे कैसे काम होगा. तब लड़कियों की भर्ती की गई. उन्हें ट्रेनिंग दी गई. ये वो जमाना था जब देश में सिर्फ लैंड लाइन फोन होते थे. जिनमें 55 परसेंट शहरों में थे. और एक बड़ी सच्चाई डेड फोन थी. उस पूरे सिस्टम को सैम ने बदल डाला. भारत के हर हिस्से में एसटीडी पीसीओ पहुंचा दिया. 20 लाख लोगों को जॉब मिला इस काम से. इनको टेलिकॉम आयोग का प्रेसिडेंट बना दिया गया.
भारत में सॉफ्टवेयर का कारोबार कैसे शुरू हुआ और उसमें सैम का रोल कितना बड़ा था, ये कहानी बड़ी रोमांचक है. हुआ ये था कि अमेरिका की बड़ी कंपनी है जनरल इलेक्ट्रिक. इसके प्रेसिडेंट हुआ करते थे जैक वेल्च. वो भारत आए राजीव गांधी से मिलने. कि वो टेक्निकल माइंड आदमी हैं. हम अपने इंजन इनको बेच देंगे. राजीव गांधी कहीं अलग बिजी थे तो सैम को भेज दिया कि 'आप देख लो अपने हिसाब से.'
सैम ने वहां अपना कार्ड खेल दिया. जब वेल्च ने पूछा कि हमारे लिए आपके पास कोई ऑफर है? सैम ने कहा कि हम आपको सॉफ्टवेयर बेचना चाहते हैं. वेल्च कहने लगे कि यार हम तो यहां अपने इंजन बेचने के जुगाड़ में आए हैं. हमको सॉफ्टवेयर का कुछ पता नहीं. सैम ने कहा कि हम इंजन के चक्कर में नहीं हैं. तो वेल्च ने कहा कि जिस चक्कर में हम आए हैं उस पर तो आप कुछ कह नहीं रहे. उनको लेकर नाश्ते की टेबल पर बैठे सैम. उसके बाद अपना प्रजेंटेशन शुरू किया. सॉफ्टवेयर वाला. वेल्च कुछ पटरी पर आए. पूछा कि हमसे क्या चाहते हो भई? सैम ने कहा एक करोड़ डॉलर का ऑर्डर. वेल्च बोले मैं अपनी कंपनी के टॉप लोगों को भेजूंगा आपके पास. उनको समझा देना, जो हमको समझाया है.
महीने भर बाद उनकी तरफ से 11 लोग यहां आए. सैम पहुंचे इंफोसिस कंपनी के पास. ये तब पैदा ही हुई थी. इनका ऑफिस तक नहीं था. इनकी मीटिंग जीई वालों से कराने का इरादा था वेल्च का. तो कहा कि उनको ये मत बताना कि हमारा ऑफिस तक नहीं है. बाकी हम निपट लेंगे. काम बन गया. मीटिंग से एक करोड़ डॉलर का ऑर्डर निकल आया.
परिवार के साथ सैम
परिवार के साथ सैम

91 में राजीव गांधी की हत्या हो गई. वो फिर अमेरिका लौट गए. लेकिन टेक्नॉलजी पर काम करते रहे. वहीं सन 94 में इस ई वैलेट वाली व्यवस्था के पेटेंट के लिए आवेदन किया, जो 2 साल बाद मिला भी. 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो मनमोहन सिंह ने इनको बुला भेजा. कि अपनी योग्यता का इस्तेमाल यहां आकर करो. उनको नॉलेज कमीशन का अध्यक्ष बना दिया. 2010 में इनको नेशनल इनोवेशन काउंसिल का चेयरमैन भी बनाया गया.
सैम को चित्रकारी, तबला बजाने और गजलें सुनने का शौक है
सैम को चित्रकारी, तबला बजाने और गजलें सुनने का शौक है

सैम पित्रोदा ने कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पर तमाम किताबें लिखी हैं. 2010 में इनकी किताब द मार्च ऑफ मोबाइल मनी आई थी. इसमें ये ई वैलेट वाला कॉन्सेप्ट बहुत अच्छे से समझाया था. इसकी लॉन्चिंग के मौके पर अपने ई वैलेट के प्रोजेक्ट पर भी बात की थी. कि सन 96 में ई वैलेट लाने का सिर्फ सपना ही देखा जा सकता था. क्योंकि तब स्मार्टफोन नहीं थे. केवल वैलेट के लिए डिवाइस बनाना सफेद हाथी पालने जैसा था. लेकिन इतने साल बाद हम वो सपना साकार करने लायक हो चुके हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी रहे और फिर मनमोहन सिंह सरकार में जन सूचना, बुनियादी ढांचा और नवाचार के लिए सलाहकार की भूमिका निभाई थी. ओडिशा सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी सलाहकार के पद से इस्तीफा देने के बाद सैम पित्रोदा अपनी सियासत की नई पारी खेलने के लिए तैयार दिखने लगे हैं. गुजरात इसकी प्रयोगशाला बन रहा है, क्योंकि उन्होंने स्कूल की पढ़ाई गुजरात के वल्लभ विद्यानगर की है. फिर वडोदरा के इंजीनियरिंग कॉलेज गए. इस वजह से कांग्रेस ने उनको उस टीम का प्रभारी बनाया है, जो जनता का घोषणा पत्र तैयार करता है.


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