कानपुर की मनोहर कहानियां: गणेशजी मोटू
तब की बात जब पूरे मुल्क में गणेशजी की मूर्तियां दूध पीने लगी थीं!
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symbolic image. फोटो क्रेडिट: reuters

कानपुर की मनोहर कहानियां: गणेश जी मोटू
गणेश जी की मूर्ति दूध पी रही है. पूरे देश में हल्ला था. हमाए कानपूर में भी हल्ला था की गणेश जी दूध सुटुक ले रहे हैं. मंगत का बेटा स्कूल से लौटा तो रस्ते भर दोस्तों से क़िस्से सुनता हुआ आया. कोई कह रहा था की सूंड़ से लप्प करके पी जा रहे हैं, कोई कह रहा था कि मोटे वाले दांत पे चम्मच लगाओ तो चम्मच ख़ाली हो जा रहा है. राजू उछलते, कूदते, हैरान सा घर लौटा तो मम्मी की नाम के दम कर के बैठा था. “पापा कहां है, गणेश जी को दूधू पिलाएंगे, पापा कब आएंगे”. मंगत चमड़ा फैक्ट्री में काम करता था, देर शाम सात बजे तक घर आ जाता था. अभी सात नहीं बजे थे, फिर भी राजू एक डग बैठ नहीं पा रहा था. वो ‘लिटिल स्टुअर्ट’ वाली पोएम जल्दी-जल्दी याद कर रहा था ताकि पापा को सुनाकर ख़ुश कर सके और पापा उसे गणेश जी को दूध पिलवाने ले चलें. “पापा! पापा आ गए. पापा गणेश जी...पापा...दूध...पापा...आपको पता है कुछ”? राजू मंगत से चिपट गया था और ज़ोर से हांफ रहा था. “क्या! अरे हुआ क्या बाबू”, मंगत ने चमड़ा फैक्ट्री की सारी थकान कंधे पर टंगे झोले के रूप में उतारकर रख दी. उसका शरीर अब चमड़े से नहीं, बल्कि राजू के सर पर लगे सरसों के तेल की चटक महक से गमक रहा था. “पापा गणेश जी दूध पी रहे हैं. जल्दी मंदिर चलो” “अरे ऐसे थोड़ी होता है”, मंगत ने बात टालने की कोशिश की. घर में दूध नहीं था.
राजू दुखी हो गया. “गणेश जी चमार का दूध नहीं पीते क्या”? उसने पूछा. मंगत ने मुस्कुराते हुए मूर्ति के पेट की ओर इशारा किया. “देखो कितना पेट फूल गया है गणेश जी का. एकदम फुल हो गया है. तुम भी तो रात में रोज़ दूध पीने से मना करते हो. क्या बोलते हो तुम”?“मम्मी पेटू फुल है. दूध नहीं पी पाउंगा प्लीज़”, राजू खिलखिलाते हुए बोला “हां. तो बस. गणेश जा का पेटू फुल हो गया है. पुजारी ऐसे ही बक रहा है” राजू ज़ोर से हंसा. उसने गणेश जी के पेट की और देखा तो उसकी हंसी रुक ही नहीं रही थी. “पापा गणेश जी इतने मोटे क्यों होते हैं”? “क्योंकि सब लोग उनको दूध पिला पिला के मोटा कर दिए हैं. मम्मी भी रोज तुमको दूध पीने को इसीलिए कहती है. देखो तुम कैसे टिटिहरी जैसे हो और गणेश जी कितने मोटू हैं”
“गणेश जी मोटू”, राजू ज़ोर से हंसा. और उचक के साईकिल के डंडे पर बैठ गया. वो रस्ते भर मंगत को लिटिल स्टुअर्ट वाली पोएम गाकर सुनाता रहा. मंगत भूल गया की वो हरिजन है, या चमार, या फिर दलित. वो राजू का बाप है, उसे बस यही याद रहा.पढ़िए ये वाली कानपुर की मनोहर कहानियां...
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