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जिस लाउडस्पीकर की अज़ान से वीसी परेशान, उसे लगाने का कोई नियम कायदा है?

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वीसी ने लाउडस्पीकर पर अज़ान को लेकर डीएम से की थी शिकायत.

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इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर ने जिले के डीएम को लाउडस्पीकर पर अजान से नींद में खलल को लेकर खत लिखा तो विवाद हो गया. क्या वाकई में धार्मिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर लगाने का कोई नियम-कायदा है? (तस्वीर-यूट्यूब)
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अमित
18 मार्च 2021 (Updated: 18 मार्च 2021, 01:26 PM IST) कॉमेंट्स
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कंकर-पत्थर जोरि के मस्जिद लई बनाय, ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, का बहरा भया खुदाय
संत कबीर का यह दोहा हर धर्म में चल रहे कर्मकांड पर प्रहार करता है. हालांकि अब भी लाउडस्पीकर लगाकर तेज आवाज में धार्मिक कर्मकांड लोगों की परेशानी का सबब बन रहे हैं. हाल ही का मामला इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव का है. उन्होंने लाउडस्पीकर के जरिए मस्जिद से होने वाली अज़ान से परेशान होकर इलाहाबाद के डीएम को खत लिख डाला. उन्होंने डीएम से मामले में नियमानुसार कार्रवाई करने की गुहार लगाई. क्या वाकई में धार्मिक कर्मकांड में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कानून के खिलाफ है? इस पर कोर्ट और धार्मिक जानकार क्या कहते हैं? आइए जानते हैं यह सब तफ्सील से पहले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वीसी का मामला जान लीजिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने तेज अवाज में होने वाली सुबह की अजान से नींद में खलल पड़ने का शिकायती पत्र प्रयागराज के डीएम को लिखा. कार्रवाई के लिए ये 3 मार्च को लिखा गया. कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने पत्र में कहा है कि रोज सुबह लगभग साढ़े पांच बजे मस्जिद में अजान होती है. अलसुबह मस्जिद के लाउडस्पीकर से गूंजने वाली अजान की आवाज से नींद में खलल पड़ रहा है. अजान से उनकी नींद इस तरह बाधित हो जाती है कि उसके बाद तमाम कोशिश के बाद भी वह सो नहीं पातीं. इस वजह से उन्हें दिनभर सिरदर्द बना रहता है और कामकाज भी प्रभावित होता है. जैसा कि एक पुरानी कहावत है कि 'आपकी स्वतंत्रता वहीं खत्म हो जाती है, जहां से मेरी नाक शुरू होती है.’ मैं किसी सम्प्रदाय, जाति या वर्ग के खिलाफ नहीं हूं. अजान लाउडस्पीकर के बगैर भी की जा सकती है, ताकि दूसरों की दिनचर्या प्रभावित न हो. ऐसे मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी देखा जा सकता है.
मामले में प्रयागराज के डीएम भानु गोस्वामी ने द लल्लनटॉप को बताया कि
माननीय हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार निर्देश दिए गए हैं. लाउडस्पीकर की आवाज को निश्चित ध्वनि सीमा में रखने को कहा गया है. अब स्थिति ठीक है और किसी को कोई परेशानी नहीं है.
लोकल अखबारों की रिपोर्ट से भी यह पुष्टि होती है कि लाउडस्पीकर की आवाज को कम करवा दिया गया है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार को मस्जिद के केयरटेकर कलीम उर रहमान ने बताया कि उन्हें भी मंगलवार को इस मामले का पता अखबार के जरिए चला. कुछ पुलिस अधिकारियों ने भी हमसे इस बारे में बात की. हमने लाउड स्पीकर की आवाज को अब आधे से कम कर दिया है. किसी को अगर परेशानी होती है, तो हमें आवाज कम करने में कोई दिक्कत नहीं है.
द लल्लनटॉप ने वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की लेकिन बताया गया कि वह एक हफ्ते की छुट्टी पर इलाहाबाद से बाहर हैं. इस मामले पर वह प्रतिक्रिया नहीं देना चाहतीं.
Vc Sangita Srivastava Letter Dm
वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव ने अपने लेटर में हाईकोर्ट के फैसलों का भी जिक्र किया.
कौन हैं प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के 130 साल के इतिहास में प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव पहली महिला वाइस चांसलर हैं. इलाहाबाद की रहने वाली प्रोफेसर श्रीवास्तव की पढ़ाई भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही हुई है. प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार उन्होंने अपनी डॉक्टरेट 1990 से 1996 के बीच पूरी की. उन्होंने होम साइंस डिपार्टमेंट में नेचुरल डाइज़, एरोमा एंड टेक्सटाइल के टॉपिक पर रिसर्च किया. इसके बाद वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाने लगीं. जून 2019 से नवंबर 2020 तक वह प्रयागराज की प्रोफेसर राजेंद्र सिंह यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर रहीं. इसके बाद नवंबर 2020 में प्रोफेसर श्रीवास्तव ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में वीसी का पदभार संभाला. उनके पति जस्टिस विक्रम नाथ इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज रहे हैं. फिलहाल जस्टिस विक्रम नाथ गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर आसीन हैं.
Vc Sangeeta Srivastava
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली महिला वाइस चांसलर हैं.
क्या कहता है लाउड स्पीकर का नियम कायदा धार्मिक जगहों पर स्पीकर लगाने को लेकर लंबे वक्त से विवाद चल रहा था. इस पर वक्त-वक्त पर सरकारें नियम-कायदे बनाती रही हैं. कोर्ट भी फैसले देते रहते हैं. हालांकि शोर को लेकर ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण) कानून, 2000 पहले से मौजूद है. यह पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के तहत आता है. इसके मुताबिक
# लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने लिए प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी होगी.
# लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर रात में लाउडस्पीकर नहीं बजाए जा सकेंगे. इसे रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक बजाने पर रोक है. हालांकि ऑडिटोरियम, कॉफ्रेंस रूम, कम्युनिटी और बैंकट हॉल जैसी बंद जगहों पर इसे बजाया जा सकता है.
# नियम की उपधारा (2) के अनुसार, राज्य सरकार इस संबंध में कुछ खास परिस्थितियों में रियायतें दे सकती है. वह किसी संगठन या धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर चलने वाले लाउडस्पीकर को बजाने की परमीशन रात 10 बजे से बढ़ाकर 12 बजे तक कर सकती है. हालांकि किसी भी परिस्थिति में 1 साल में 15 दिन से ज्यादा ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती.
राज्य सरकार के पास यह अधिकार भी होता है कि वह क्षेत्र के हिसाब से किसी को भी औद्योगिक, व्यावसायिक, आवासीय या शांत क्षेत्र घोषित कर सकता है. अस्पताल, स्कूल और कोर्ट के 100 मीटर के दायरे में ऐसे कार्यक्रम नहीं कराए जा सकते, क्योंकि सरकार इन क्षेत्रों को शांत जोन क्षेत्र घोषित कर सकती है.
पर्यावरण (संरक्षण) 1986 कानून की धारा 15 के तहत नियम-कायदों का उल्लंघन करना दंडनीय अपराध माना गया है. नियम का उल्लंघन करने पर 5 साल की जेल या 1 लाख का जुर्माना या फिर दोनों (जेल और जुर्माना) सजा दी जा सकती है. साथ ही हर रोज के उल्लंघन के लिए 5 हजार रुपए रोज की सजा का प्रावधान अलग से है.
कहीं पर भी लाउडस्पीकर लगाने को लेकर नियम-कायदे पहले ही ध्वनि प्रदूषण के कानून में बताए गए हैं.
कहीं पर भी लाउडस्पीकर लगाने को लेकर नियम-कायदे पहले ही ध्वनि प्रदूषण के कानून में बताए गए हैं.
पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला लाउडस्पीकर पर अज़ान को लेकर 2020 में एक जनहित याचिका पर भी महत्वपूर्ण फैसला
आया. यह याचिका गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी और दो अन्य लोगों ने दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि कोरोना के दौरान भी मस्जिद में लाउडस्पीकर पर आजान को जारी रहने दिया जाए. हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि
'अज़ान इस्लाम का अभिन्न हिस्सा हो सकता है, लेकिन उसके लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना, ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं हो सकता. इसलिए मस्जिदों से बिना लाउडस्पीकर अजान दी जा सकती है. जब लाउडस्पीकर नहीं था तब भी अजान होती थी. उस समय भी लोग मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए एकत्र होते थे. ऐसे में यह नहीं कह सकते कि लाउडस्पीकर से अजान रोकना अनुच्छेद 25 के धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन है. अनुच्छेद 21 स्वस्थ जीवन का अधिकार देता है. वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को भी दूसरे को जबरन सुनाने का अधिकार नहीं देती. निश्चित आवाज से अधिक तेज आवाज बिना अनुमति बजाने की छूट नहीं है. रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक स्पीकर की आवाज पर रोक का कानून है. मस्ज़िदों की मीनारों से अज़ान देने वाला अज़ान दे सकता है. अपनी आवाज़ में, लेकिन किसी एम्प्लिफायर डिवाइज के इस्तेमाल किए बिना. और प्रशासन को भी निर्देश दिया जाता है कि इस काम में कोविड-19 की गाइडलाइन्स के नाम पर किसी तरह की कोई अड़चन न पैदा करें.
कोर्ट ने उप्र के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि जिलाधिकारियों से इसका अनुपालन कराएं. यह आदेश हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता व न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने सुनाया.
Allahabad High Court
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल अजान में लाउडस्पीकर लगा कर अजाद देने पर बड़ा फैसला दिया है.

NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा का कहना है कि
क्या मजहब का हिस्सा है क्या नहीं,  इसका फैसला कोर्ट के जजों को नहीं बल्कि धर्म गुरुओं पर छोड़ देना चाहिए. जहां तक बात ध्वनि प्रदूषण की है तो क्या कोई स्टडी कहीं मौजूद है कि किसी खास शहर में अजान के लाउडस्पीकर की वजह से कोई ध्वनि प्रदूषण हुआ है. जब तक यह न पता चले कि मस्जिदों में अजान देने से कितना ध्वनि प्रदूषण हुआ, यह जाने बिना कोई फैसला लेना सही नहीं है. इस पर एक साइंटिफिक स्टडी के बाद ही कुछ कहा जाना चाहिए. ये बात सही है कि ध्वनि प्रदूषण नहीं होना चाहिए. कई बार कोर्ट यह फैसले दे चुका है लाउडस्पीकर धर्म का हिस्सा नहीं है.
क्या कहते हैं धर्म के जानकार अजान में लाउड स्पीकर के इस्तेमाल के लेकर हमने इस्लाम के जानकार से भी बात की. हमने मुस्लिम महिला स्कॉलर शीबा असलम फहमी से इस्लाम और लाउडस्पीकर के कनेक्शन पर बात की. शीबा भारत सरकार के मॉडर्नाइजेशन ऑफ़ मदरसा एजुकेशन प्रोग्राम 2000 से को-ऑर्डिनेटर के तौर पर औपचारिक रूप से जुड़ी रही हैं. उनका कहना है कि
इस्लाम में लाउडस्पीकर लगाकर अजान करने का कहीं भी वर्णन नहीं है. जिन मस्जिदों से भी अज़ान होती है उन्हें अपने साउंड डेसिबल चेक करने चाहिए. आवाज मानक ध्वनि सीमा में ही रखनी चाहिए. अब लोगों का लाइफ स्टाइल बदल चुका है. कई लोग देर रात तक काम करते हैं और सुबह देर से उठते हैं. ऐसे में भोर में होने वाली फज्र की नमाज़ के लिए लाउडस्पीकर की जाने वाली अज़ान किसी को भी परेशान कर सकती है. सुबह की अज़ान को लाउडस्पीकर के बिना ही किया जाए तो बेहतर है.
फिलहाल तो लगता है कि मामला सुलझ गया है, लेकिन लाउडस्पीकर पर धार्मिक कार्यक्रम को लेकर यह विवाद अक्सर सामने आता है. ऐसे में प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि कैसे निश्चित ध्वनिसीमा पर लाउडस्पीकर को बजाने की व्यवस्था को सुनिश्चित किया जाए. चूंकि यूपी में अगले साल ही विधानसभा चुनाव हैं ऐसे में विपक्षी पार्टियां भी इसे राजनीतिक रंग दे रही हैं और प्रयागराज से लेकर सोशल मीडिया पर नेता मुद्दे को हवा दे रहे हैं.

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