एक परिवार है, जिसे खाने के लाले पड़े हैं. बेटा एक मशीन की दुकान में नौकरी करता था. फिर छोड़ दिया. वो अपना कुछ करना चाहता है. इसमें उसकी पत्नी भी साथ है. जब ये खबर वो अपने पिता को सुनाता है, तो वो बिस्तर पर खड़े होकर अखबार पटकते हुए तंजनुमा अंदाज़ में कहते हैं- ‘कंपनी खोलेंगे!’. ये फिल्म ‘सुई धागा’ का एक सीन है. ये एक ऐसा सीन है, जिसे रघुबीर यादव की एक्टिंग के लिए आने वाले समय में भी याद किया जाएगा. लेकिन इस सीन से फिल्म के बारे में आपको जो पता चलता है, ‘सुई धागा’ इसके ठीक उलट बात करती है.
क्या बात करती है फिल्म?
एक शादीशुदा कपल है (अनुष्का शर्मा और वरुण धवन). वरुण यानी मौजी जहां काम करता है, वहां उसे बहुत सारी बेइज़्ज़ती झेलनी पड़ती है. जैसे उसका मालिक उसे अलग-अलग मौकों पर अलग जानवर बनाता है, जिसमें कुत्ता उनका फेवरेट है. मौजी की पत्नी ममता को ये बात ठीक नहीं लगती. वो चाहती है कि मौजी अपना कुछ करे. तो जैसा आपने ट्रेलर में देखा है कि मौजी दर्जी बन जाता है. लेकिन उसकी ये जर्नी इतनी भी आसान नहीं थी. ज़ीरो से शुरू करके अपने पांव पर खड़े होने के लिए कितनी मेहनत और शिद्दत लगती है, वो आपको इस फिल्म को देखते समय पता लगेगा. दिक्कत ये है कि मौजी और ममता को ये दो बार करना पड़ता है. लेकिन इसके बाद वो जहां और जिस तरह से पहुंचते हैं, वो ऐसा लगता है जैसे आप वरुण धवन की कोई फिल्म देख रहे हों.

फैमिली ट्राएंगल फिल्म है सुई धागा
‘सुई धागा’ नाम से जितनी घरेलू फिल्म लगती है एक्चुअली है भी वैसी है. फैमिली ट्राएंगल बुला सकते हैं. पहले इसमें एक बाप बेटा जूझते हैं और फिर पति पत्नी. आखिरी बार नेटफ्लिक्स ओरिजनल फिल्म ‘लव पर स्क्वेयर फुट’ में विकी कौशल के पिता का किरदार निभाने के बाद अब रघुबीर ये फिल्म कर रहे हैं. वो जितने संजय चतुर्वेदी के थे, उतने ही मौजी के भी बाप लगते हैं. उतनी ही खीज, गरीबी और उतना ही इंटरफेयर. बेटा है मौजी. अपने नाम की तरह लाइफ और रिलेशनशिप्स में भी वैसा ही है. वो ऐसा लड़का है, जो अपने घर-परिवार को लेकर परेशान होने के बावजूद गानों और प्रोमोज़ में ‘सब बढ़िया है’ कहता रहता है. उसकी खुद की लाइफ भी व्यस्तता के चक्कर में उजड़ी हुई. भाई इमोशनली चैलेंज़्ड है. पापा-मम्मी हर समय इमोशन वाली बॉल से खेलते रहते हैं.
वरुण और अनुष्का
ये फिल्म ठीक उसी माहौल में बसी है, जैसा हमारे आसपास एक लोवर मिडल क्सास फैमिली में होता है. फिल्म मे इसे मध्य प्रदेश का चंदेरी शहर बताया गया है. पिछले दिनों रिलीज़ हुई ‘स्त्री’ में राजकुमार दर्जी बने थे और वो फिल्म भी इसी शहर में घटी थी. इसलिए ये कनेक्ट होने में ज़्यादा टाइम नहीं लेती लेकिन फिर अपनी कहानी आराम से सुनाती है. अगर अनुष्का शर्मा की बात करें, तो उनका किरदार पहले ही सोशल मीडिया पर मीम प्रेमियों का गेम स्ट्रॉन्ग कर चुका है. अनुष्का का किरदार फिल्म में कृष्ण भगवान जैसा है. वो वरुण को लगातार गाइड करती रहती हैं. फिर एक सीन में जब वरुण घट रही चीज़ों को अपना बताने लगते हैं, तब अनुष्का उनसे साफ-साफ कह देती हैं कि जो कुछ भी अब तक हुआ है उसमें उनका भी उतना ही योगदान है, जितना मौजी का. मौजी का किरदार बहुत दिलचस्प तरीके से लिखा हुआ है, लेकिन वरुण धवन उसे और ज़्यादा पसंद आने लायक नहीं बना पाते. पिछले कुछ दिनों में मेरा एक पर्सनल रियलाइजेशन ये रहा है कि किसी और के लिखे किरदारों को जीना और उसके लिए तारीफ पाना सच में काबिल-ए-तारीफ चीज़ होती है. जो वरुण इस फिल्म में नहीं कर पाते. ऊपर से वो कई सीन्स में बहुत लाउड भी हो जाते हैं, जिससे अचानक से फिल्म हड़बड़ी में लगने लगती है.

जिस चीज़ के बारे में नहीं पता, वो नहीं बोलनी चाहिए. जैसे फिल्म की एडिटिंग. वो थोड़ी और दुरुस्त हो सकती थी. गाने कान को सुंदर लगते और फिल्म को रोकते नहीं है. जैसे फिल्म में एक गाना है ‘चाव लागा’. इसके बोल लिखे हैं वरुण ग्रोवर (सबहेड में इन्हीं की बात हो रही थी) ने. ये सुनने में तो मीठा है ही, लेकिन एक सीन में ये आंखों को भी बहुत सुहाने लगता है. इस गाने में एक सीन है जब ममता और मौजी बस में जा रहे होते हैं. जैसे गाने का हुक लाइन आता है बस में बाकी सीटों पर बैठे लोग झूमने लगते हैं और उसी लाइन के रिपीट होने पर ममता-मौजी. इसे ऐसे दिखाया जाता है, जैसे बस हिचकोले ले रही हो. इस फिल्म की एक अच्छी बात ये भी है कि इसका म्यूज़िक भी फिल्म के किरदारों से मेल खाता है. उसमें उनके काम का ज़िक्र आता है. ‘चाव लागा’ गाना आप यहां देखिए और सीन नोटिस करके बताइए:
‘सुई धागा’ हमारे लघु उद्योगों को ध्यान में रखकर बनाई गई फिल्म है. बड़े बाज़ारों में छोटे कारीगरों के साथ होने वाले धोखे का भी इस फिल्म में ज़िक्र है. सब मिलाकर ये एक प्यारी फिल्म है, जो बहुत ज्ञान न देने का ध्येय रखते हुए भी ज्ञान दे जाती है और आपको पता भी नहीं चलता. ये कोई बहुत एंटरटेनिंग फिल्म नहीं है, जिसका आप जब चाहें तब उपभोग कर संतुष्ट हो जाएं, लेकिन देखते वक्त आपसे बहुत मेहनत भी नहीं करवाती है. बाकी सब बढ़िया है.
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