कोविड-19 की गाइडलाइंस में एंटीबायोटिक को लेकर क्या बड़ी जानकारियां जोड़ी गई हैं?
ज़्यादा एंटीबायोटिक्स लेने से बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ अपनी इम्यूनिटी बना लेते हैं. इससे दवाएं उन पर असर नहीं करतीं. इसे एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस कहते हैं. हर साल करीब 50 लाख लोगों की एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस की वजह से मौत होती है. इसमें एंटीबैक्टीरियल रज़िस्टेंस भी शामिल है.
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कोविड-19 का वो बुरा दौर शायद ही हममें से कोई कभी भी भूल पाएगा. आज भी सोचते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. अब कोविड-19 उतना ख़तरनाक नहीं रहा, जितना हुआ करता था. फिर भी हर कुछ महीने में इसके मामले अचानक बढ़ने लगते हैं. आज भी कोविड-19 की कोई दवा नहीं है. वैक्सीन है, पर इंफेक्शन होने पर इलाज अभी भी लक्षणों के हिसाब से होता है.
आपको याद होगा, कोविड होने पर लोग एज़िथ्रोमाइसिन नाम की दवा खा रहे थे. ये एक एंटीबायोटिक है. यानी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों की दवा. जबकि कोविड-19 एक वायरल बीमारी है. यानी वायरस से फैलने वाली बीमारी. ज़्यादा एंटीबायोटिक्स लेने से लोगों में एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस का ख़तरा बढ़ गया.
अब ये एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस क्या होता है? देखिए, जब हम ज़्यादा एंटीबायोटिक खाते हैं. तो धीरे-धीरे बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ अपनी खुद की इम्यूनिटी बना लेता है. इसलिए दवाएं बैक्टीरिया का ख़ात्मा नहीं कर पातीं. बीमारी ठीक नहीं होती. इसे ही एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस कहते हैं.

दि लैंसेट जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, हर साल करीब 50 लाख लोगों की एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस, जिसमें एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस भी शामिल है, की वजह से मौत होती है.
अब वापस आते हैं कोविड-19 पर. ताज़ा ख़बर ये है कि WHO यानी World Health Organization ने अपनी कोविड-19 गाइडलाइंस अपडेट की हैं. इसमें दो नई बातें जोड़ी गई हैं.
पहली: अगर मरीज़ में कोविड-19 का इंफेक्शन गंभीर नहीं है, और साथ में बैक्टीरियल इंफेक्शन का शक बहुत कम है, तो एंपिरिकल एंटीबायोटिक्स नहीं देनी चाहिए.
एंपिरिकल एंटीबायोटिक्स तब दी जाती हैं. जब ये न पता हो कि इंफेक्शन किस बैक्टीरिया की वजह से हुआ है. आमतौर पर, ऐसा तब किया जाता है जब इंफेक्शन गंभीर हो और टेस्ट के नतीजों का इंतज़ार करना मरीज़ के लिए ख़तरनाक हो सकता है.
दूसरी: अगर मरीज़ में कोविड-19 का इंफेक्शन गंभीर है. और साथ में बैक्टीरियल इंफेक्शन का शक कम है. तब भी एंपिरिकल एंटीबायोटिक न देने का सुझाव दिया जाता है.
यानी अगर कोविड-19 के मरीज़ में बैक्टीरियल इंफेक्शन का शक कम है. तो एंपिरिकल एंटीबायोटिक नहीं देनी है. चाहे बीमारी गंभीर हो या हल्की.
हमने मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद में पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के क्लीनिकल डायरेक्टर, डॉक्टर पंकज छाबड़ा से पूछा कि क्यों WHO ने कोविड-19 के मरीज़ों को एंटीबायोटिक्स देने से मना किया है?

डॉक्टर पंकज कहते हैं कि कोविड-19 एक वायरल बीमारी है. कोई भी वायरल बीमारी या इंफेक्शन, वायरस की वजह से होता है. इन्हें ठीक करने के लिए एंटी-वायरल दवाओं की ज़रूरत पड़ती है. जबकि एंटीबायोटिक दवाएं खासतौर पर, बैक्टीरिया को मारने के लिए बनाई जाती हैं. एंटीबायोटिक दवाएं वायरस पर असर नहीं करतीं. इसलिए वायरल इंफेक्शंस में इन्हें देने का कोई फायदा नहीं होता.
कोविड-19 की शुरुआत में कई मरीज़ों को बिना ज़रूरत, एंटीबायोटिक दी गईं. इससे फायदा तो नहीं हुआ. उल्टा एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस का ख़तरा और बढ़ गया. अगर बैक्टीरिया इन दवाओं यानी एंटीबायोटिक्स के खिलाफ मज़बूत हो जाएं, तो सामान्य इलाज भी मुश्किल हो सकता है. इसी वजह से WHO ने कहा है कि जब तक मरीज़ में बैक्टीरियल इंफेक्शन का पक्के तौर पर पता न चल जाए, तब तक एंटीबायोटिक न दें ताकि भविष्य में ये दवाएं असरदार बनी रहें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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