दोनों हाथों की बीपी रीडिंग में फर्क है? आपको तुरंत ये करना है
वैसे तो हमारे दोनों हाथों की बीपी रीडिंग एक ही आनी चाहिए. पर कभी-कभी एक ही समय पर दाएं और बाएं हाथ की बीपी रीडिंग में थोड़ा फर्क आ सकता है.
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देश में साढ़े 31 करोड़ से ज़्यादा लोगों को हाई बीपी की शिकायत है. ये कहना है The Indian Council of Medical Research यानी ICMR और India Diabetes स्टडी का. ये स्टडी 2023 में The Lancet Diabetes and Endocrinology नाम के जर्नल में छपी थी.
अभी चल रहा है साल 2025. हाई बीपी के मरीज़ों का ये आंकड़ा बढ़ा है, कम नहीं हुआ. यानी हमारे देश की एक बड़ी आबादी हाई बीपी से जूझ रही है. अब हाई बीपी के कई मरीज़ घर पर ही बीपी नापने की मशीन रखते हैं और समय-समय पर अपना बीपी नापते रहते हैं. इस मशीन को इस्तेमाल करना बहुत आसान है. बांह पर पट्टा लगाना है और मशीन का बटन दबाना है. कुछ सेकंड बाद मशीन की स्क्रीन पर आपका बीपी डिस्प्ले हो जाता है.
लोग अक्सर एक ही बांह पर पट्टा लगाकर रीडिंग लेते हैं और उसे ही सही मान लेते हैं. लेकिन क्या आपने कभी दूसरे हाथ पर पट्टा लगाकर रीडिंग ली है? दरअसल बीपी के कई मरीज़ अक्सर ये शिकायत करते हैं कि उनके एक हाथ की रीडिंग कुछ और, तो दूसरे हाथ की रीडिंग कुछ और आती है.
ऐसा क्यों होता है और कौन सी रीडिंग सही मानी जाए? ये हमने पूछा मैक्स हेल्थकेयर में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के सीनियर डायरेक्टर, डॉक्टर आलोक जोशी से.

डॉक्टर आलोक कहते हैं कि वैसे तो हमारे दोनों हाथों की बीपी रीडिंग एक ही आनी चाहिए. पर कभी-कभी एक ही समय पर दाएं और बाएं हाथ की बीपी रीडिंग में थोड़ा फर्क आ सकता है. आमतौर पर, ये फर्क बहुत ही कम होता है. इसमें कोई चिंता की बात भी नहीं है. लेकिन किसी भी हालत में ये फर्क 10mm यानी 10 पॉइंट से ज़्यादा का नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा है, तो ये चिंता की बात हो सकती है.
दोनों हाथों की बीपी रीडिंग में 10 पॉइंट से ज़्यादा का फर्क कई वजहों से आ सकता है. पहली वजह है पेरिफेरल आर्टरी डिज़ीज़. इसमें हाथ-पैरों तक खून ले जाने वाली धमनियों में ब्लॉकेज हो जाता है.
दूसरी वजह है सबक्लेवियन आर्टरी स्टेनोसिस. इसमें सबक्लेवियन आर्टरी यानी धमनी, जो बांह तक खून पहुंचाती है, वो प्लाक जमने या किसी और वजह से सिकुड़ जाती है. इससे उस हाथ में खून का फ्लो कम हो जाता है. नतीजा? उस हाथ की बीपी रीडिंग दूसरे हाथ से कम आ सकती है.
तीसरी वजह है थोरेसिक आउटलेट सिंड्रोम यानी TOS. इसमें कॉलर बोन और पहली पसली के बीच की जगह पतली हो जाती है, जिससे आर्टरी या नस दब सकती है. और, हाथ तक खून का बहाव कम हो जाता है. इससे उस हाथ की बीपी रीडिंग दूसरे हाथ से कम आ सकती है.
अगर आपके दोनों हाथों की बीपी रीडिंग में 10mm से ज़्यादा का फर्क है और ये फर्क लगातार आ रहा है. तब आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए. जांच करने के बाद डॉक्टर कारण का पता लगाएंगे. फिर उस आधार पर इलाज करेंगे.

इलाज में सर्जरी की जा सकती है. खाने की दवाएं दी जा सकती हैं. स्टेंट डाला जा सकता है या बलूनिंग की जा सकती है.
स्टेंट एक तरह का जालीदार ट्यूब है. जिसे आर्टरी में डाला जाता है ताकि आर्टरी फिर से सिकुड़े नहीं. वहीं बलूनिंग में एक छोटी-सी गुब्बारानुमा चीज़ डाली जाती है. इसे ब्लॉकेज वाली जगह फुलाया जाता है. इससे आर्टरी चौड़ी हो जाती है और खून का बहाव आसान हो जाता है. काम पूरा होने पर बलून को फिर से सिकुड़ाकर बाहर निकाल लिया जाता है. ये बलून, खेलने वाले गुब्बारे की तरह नहीं होता. बल्कि मेडिकल ग्रेड प्लास्टिक से बना होता है.
अब सबसे ज़रूरी सवाल. अगर दोनों हाथों में बीपी की रीडिंग अलग-अलग आए, तो सही किसे माना जाए?
डॉक्टर आलोक कहते हैं कि जिस हाथ में बीपी रीडिंग ज़्यादा आ रही हो. उसे सही मानना चाहिए. एक हाथ में पट्टा लगाकर तीन बार रीडिंग लेनी चाहिए. फिर इनका औसत निकालकर उसे ही अपनी सही बीपी रीडिंग माननी चाहिए. अगर दोनों हाथों की बीपी रीडिंग में बहुत ज़्यादा फर्क है, तो बिना देर किए डॉक्टर से मिलना चाहिए.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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