परछाईं: वेब सीरीज़ रिव्यू
डरावनी कहानियों की एक प्यारी वेब सीरीज़, जो उंगली पकड़कर हमें अपने बचपन में ले जाती है.

अब रस्किन की शॉर्ट स्टोरीज़ पर वेब सीरीज़ आ रही है – परछाईं: घोस्ट स्टोरीज़ बाय रस्किन बॉन्ड. इस बारे में बॉन्ड ने बताया -
मैं खुश हूं कि मेरी कहानियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म मिल रहा है. मैं उन्हें देखने के लिए एइक्साइटेड हूं, मुझे उम्मीद है कि मेरे रीडर्स इसे एन्जॉय करेंगे.‘परछाईं’ का पहला एपिसोड – दी घोस्ट इन दी गार्डन 15 जनवरी, 2019 को ज़ी5 पर रिलीज़ भी हो चुका है. यानी ‘परछाईं’ के सारे एपिसोड एक साथ नहीं बल्कि एक-एक कर रिलीज़ किए जा रहे हैं.

होने को ऐसा पहली बार नहीं होगा कि कोई वेब सीरीज़ एपिसोड दर एपिसोड रिलीज़ की जा रही हो, लेकिन आमतौर पर यही होता है. नेटफ्लिक्स की घोउल हो या सेक्रेड गेम्स, एमेज़ॉन की मिर्ज़ापुर हो या खुद ज़ी5 की रंगबाज़, इन सभी वेब सीरीज़ के सारे एपिसोड एक साथ, एक ही दिन अपलोड कर दिए गए थे.
बहरहाल ‘परछाईं’ में टोटल 12 एपिसोड होंगे, पहले चार एपिसोड वी के प्रकाश और अनिरुद्ध रॉय द्वारा निर्देशित किए जाएंगे. मलयालम फिल्म पुनराधिवसम और निर्णायकम के लिए वी के प्रकाश को दो बार और बांग्ला फिल्म अंतहीन के लिए अनिरुद्ध रॉय को एक बार नेशनल अवार्ड मिल चुका है. ये पहले 4 एपिसोड रस्किन की चार अलग-अलग शॉर्ट स्टोरीज़ पर बेस्ड होंगे जिनके नाम हैं - दी घोस्ट इन दी गार्डन, दी विंड ऑन हॉन्टेड हिल, विल्सन्स ब्रिज और दी ओवरकोट.जब विशाल भारद्वाज ने रस्किन की स्टोरी ‘सुज़ैनाज़ सेवन हज़बैंडस’ (सुज़ैन के सात पति) पर बेस्ड फिल्म बनाई तो उसका नाम सात खून माफ़ रखा गया. इससे पहले श्याम बेनेगल ने उनकी एक स्टोरी ‘अ फ्लाइट ऑफ़ पिजन्स’ (कबूतरों की परवाज़) को आधार मानकर फिल्म बनाई थी. नसीरुद्दीन शाह और शशि कपूर अभिनीत इस फिल्म का नाम जुनून था.
लेकिन ज़ी5 की इस वेब सीरीज़ के पहले एपिसोड को देखकर कहा जा सकता है कि इसके निर्माताओं की रस्किन बॉन्ड की कहानियों के नाम को बदलने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है. ‘परछाईं’ के पहले एपिसोड का नाम वही है जो रस्किन की कहानी का है - ‘दी घोस्ट इन दी गार्डन’.

फिल्मों के अलावा ऑनलाइन स्ट्रीमिंग पोर्टल्स के साथ भी रस्किन का ये कोई पहला जुड़ाव नहीं है. असमिया फिल्म निर्माता भार्गव साइकिया की शॉर्ट फ़िल्म दी ब्लैक कैट नवंबर, 2017 में यू ट्यूब पर रिलीज़ की गई थी. ये रस्किन बॉन्ड की इसी नाम की एक फिक्शन स्टोरी का अडेप्टेशन थी. इसमें टॉम ऑल्टर भी थे.
टॉम ऑल्टर. एक और एंग्लो इंडियन, जिनका मसूरी से गहरा संबंध था. दुखद बात ये थी कि जब ‘दी ब्लैक कैट’ रिलीज़ हुई थी उससे डेढ़ महीने पहले ही टॉम ऑल्टर की मृत्यु हुई थी. वैसे उनका काम अभी तक हमारे सामने आ ही रहा है. हाल ही में हमने उन्हें इरोज़ नाऊ की चर्चित वेब सीरीज़ स्मोक में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाते हुए देखा था.दी लल्लनटॉप ‘परछाईं’ का पहला एपिसोड देख चुका है. देखने के बाद कुछ बातें जो निश्चित तौर पर कही जा सकती हैं, वो ये कि रस्किन की कहानियों का भूत रीयल है. ठीक आमिर-करीना की फिल्म तलाश की तरह. लेकिन वो हमेशा डरावना हो, ये ज़रूरी नहीं. साथ ही वो विलेन ही हो, ये भी ज़रूरी नहीं.
पहले एपिसोड को देखने के बाद सबसे मज़े की बात ये लगी कि ये कहानियां भूतों की होने के साथ-साथ समानांतर रूप से बाल कथाएं भी हैं. इन कहानियों का डर रोमांच पैदा करता है, लेकिन कहीं भी उस सीमा को नहीं लांघता, जिसके पार जाने में बच्चों को असुविधा हो. ये गोया किसी थीम पार्क की एडवेंचर राइड सरीखा है जिसमें लिखा हो – 5 से 16 वर्ष.
पहले एपिसोड को देखते हुए हमें इसलिए भी ये सीरीज़ बच्चों के लिए मुफ़ीद लगी क्यूंकि इसमें सेक्स सीन या अश्लील बातें बिलकुल भी नहीं थीं. फिर भी हमारी रिकमन्डेशन ये रहेगी कि आप पहले पूरा एपिसोड देख लें और फिर तय करें कि आपके बच्चे इसे अकेले देखने में कितना सहज महसूस करेंगे.

मनोरजंन और बुराई पर अच्छाई की जीत जैसी पारंपरिक नैतिक शिक्षा के अलावा बच्चों के लिए हमने इस वेब सीरीज़ में कोई और यूटिलिटी नहीं पाई.
45 मिनट 45 सेकेंड के पहले एपिसोड में हमें काफी जाने पहचाने चेहरे देखने को मिलते हैं. जैसे फरीदा जलाल, स्वानंद किरकिरे, अंधाधुन फिल्म का वो शैतान बच्चा जिसका असल नाम कबीर साजिद है, मुन्नाभाई एमबीबीएस में डॉ. रुस्तम के रोल से फेम में आए कुरुष देबू आदि. यानी कुल मिलाकर सीरीज़ का ट्रीटमेंट प्रीमियम है, एमेच्यॉर नहीं. पहले एपिसोड में वादियां, कोहरा, पहाड़ और टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियां मन मोह लेती हैं. कुछ स्पेशल इफेक्ट्स भी खूबसूरत हैं, जैसे एक बड़े से पेड़ के ऊपर बर्फ़ का जमना.बैकग्राउंड स्कोर पर काफी काम किया गया लगता है. लेकिन फिर भी वो ओरिजनल नहीं लगता. बल्कि उसमें वही शॉकिंग इफेक्ट्स, वही शूं-शां वाले साउंड एफेक्ट्स सुनाई देते हैं, जिनसे हम हमेशा से डरते आए हैं, डरते रहेंगे.
वैसे भी हम बड़ों के लिए रस्किन के भूत और उनके डर कुछ चाइल्डिश हो जाते हैं. खासतौर पर जिस तरह से वो पहले एपिसोड में दिखाए गए हैं. कोई एक्स-फैक्टर नज़र नहीं आता. इसलिए सीरीज़ देखते हुए बड़े लोग बोर भले न हों, लेकिन वो आने वाले एपिसोड्स के लिए खास इंतज़ार करेंगे, ऐसा नहीं लगता.
यूं पहले एपिसोड को देख चुकने के बाद ये भी जोड़ना ज़रूरी है कि इसे पूरी तरह ‘चिल्ड्रेन्स वेब सीरीज़’ बनाने के लिए कुछ सीन्स (जैसे फांसी में लटकती लाश) हटाए जा सकते थे. लेकिन फिर भी एक बात हम बड़े मज़बूत ढंग से रखना चाहेंगे कि पूरे एपिसोड को देख चुकने का अनुभव डरावना नहीं, बहुत ही खूबसूरत है.

अंत में हमारा टेक यही है कि ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘अपहरण’ जैसी वेब सीरीज़ के दौर में बिना अश्लीलता, बिना हिंसा के एक इंटरटेनिंग वेब सीरीज़ बना लेना कोई छोटी-मोटी बात नहीं है. इसके लिए ज़ी5 और इस सीरीज़ को मूर्त रूप देने वाले यकीनन बधाई के पात्र हैं. साथ ही उम्मीद है कि जैसे-जैसे बाकी एपिसोड आते रहेंगे, चीज़ें और रिफाइन, और परफेक्ट होती रहेंगी. हिंदी वेब सीरीज़ में एक नए तरह के अनुभव को प्राप्त करने के लिए इसे देखा जा सकता है.
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