The Lallantop
Advertisement

वेब सीरीज़ रिव्यू: निर्मल पाठक की घर वापसी

यदि सीरीज़ कुछ स्टीरियोटाइप्स से खुद को बचा ले जाती तो शायद ये एक बेहतरीन फैमिली वेब सीरीज़ 'गुल्लक' के समकक्ष खड़ी हो सकती थी.

Advertisement
Nirmal Pathak
कुछ बिहारी स्टीरियोटाइप्स से बचा जा सकता था
pic
अनुभव बाजपेयी
31 मई 2022 (Updated: 2 जून 2022, 11:29 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मेरी एक दिन पहले ही अपने घर से दिल्ली वापसी हुई. और अब मुझे करवानी है निर्मल पाठक की घर वापसी.

‘निर्मल पाठक की घर वापसी’ का एक स्नैप
कई तरह के बिहारी स्टीरियोटाइप्स से बचा जा सकता था

ये कहानी है एक ऐसे आदमी की, जो 24 साल बाद अपने गांव लौटता है और वहां की व्यवस्था को सिरे से बदलने की कोशिश करता है. सीरीज़ छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक अंतरद्वंद्वों को ठीक तरीके से पर्दे पर उतारती है. ग्राम्य जीवन की कुरीतियों और रूढ़ियों को जांचती है और पूरे टाइम उनको सुधारने के प्रयास में लगी रहती है. सीरीज़ की शुरुआत में 10 से 15 सेकंड तक स्क्रीन ब्लैक रहती है और सिर्फ़ वॉयस ओवर चलता है. शब्दों की ओर ध्यान खींचने के तौर पर ये एक अच्छा प्रयोग है. कहीं-कहीं पर सीरीज़ अति भी करती है. छुआछूत वाले मामले में ऐसा लगता है कि इसे और ज़्यादा सहज होकर दिखाया जा सकता था. जैसे डिप्रेशन सरीखे दूसरे मुद्दों के साथ सीरीज़ करती है. कई तरह के बिहारी स्टीरियोटाइप्स से बचा जा सकता था. जैसे बिहार सीमा में पहुंचते ही बैग चोरी हो जाता है, किडनैपिंग हो जाती है एंड ऑल. टेंशन नहीं लीजिए ये किसी तरह का spoiler नहीं है.

निर्मल के रोल में वैभव और आतिश के रोल में आकश
सुंदर आंचलिक संगीत और अच्छे लिरिक्स

फ़िल्म का डायरेक्शन अच्छा है. सतीश नायर और राहुल पांडे ने गांव की आत्मा और उसके भीतरी उथल-पुथल को दिखाने की एक बेहतर कोशिश की है. हालांकि उनसे कई सारी गलतियां भी हुई हैं, पर वो ऐसी नहीं हैं जिन्हें इग्नोर न किया जा सके. सीरीज़ की मधुर बात है रोहित शर्मा का म्यूज़िक, लोक से जुड़ा हुआ और आंचलिकता समेटे हुए कानों को सुकून देता संगीत. बैकग्राउन्ड स्कोर भी सुंदर है. पर सुना-सुना लगता है. इसके गानों के लिरिक्स भी बहुत अच्छे हैं. खासकर जिन गानों के बोल भोजपुरी में हैं वो और ज़्यादा अच्छे हैं. इसके लिए डॉक्टर सागर की तारीफ़ तो बनती है. सीरीज़ का साउन्ड डिजाइन भी बेहतर है. गांव की अलग-अलग आवाज़ों को अनिल कुमार ने बहुत सुंदर ढंग से पिरोया है.  सिनेमैटोग्राफी भी अच्छी है. नदी वाले फ्रेम्स बहुत सुंदर हैं. उनमें रंग उभरकर आए हैं. बस ऐसा लगता है ड्रोन शॉट्स थोड़े कम होते तो ठीक था. एक सीन जिसमें अस्थिकलश निर्मल के हाथ से छूटता है और उसकी राख घर में चारों तरफ़ बिखर जाती है. वो कमाल का सीन सेटअप है, सिनेमा लवर्स के लिए एक तरह की ट्रीट.

निर्मल की मां के रोल में अल्का
 छा गए अलका अमीन और पंकज झा 

लगभग हर ऐक्टर ने ठीक काम किया है. निर्मल पाठक के रोल में वैभव ने जितना ज़रूरी था, उतना ही अभिनय किया है. वो इससे ज़्यादा करते तो दर्शकों का मज़ा किरकिरा हो जाता. निर्मल के कज़िन के रोल में आकाश मखीजा ने बढ़िया काम किया है. निर्मल की हर बात मानने और फिर बात न मानने के बीच का ट्रांसफॉर्मेशन उन्होंने ठीक ढंग से पेश किया है. अलका अमीन ने बहुत अच्छा अभिनय किया है. एक औरत जिसके पति उसे 24 साल पहले छोड़कर चले गए थे, उनके मन में क्या हो सकता है. एक महिला जो परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित है वो असल में कैसी हो सकती है. इच्छाओं को मारती स्त्री का इससे अच्छा पोट्रेयल नहीं हो सकता था. निर्मल के चाचा के रोल में पंकज झा से आपको एक समय नफ़रत हो जाती है. उनकी क्रूरता पर गुस्सा आता है. ये एक अभिनेता की सफलता है. विनीत कुमार ने कम स्क्रीन टाइम मिलने के बावजूद अमिट छाप छोड़ी है. गेंदा बुआ के रोल में गरिमा विक्रांत सिंह ने सहज अभिनय किया है. तनिष्क राणा और इशिता गांगुली ने बढ़िया काम किया है. आतिश के दोस्तों के रोल में सभी ने बढ़िया काम किया है. पर जिन्हें स्पेशल मेन्शन किया जाना चाहिए, वो हैं लबलबिया बने कुमार सौरभ. उन्होंने पंचायत 2 वाले बिनोद जैसा काम किया है, एकदम अप टू द मार्क.

सीरीज़ की सबसे अच्छी बात है, इसके डायलॉग्स सिम्पल और मीनिंगफुल.  जैसे, जब लबलबिया निर्मल से कहता है, 

छोटे थे ना भैया तो झूठमूठ का रोते थे, बड़े हुए तो झूठमूठ का मुस्कुराते हैं. 

या फिर जब निर्मल कहता है, 

बाप बेटे का रिश्ता ऐसा होता है, जैसे किसी बस ड्राइवर और यात्री का, सफ़र साथ करते हैं, पर ज़रूरत से ज़्यादा बात नहीं होती. 

इसके डायलॉग्स ही इस सीरीज़ का असली हासिल हैं. यदि सीरीज़ कुछ स्टीरियोटाइप्स से खुद को बचा ले जाती, तो शायद ये एक बेहतरीन फैमिली वेब सीरीज़ ‘गुल्लक’ के समकक्ष खड़ी हो सकती थी. फिर भी 'निर्मल पाठक की घर वापसी' अच्छी अदाकारी और अच्छे डायलॉग्स के लिए देखी जानी चाहिए. तो जाईए 5 एपिसोड की ये सीरीज़ सोनीलिव पर स्ट्रीम हो रही है, देख डालिए.

वेब सीरीज़ रिव्यू: ‘मुंबई डायरीज़’ का आईडिया बहुत अच्छा, लेकिन कहां मात खा गई?

Advertisement