नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी NCB ने शाहरुख खान के बेटे आर्यन को अरेस्ट कर लिया. नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेस एक्ट के सेक्शन 8सी, 20बी, 27 और 35 के तहत उनकी गिरफ्तारी हुई है. हमारे फोन स्क्रीन्स से लेकर टीवी स्क्रीन्स तक, लगातार एक ही नाम फ्लैश हो रहा है. NCB का. और ऐसा लंबे समय से हो रहा है. सुशांत सिंह राजपूत डेथ केस में भी NCB एक्टिव हुआ. घंटों लंबी पूछताछ हुईं. गिरफ्तारिया हुईं. लेकिन सवाल ये है कि ये NCB है क्या? इनके अधिकारक्षेत्र में क्या-क्या आता है? पुलिस से शुरू होने वाले केस NCB तक कब पहुंचते हैं? ड्रग अब्यूज़ के खिलाफ काम करने वाली NCB के लिए कौन से पदार्थ कानूनी हैं और कौन से गैर-कानूनी? और ये नार्कोटिक्स एक्ट क्या है, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर सज़ा होती है. आज NCB और इसके कामकाज से जुड़ी अहम बातों से आपको परिचित कराएंगे.

# कौन से ड्रग्स दवा और कौन से ज़हर?
ड्रग्स को बेसिकली लिसिट और इलिसिट की कैटेगरी में बांटकर देखा जाता है. यानी कानूनी और गैरकानूनी ड्रग्स. फिर कुछ आते हैं, जो नैचुरल तरीकों से बनाए जाते हैं. जैसे हेरोइन, जिसे अफीम पोस्ता से बनाया जाता है. या कैमिकली तैयार किए जाने वाले ड्रग्स. एक्स्टेसी, LSD आदि. ड्रग्स चाहे किसी भी तरीके से बनाए जाते हों. लेकिन ये सभी किसी न किसी स्तर तक दिमाग पर असर करते हैं. इसलिए इनकी कैटेगरी को समझने का सबसे सही तरीका है कि इनके दिमाग पर होने वाले इफेक्ट के आधार पर इन्हें बांट दिया जाए. दिमाग पर असर के आधार पर दो कैटेगरी आती हैं – Stimulant यानी उत्तेजक और डिप्रेसेंट यानी अवसादक. दोनों के बारे में जानते हैं.
#1. उत्तेजक: आम भाषा में इन्हें ‘अपर’ कहा जाता है. ऐसा क्यों. क्योंकि ये ऐसे नशीले पदार्थ होते हैं जो शरीर की एनर्जी को कई गुना बढ़ा देते हैं. दरअसल ये दिमाग और सेंट्रल नर्वस सिस्टम के बीच होने वाले मैसेज के आदान-प्रदान को ज़बरदस्त तरीके से बढ़ा देते हैं. इनके इस्तेमाल के वक्त इंसान खुद को ‘टाइटैनिक’ वाला जैक समझने लगता है. जैसे मैं ही इस दुनिया का राजा हूं. लेकिन इनका असर उतरने के बाद कमज़ोरी महसूस होती है. शरीर कांपने लगता है. थकान की शिकायत होती है. कोकीन, ‘ब्रेकिंग बैड’ वाला क्रिस्टल मैथ और एक्स्टेसी कुछ गैरकानूनी उत्तेजक हैं. वहीं, कॉफी में पाया जाने वाला कैफीन भी एक उत्तेजक है. रिटालिन एक Stimulant दवा है, जिसे डॉक्टर्स स्लीपिंग डिसऑर्डर से परेशान पेशंट्स के लिए प्रेस्क्राइब करते हैं.

#2. अवसादक: इन्हें आम भाषा में ‘डाउनर’ कहा जाता है. उत्तेजक से ठीक उलटा फंक्शन है इनका. अवसादक वो नार्कोटिक सब्स्टेंस हैं, जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम और ब्रेन के बीच आने-जाने वाले सिग्नल्स को धीमा करते हैं. इससे इंसान को तनावरहित होने का एहसास होता है. लीगल डिप्रेसेंट्स इनसोमनिया और एंग्ज़ाइटी से जूझ रहे मरीजों को प्रेस्क्राइब किए जाते हैं. शराब, पेनकिलर्स और हेरोइन डाउनर्स के कुछ उदाहरण हैं. इनमें से शराब और पेनकिलर्स लीगल हैं. वहीं, हेरोइन इललीगल.
अब बात NDPS एक्ट और उसके अंतर्गत काम करने वाली NCB की.
# NDPS एक्ट कितना सख्त है?
हमारे संविधान का आर्टिकल 47 कहता है,
राज्य मेडिसिनल यूज़ से अलग मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सब्स्टेंसेज़ के यूज़ का निषेध करेगा.
संविधान के इसी आर्टिकल पर बेस्ड है ‘नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज़ एक्ट, 1985′. जिसे शॉर्ट फॉर्म में NDPS एक्ट भी कहा जाता है. संसद ने इसे 1985 में पास किया था. ये कानून किसी एक व्यक्त्ति को मादक दवाओं के प्रोडक्शन, सप्लाई, ओनरशिप, ट्रांसपोर्टेशन, खरीद या यूज़ करने के लिए प्रतिबंधित करता है. 1985 में पारित होने के बाद अब तक तीन बार NDPS एक्ट में संशोधन आ चुके हैं – 1988, 2001 और 2014 में.
बहुत सारे नशीले पदार्थ ऐसे हैं, जिनका उत्पादन ज़रूरी है. लेकिन इन पर कड़ी निगरानी रखने की भी ज़रूरत होती है. वर्ना बड़े स्तर पर किए गए प्रोडक्शन से लोगों में लत पड़ने का भी खतरा है. ऐसे में सरकार NDPS एक्ट के तहत नशीले सब्स्टेंसेज़ पर कंट्रोल कसती है. NDPS एक्ट एक सख्त कानून है. इसकी धारा 42 के अंतर्गत इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर को बिना किसी वॉरंट के तलाशी लेने, मादक पदार्थ ज़ब्त करने और गिरफ्तार करने का अधिकार है.
# कौन-कौन से ड्रग्स प्रतिबंधित हैं?
NDPS एक्ट के तहत प्रतिबंधित ड्रग्स की लिस्ट जारी होती है. जिसे केंद्र सरकार जारी करती है. हालांकि, ये लिस्ट समय-समय पर बदलती भी रहती है. लिस्ट में बदलाव के लिए राज्य सरकारें भी सुझाव देती हैं. नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज़ एक्ट में दो दवाओं के नाम छिपे हैं. पहला है नार्कोटिक्स. और दूसरा है साइकोट्रॉपिक.
नार्कोटिक होते हैं नींद लाने वाले ड्रग्स. नार्कोटिक में जो दवा या पदार्थ आते हैं, वो नैचुरल होते हैं. या फिर किसी नैचुरल चीज़ से बनते हैं. जैसे गांजा, मॉर्फीन, अफीम, चरस आदि.
दूसरा है साइकोट्रॉपिक. दिमाग के फंक्शन्स पर असर डालने वाले ड्रग्स को साइकोट्रॉपिक कहते हैं. इनमें वो दवाएं आती हैं, जो केमिकल बेस्ड होती हैं. या फिर जिन्हें दो या तीन केमिकल्स को मिलाकर बनाया जाता है. जैसे एलएसडी और एमडीएमए.

इन दवाओं और नशीले पदार्थों से जान जाने की नौबत भी आ सकती है. हालांकि, इनमें से कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो कई बीमारियों से लड़ने में सहायक साबित होते हैं. लेकिन अगर इन्हें अनियंत्रित मात्रा में लिया जाए तो जानलेवा भी साबित हो सकते हैं. जैसे कोरेक्स कफ सिरप याद होगा आपको. लोग उसे नशा करने के लिए इस्तेमाल करने लगे. बाद में सरकार को उसे बैन करना पड़ा था.
नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने वालों को क्या पुलिस पकड़ती है या कोई और संस्था? और क्या 10 ग्राम गांजा रखने वाले और 1 किलो कोकीन के साथ पकड़े जाने वाले का एक ही हश्र होता है? अब इसी के बारे में जानते हैं.
# NCB के अंडर क्या-क्या आता है?
NDPS एक्ट 14 नवंबर, 1985 को लागू किया गया. जिसके तहत एक सेंट्रल अथॉरिटी का गठन किया गया. जो केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करेगी. नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने वाली इस इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी का नाम था नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो. जिसे हम सब NCB के नाम से पहचानते हैं. इसके डेप्यूटी डायरेक्टर जनरल इंडियन पुलिस सर्विस या इंडियन रेवेन्यू सर्विस के अधिकारी होते हैं. NCB का मेन ऑब्जेक्टिव है इललीगल नशीले सब्स्टेंसेज़ के प्रोडक्शन, डिस्ट्रब्यूशन और मिसयूज़ आदि से जुड़े मामलों पर कार्रवाई करना.
पिछले लंबे समय से मीडिया में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का नाम अलग-अलग ड्रग्स केस में सामने आ रहा है. सभी के खिलाफ NCB कार्रवाई कर रही है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि NCB सिर्फ हाई प्रोफाइल केसों से ही वास्ता रखती है. NCB के ज़ोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि NCB के लिए सब बराबर हैं. बस मीडिया अटेंशन की वजह से आम केसों पर किसी का ध्यान नहीं जाता. जैसे उन्होंने बताया कि एक रेड में उन्होंने एलएसडी बरामद किया. वो भी हिटलर की ऑटोबायोग्राफी ‘माइन काम्फ़’ से. एक बेकरी पर छापा मारा. जहां गांजे को इस्तेमाल कर पेस्ट्रीज़ बनाई जा रही थी.

चूंकि, NCB सीधे केंद्र सरकार के अंडर काम करती है. इसलिए वो देश में कहीं भी कार्रवाई कर सकते हैं. NCB को किसी भी तरह ड्रग अब्यूज़ से जुड़ा इंटेलिजेंस जुटाना होता है. जिसके लिए वो सीबीआई, स्टेट पुलिस और अन्य एंफोर्समेंट एजेंसीज़ की भी मदद ले सकते हैं. ऑल इंडिया लेवल पर ड्रग ट्रैफिकिंग से लड़ने के साथ-साथ NCB विदेशी ड्रग लॉ एंफोर्समेंट एजेंसीज़ को भी असिस्ट करती है.
ड्रग अब्यूज़ के मामले में अरेस्ट करने के बाद NCB सज़ा कैसे डिसाइड करती है, अब उसके बारे में बताते हैं.
# ‘मात्रा’ इम्पोर्टेंट है बाबू
NDPS एक्ट के तहत तीन मानकों पर सज़ा निर्धारित की जाती है. ये सज़ाएं बैन्ड सब्स्टेंसेज़ की क्वांटिटी के बेसिस पर तय होती है. मात्रा या क्वांटिटी के आधार पर तीन तरह की सज़ा होती हैं:
#1. स्मॉल क्वांटिटी: अगर कोई इंसान कम मात्रा में इललीगल ड्रग्स का यूज़ या सप्लाई कर रहा है तो उसे छह महीने से एक साल तक की जेल हो सकती है. साथ ही 10 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया जाएगा. इस तरह का अपराध जमानती होता है. हालांकि बार-बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो सकता है.
#2. कमर्शियल क्वांटिटी: इस तरह के अपराध में पकड़े जाने पर जमानत नहीं मिलती. 10 से 20 साल तक की जेल और एक से दो लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
#3. स्मॉल और कमर्शियल के बीच की क्वांटिटी (Intermediate Quantity): इस केस में 10 साल तक की सज़ा और एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले सब्स्टेंस और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है.

यहां एक बात और बता दें. कि केंद्र सरकार समय-समय पर क्वांटिटी बदलती रहती है. किसी भी नशीले सब्स्टेंस की कम क्वांटिटी किसी दूसरे नशीले सब्स्टेंस की स्मॉल क्वांटिटी से अलग हो सकती है. जैसे पांच ग्राम हेरोइन और एक किलो गांजा, दोनों ही स्मॉल क्वांटिटी वाले अपराध में शामिल हैं. यहां मामला ट्रिकी हो जाता है. कि किसी भी सब्स्टेंस की क्वांटिटी और उसके आधार पर सज़ा कैसे निर्धारित की जाए. ऐसे में नशे के टाइप के हिसाब से क्वांटिटी तय होती है. जैसे हेरोइन गांजे से ज्यादा नशीली है.
# क्या सज़ा मिलती है?
NDPS एक्ट की कुछ मेजर धाराओं में ड्रग्स की सप्लाई करना, तस्करी करना, ड्रग्स के कारोबार में पैसा लगाना, खुद ड्रग्स लेना, या अफीम की खेती करना जैसे अपराध शामिल हैं.
#1. सेक्शन 19 के तहत अफीम की खेती करने पर 10 से 20 साल तक की सज़ा और 1-2 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है.
#2. सेक्शन 23 के तहत नार्कोटिक या साइकोट्रॉपिक दवाओं की सप्लाई पर 6 महीने से लेकर 20 साल तक की सज़ा हो सकती है.
#3. सेक्शन 27 के अंतर्गत कोकीन, मॉर्फीन, हेरोइन लेने पर एक साल तक की सज़ा, 20 हज़ार रुपए का जुर्माना, या फिर दोनों हो सकता है.
#4. अगर कोई शख्स बार-बार अपराध करता है, तो पहले की तुलना में अगली बार डेढ़ गुना सज़ा मिलती है. साथ ही मृत्युदंड भी दिया जा सकता है. ऐसा NDPS एक्ट की धारा 31 (A) के तहत किया जा सकता है. हालांकि ऐसा बहुत कम होता है.
#5. इस कानून में एक राहत भी है. अगर कोई शख्स ड्रग्स के नशे का आदी है, लेकिन वह इसे छोड़ना चाहता है, तो सेक्शन 64 A के तहत उसे इम्युनिटी यानी राहत मिल जाएगी. सरकार उसका इलाज भी कराती है.
#6. NDPS एक्ट के फर्जी मुकदमों से बचाने के लिए धारा 50 बचाव का काम करती है. इसके तहत अगर पुलिस या किसी जांच अधिकारी को किसी के पास नशीला सब्स्टेंस होने का शक हो, तो उसकी तलाशी किसी गजेटेड अधिकारी या मजिस्ट्रेट के सामने ही ली जा सकेगी.
#7. NDPS एक्ट में तीन पौधों को भी शामिल किया गया है. इनकी खेती, खरीदने-बेचने, यूज़, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग के लिए सरकार से परमिशन लेना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो सज़ा मिल सकती है. ये पौधे हैं- कोका जिससे कोकीन बनता है, गांजा और पोस्त जिससे अफ़ीम बनती है.
तो ये थी अथ श्री NCB कथा. नशा घातक चीज़ है. ईश्वर आपको इससे और NCB से दूर रखे.
वीडियो: जब आर्यन खान से पहले जैकी चैन के बेटे को ड्रग्स के आरोप में अरेस्ट कर लिया गया था