इंडिया टुडे के लिए साईकिरन कन्नन (Saikiran Kannan) ने ये लेख लिखा है. कन्नन सिंगापुर बेस्ड ओपन सोर्स इंटेलिजेंस एनालिस्ट हैं.
विवादित दक्षिणी चीन सागर में चीन की कथित विस्तारवादी गतिविधियां, और सैन्य महत्व के समुद्री क्षेत्रों में बहुत ज्यादा ओशिएनोग्राफिक रिसर्च (समुद्र विज्ञान रिसर्च) उन देशों के लिए चिंताएं बढ़ा रही है जो इस इलाके में स्थित हैं.
कुछ दिन पहले की ही बात है जब इंडोनेशिया के एक मछुआरे को सेलायार आइलैंड के पास एक अंडरवाटर ड्रोन मिला. आमतौर पर अंडरवाटर ड्रोन कैमरे से लैस होते हैं, इनमें कई तरह के सेंसर लगे होते हैं. ये पूरा डेटा अपने सेंटर्स को भेज देते हैं. इनको अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल यानी UUV कहा जाता है. जब मछुआरे को ये ड्रोन मिला तो उसने इसे पकड़ लिया. खबर और तस्वीरें मीडिया और सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुईं और साथ ही उठ खड़ा हुआ एक सवाल. वो ये कि आखिर ये चीनी ड्रोन यहां कर क्या रहा था?
क्योंकि ये UUV जिस जगह मिला वो इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी के सेलायार आइलैंड के पास है. ये जगह चीन के समुद्री इलाके से भी काफी दूर है. ऐसे में यही माना जा रहा है कि ये इंडोनेशिया के समुद्री इलाके में स्थिति शिपिंग लाइन्स की निगरानी कर रहा था. ये शिपिंग लाइंस उन रास्तों को कहा जाता है जिनके जरिए पानी के जहाज एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं. यहां खास बात ये है कि ये वो गहरे पानी के चैनल हैं जो साउथ चाइना सी को हिंद महासागर से जोड़ते हैं. यानी अब तस्वीर में भारत भी दिख रहा है और चीन का प्लान भी.

इंडोनेशिया बेशक ये मानता रहा हो कि उसका साउथ चाइना सी को लेकर चीन के साथ कोई विवाद नहीं है, लेकिन चीन तो उसके एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में आने वाले समुद्री इलाके पर अपना हक पहले भी जता चुका है. कह चुका है कि ये इलाका हमारा है. दूसरी एक खास बात ये भी है कि ये इलाका पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के उत्तर की ओर जाने वाली शिपिंग लाइनों से भी जुड़ा हुआ है. चलिए थोड़ा और विस्तार से इस इलाके का महत्व आपको बताते हैं. समझने वाली बात ये है कि ये वही रास्ता है जिसके जरिए मिडिल ईस्ट से चीन तक तेल पहुंचता है. और ये वही रास्ता है जिसके जरिए सिंगापुर से ऑस्ट्रेलिया तक रिफाइंड फ्यूल पहुंचाया जाता है.
और ये कोई पहला मामला नहीं है जब चीन के अंडरवाटर ड्रोन मिले हैं. मार्च 2019 में ऐसा ही एक अंडरवाटर ड्रोन दुनिया के सबसे वयस्त समुद्री रास्ते यानी मलक्का की जलसंधि से मिला था. ये वो इलाका है जो इंडोनेशिया और सिंगापुर के बीच में है. अब आपके दिल में सवाल हो सकता है कि ये जलसंधि क्या होती है? दरअसल दो समुद्र के बीच में कोई ऐसा रास्ता जहां से समुद्री जहाज गुजर सकते हैं वो जलसंधि या जलडमरू कहलाता है. ये जो रास्ता होता है इसके दोनों और जमीन होती है, बीच में ऐसी नहर होती है जो एक समुद्र को दूसरे से जोड़ती है. यही नहर जलसंधि कहलाती है.
तो पहले एक ड्रोन मार्च 2019 में मलक्का की जलसंधि में मिला. इसके बाद जनवरी 2020 में दक्षिणी इंडोनेशिया के सुंडा आइलैंड के पास भी एक ऐसा ही ड्रोन मिला. इसके बाद 20 दिसंबर 2020 को इंडोनेशिया की लोमबोक जलसंधि के पास एक ड्रोन मिला. ये जो जलसंधि है वो जावा समुद्र को हिंद महासागर से जोड़ती है.
स्थानीय लोगों ने इन ड्रोन्स की कई तस्वीरें लीं जिनसे पता चलता है कि ये ड्रोन किसी लंबे हवाई जहाज जैसी शक्ल के होते हैं. इनमें पंख भी होते हैं. कई तरह के सेंसर होते हैं, लंबी दूरी के ट्रांसमीटर्स भी होते हैं. ये ड्रोन डेटा को रिकॉर्ड करते हैं और मॉनिटरिंग स्टेशन्स तक भेजते हैं. हो सकता है कि ये ड्रोन चीनी नौसेना की पनडुब्बियों तक डेटा पहुंचाते हों.
एक्सपर्ट ऐसा मानते हैं कि ये जो ड्रोन होते हैं, इनमें से अधिकतर किसी पावरसोर्स आदि से नहीं चलते हैं. जिस सिद्धांत पर ये चलते हैं उसको वरिएबल बोउयेंसी प्रोपल्शन (variable-buoyancy propulsion) कहा जाता है. इसके लिए इसमें प्रेशराइज़्ड ऑयल भरा जाता है जो इसको आगे धकेलता रहता है. इस दौरान ये ड्रोन कभी पानी के नीचे होते हैं, कभी ऊपर होते हैं और ऐसे ही आगे बढ़ते रहते हैं. इसमें इनके पंख बहुत काम आते हैं.
A fisherman in Selayar Island, South Sulawesi, has found a UUV:
Length: 225 cm
Tail: 18 cm
Wingspan: 50 cm
Trailing antenna: 93 cmVery similar to China's 'Sea Wing' UUV, which, if it's true, raised many questions especially how it managed to be found deep inside our territory pic.twitter.com/RAiX8Xw2BK
— JATOSINT (@Jatosint) December 29, 2020
इंडोनेशिया की मीडिया में उस ड्रोन की लंबाई चौड़ाई भी बताई गई थी जिसको मछुआरे ने पकड़ा था. लंबाई थी 225 सेंटीमीटर और पंख 59 सेंटीमीटर चौड़े थे. 93 सेंटीमीटर का एक एंटीना भी इसमें फिट था. इंडोनेशिया के एक ओपनसोर्स इंटेलीजेंस रिसर्चर (OSINT) ने इस बारे में कुछ ट्वीट किए थे और दावा किया था कि ये सी-विंग ग्लाइडर चीन का ही है. पहली बात तो ये कि इस तरह के ड्रोन्स का निर्माण केवल कुछ ही देश करते हैं जैसे अमेरिका, चीन और फ्रांस. नौसेना के एक्सपर्ट्स का मानना है कि पकड़े गए ड्रोन में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि ये चीन का ही है.
# इस ड्रोन में जो टेलफिन है वो नीचे की ओर है जबकि आमतौर पर ऐसे ग्लाइडर्स में ये टेलफिन ऊपर की ओर उठी होती है.
# इस ड्रोन के अगले हिस्से में तीन सेंसर लगे थे और इसके पंख फोल्डेबल थे. एक एंटीना पूंछ की ओर से बाहर निकला हुआ था.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये ड्रोन जो डेटा जमा करते हैं उनमें तापमान, पानी में गंदगी, खारापन, क्लोरोफिल और ऑक्सीजन लेवल होते हैं. ये डेटा नौसेनिक पनडुब्बियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. इनके आधार पर वो आगे का प्लान बना सकते हैं और दुश्मन की आंख से अपनी पनडुब्बी को बचा सकते हैं.
इंडिया टुडे ने इसकी विस्तृत जानकारी के लिए बात की HI Sutton से जो एक डिफेंस एनालिस्ट हैं और सबमरीन और नौसेनिक गतिविधियों पर नजर रखते हैं.
उन्होंने कहा कि जो UUV इंडोनेशिया में पाए गए हैं उनका डिजाइन किसी दूसरे variable-buoyancy propelled gliders जैसा ही है. अंदर से ये कैसा होगा इसके बारे में हम दूसरे ग्लाइडर की जानकारी और तस्वीरों के आधार पर अनुमान लगा सकते हैं. जैसे सी-विंग में कंडक्टिविटी, टेंपरेचर और गहराई नापने वाले सेंसर हो सकते हैं. इसके अलावा इसमें टर्बुलेंस मीटर, क्लोरोफिल सेंसर, डिजोल्व ऑक्सीजन सेंसर, नाइट्रेट और दूसरे बायोकेमिकल सेंसर हो सकते हैं.
HI Sutton के कहा कि इसमें आवाज को मापने वाले सेंसर भी हो सकते हैं जैसे ADCP (acoustic doppler current profile), अंडरवाटर कम्युनिकेशन और हाइड्रोफोन्स. ये UUV अलग अलग तरह के काम कर सकते हैं. साइंटिफिक रिसर्च कर सकते हैं, समुद्री गतिविधियां नाप सकते हैं, और ये चीजें रिसर्च में भी मदद करती हैं, साथ ही नौसेनिक अभियानों में भी मददगार होती हैं.
इंडोनेशिया कर रहा जांच
जिस ड्रोन को पकड़ा गया है उसके इंडोनेशिया के मकास्सर नौसेनिक बेस पर जांच के लिए ले जाया गया है. सैन्य जानकारों के मुताबिक ये ड्रोन्स सबमरीन हंटर्स का काम भी कर सकते हैं. उनका पता लगा सकते हैं, उनकी पहचान कर सकते हैं, उनका पीछा कर सकते हैं, फोटो ले सकते हैं और पानी के भीतर ही उनका काम भी तमाम कर सकते हैं. इंडोनेशिया के सिक्योरिटी एनालिस्ट मोहम्मद फौजान ने अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी से बात करते हुए कहा कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे ये ड्रोन भविष्य के लिए सबमरीन रूट्स तलाश कर रहे हैं. ये चीन के समुद्र से काफी दूर था और उस महत्वपूर्ण रास्ते पर था जो चीन और ऑस्ट्रेलिया को जोड़ता है.
उन्होंने कहा कि जिस वक्त मछुआरे ने ड्रोन को पकड़ा ये एक्टिव था. हिल रहा था और लाइट ब्लिंक कर रही थी. आगे के सेंसर भी काम कर रहे थे. ये पहली बार हुआ कि सेना ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वो इसकी जांच कर रहे हैं. हाल में ही ये भी जानकारी मिली है कि इसको सुराबाया के सेकेंड फ्लीट हेडक्वाटर्स ले जाया गया है. इसके बाद भी अभी तक ये दावा नहीं किया जा सकता है कि ये किस देश का है और कौन इसको ऑपरेट कर रहा था. इंडोनेशिया की नौसेना के मुखिया चीफ एडमिरल यूडो मारगोने ने कहा है कि नेवी का सेंटर फॉर हाइड्रोग्राफी और ओशिनोग्राफी एक महीने में इसकी और इसके डेटा की जांच करेगा जिसके आधार पर इसके मालिक का पता लगाया जा सकेगा.
चीन का कुबूलनामा
चीन के एकेडमी ऑफ साइंसेज़ ने दिसंबर 2019 में कहा था कि उसमें हिंद महासागर में ऐसे दर्जनों ड्रोन्स छोड़े हैं. दावा किया गया कि इन ड्रोन्स ने 1200 किलोमीटर तक का सफर किया और 6.5 किलोमीटर की गहराई तक गोता लगाया. 2017 में एकेडमी ने साउथ चाइना सी में ऐसा ही एक सर्वे किया. अक्टूबर 2019 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की मिलिट्री परेड में HSU001 सीरिज को दिखाया गया. दावा किया गया कि ये UUV बहुत सारे छोटे ड्रोन्स को लॉन्च कर सकता है.
चीन की हरकत से दूसरे देश परेशान
चीन के इस गुप्त सर्वे से इस पूरे इलाके के जो देश हैं वो चिंतित हैं. खास तौर से ऑस्ट्रेलिया जिसके साथ पहले से ही चीन की खटपट चल रही है. डिफेंस एनालिस्ट HI Sutton कहते हैं कि कुछ मामलों में हो सकता है कि ये ड्रोन सिविलियन रिसर्च का काम कर रहे हों लेकिन ये शक के घेरे में आते जरूर हैं और ये भी हो सकता है कि चीन इंडोनेशियन समुद्र के रास्ते भारतीय जलसीमा में घुसने की कोशिश कर रहा हो. या फिर उसका कोई दूसरा प्लान भी हो सकता है. सुंडा जलसंधि और लोम्बोक जलसंधि के रास्ते युद्ध की स्थिति में बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर चीन के नेवी इन रास्तों को इस्तेमाल करती है तो ड्रोन्स ने जो जानकारी जुटाई है वह उनके काफी काम आएगी.
चीन पहले भी दूसरों के समुद्र में घुसपैठ करता रहा है और कई बार पकड़ा भी गया है. सितंबर 2020 में भारतीय नेवी ने अंडमान निकोबार के पास चीन के सर्वे शिप शियान-1 को पकड़ा था. साल 2012 से ही चीन अंडमान के इलाके में और बंगाल की खाड़ी में अपनी सबमरीन को भेजता रहा है. अगर कभी हालात बिगड़े तो जिस इलाके में चीनी ड्रोन मिले हैं वो इलाका जापान, ऑस्ट्रेलिया और साउथ कोरिया जैसे देशों को दबाने में महत्वपूर्ण साबित होगा.
वीडियो- ये UN सिक्योरिटी काउंसिल क्या है, जहां भारत के रास्ते में चीन रोड़ा बनकर खड़ा रहता है?