दिल्ली मेट्रो से लेकर ट्रेन में सफर करते समय अगर आपने खिड़कियों को ध्यान से देखा होगा तो इनमें ब्लैक कलर के छोटे-छोटे डॉट्स नजर आते हैं. कार और बस की विंडशील्ड पर भी डॉट्स की ऐसी ही लाइन बनी होती है. गौर से देखने पर इनकी महीन सी परत भी नजर आती है. आखिर क्या खास हैं इन डॉट्स में, जो ट्रेन के कांच से लेकर कार और बस की विंडशील्ड में इनकी सीट पक्की होती है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये ब्लैक डॉट्स हीट मैनेजमेंट और विंडशील्ड प्रोटेक्शन का सबसे जरूरी हिस्सा संभालते हैं. अगर इन डॉट्स पर दाग लग जाएं मतलब खराब हो जाएं तो नुकसान पक्का है. अब ऐसे में क्या करना चाहिए वो जानते हैं.
ट्रेन से लेकर बस और कार के कांच पर इन ब्लैक डॉट्स का क्या मतलब है?
काले रंग के डॉट्स सिर्फ डिजाइन के लिए नहीं होते हैं.

ब्लैक कलर के इन डॉट्स को फ्रिट्स (frits) कहते हैं. अलग-अलग वाहनों में इनका आकार भिन्न होता है. मसलन कुछ कंपनियां राउंड शेप में इन डॉट्स का प्रयोग करती हैं तो कुछ इन्हें स्कवॉयर साइज में इस्तेमाल करती हैं. ये छोटे डॉट्स कार या ट्रेन की निर्माण प्रक्रिया के दौरान ही विंडस्क्रीन और विंडो ग्लास के किनारों पर लगाए जाते हैं. शुरू में ये गहरे रंग के और बड़े साइज के होते हैं. जैसे-जैसे ये आगे बढ़ते हैं, इनका साइज छोटा और रंग हल्का होता जाता है, जिससे ये आपको नीचे की तरफ फेडेड (तकरीबन अद्रश्य) होते नज़र आते हैं. इस पैटर्न को “halftone pattern,” कहते हैं. बहरहाल, इनका आकार कैसा भी हो लेकिन इनको ग्लास पर लगाने का कारण एक जैसा ही है.

विंडशील्ड या विंडो ग्लास पर इस्तेमाल किए जाने वाले ये छोटे डॉट्स सिरेमिक मैटीरियल से बनाए जाते हैं. इस मैटीरियल का पहला काम कांच को फिक्स करने के लिए लगाए गए ग्लू को पिघलने से बचाना होता है. विंडशील्ड या विंडो ग्लास लगाने से पहले शीशे के चारों ओर ग्लू लगाया जाता है. काले रंग के इस ग्लू को urethane सीलेंट कहते हैं. सूरज की तेज रोशनी में ये ग्लू खराब हो सकता है और समय के साथ इसकी पकड़ भी कमजोर पड़ सकती है, ऐसे में ये छोटे डॉट्स ग्लू को पिघलने से बचाते हैं. इससे विंडशील्ड और विंडो ग्लास अपनी जगह पर मजबूती से चिपकी रहती हैं. ग्लू को पिघलने से बचा लिया. अब चलते हैं दूसरे कारण पर.

ब्लैक डॉट्स कांच के तापमान को समान रूप से वितरित करने में मदद करते हैं. दरअसल, कांच को मनचाहे आकार में ढालने के लिए या कहें बैंड करने के लिए गर्म किया जाता है. गर्म करने से कांच नए शेप में तो आ जाता है और फिट भी हो जाता है. अब ट्रेन, कार या बस का कांच तो अधिकतर एक्सट्रीम कंडीशन में होता है. ऊपर से ग्लू का काला रंग. माने की करेला और नीम चढ़ा टाइप. ऐसे में बाहर का उच्च तापमान इसके लिए खतरनाक हो सकता है. तापमान और काला रंग मतलब सालिड कॉम्बो. इस काले रंग की वजह से कांच का ये वाला हिस्सा बहुत जल्दी गर्म होता है. ब्लैक डॉट्स इस गर्मी को सोखते हैं. गर्मी फेडेड होते (छोटे होते) हुए ब्लैक डॉट्स पर जाकर खत्म हो जाती है. तकनीक की भाषा में इसको ऑप्टिकल डीफॉर्मेशन कहते हैं.
तीसरा कारणये ब्लैक डॉट्स ग्लास के लुक को बेहतर बनाने में भी मदद करते हैं. किनारे पर काले डॉट्स होने की वजह से सूरज की रोशनी भी सीधे-सीधे आंखों पर नहीं पड़ती है. ड्राइव करते समय ट्रैन्ज़िशन इफेक्ट भी आसान हो जाता है. वैसे आमतौर पर इन ब्लैक डॉट्स की उम्र बहुत होती है, लेकिन किसी वजह से अगर ये निकल जाते हैं या कट जाते हैं तो बिना देर किये इनको ठीक करा लें.
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