
इस वक्त ज़्यादातर फ़ोन एंड्रॉयड 10 पर चल रहे हैं, जबकि एंड्रॉयड 11 को आए हुए टाइम हो गया है.
प्रोसेसर का चुनाव सबसे जरूरी एक फोन की जान उसका प्रोसेसर ही है. बाकी कोई भी चीज़ देखने से पहले प्रोसेसर का चुनाव करिए. आपके फोन की स्पीड, कैमरा परफॉर्मेंस, बैटरी बैकअप के साथ दूसरी कई चीजें प्रोसेसर ही तय करता है. चिप का साइज़ जितना छोटा होता है, उसकी परफॉर्मेंस उतनी ही अच्छी होती है. ये नैनो मीटर में नापा जाता है. साल 2021 को मद्देनज़र रखते हुए 12nm से बड़े साइज़ का चिप न ही लीजिए तो बेहतर है. मिड-रेंज फोन में 8nm तक का साइज़ सही है. फ्लैगशिप फोन में नए वाली जेनरेशन यानी क़्वालकॉम स्नैपड्रैगन 888 और Apple A14 चिप 5nm साइज़ की है. पुराने जेनरेशन के 7nm वाले फ्लैगशिप जैसे कि SD865 या A13 भी दो-तीन साल के इस्तेमाल के लिए बढ़िया हैं.

इन कम्पनियों के फ़ोन में स्नैप्ड्रैगन 888 प्रोसेसर लगा हुआ होगा. (फ़ोटो: Qualcomm)
RAM और स्टोरेज फ़ोन की RAM का मेन इस्तेमाल मल्टी-टास्किंग के लिए होता है. जितनी ज़्यादा RAM होगी, बैकग्राउंड में उतने ही ज्यादा ऐप्स चल सकते हैं. कम RAM होने पर आपके पुराने ऐप अपने आप बैकग्राउंड में बंद हो जाते हैं. बजट फोन में 3GB-4GB RAM से काम चल जाता है. मिड-रेंज फोन का पूरा मज़ा 6GB RAM के साथ आता है. फ्लैगशिप फ़ोन में 12GB RAM भी अब आम बात हो गई है, मगर 8GB RAM से भी आपका काम आराम से हो जाएगा. रही बात स्टोरेज की तो वो आप अपने हिसाब से देख सकते हैं. बस इतना ध्यान रखिए कि आप जो फ़ोन ले रहे हैं, उसमें मेमोरी कार्ड लगाने का स्लॉट है या नहीं. अगर है तो स्टोरेज की इतनी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. डिस्प्ले चकाचक होना चाहिए

हाई रिफ्रेश रेट वाली AMOLED डिस्प्ले सबसे बढ़िया होती है. (फ़ोटो: Mohammad Faisal/ The Lallantop)
आपके फोन की स्क्रीन पर ही आपकी नज़र सबसे ज्यादा टिकती है. इस स्क्रीन का अच्छा होना बहुत जरूरी है. डिस्प्ले टेक्नॉलजी में आपके सामने LCD और AMOLED का ऑप्शन है. LCD में ब्राइटनेस ज्यादा होती है, मगर AMOLED में चूंकि एक-एक पिक्सल बंद हो सकता है इसलिए ये पैनल बैटरी तो बचाता ही है, साथ में कलर बहुत गजब दिखते हैं. अगर LCD और AMOLED में चुनाव करना हो तो आंख बंद करके AMOLED स्क्रीन की तरफ़ जा सकते हैं. इसके अलावा स्क्रीन का रेसॉल्यूशन और रिफ्रेश रेट भी देखना जरूरी है. 6-इंच की स्क्रीन में HD रेसॉल्यूशन किसी काम का नहीं है. इस साइज़ में Full HD स्क्रीन ही देखें. रिफ्रेश रेट से फोन चलाने का एक्सपीरियंस ज्यादा स्मूद होता है इसलिए इसे एक्स्ट्रा फीचर की तरह ट्रीट किया जा सकता है. कैमरे में सिर्फ मेगा-पिक्सल का खेल नहीं होता
स्मार्टफ़ोन कंपनियां आजकल फ़ोन के बैक पर 4-4 कैमरा लगा देती हैं, मगर बजट और मिड-रेंज फ़ोन में आमतौर पर मेन कैमरा को छोड़कर बाकी सब बस नाम बराबर होते हैं. अल्ट्रावाइड-ऐंगल लेंस से आप पिक्चर में ज़्यादा सीन भर सकते हैं, मगर 8MP के लेंस में डीटेल सही नहीं आ पाती है. मैक्रो लेंस करीब की छोटी सी छोटी चीज में बहुत बेहतरीन डीटेल निकाल देते हैं, मगर ज्यादातर 2MP वाले मैक्रो लेंस किसी काम के नहीं होते. ऐसे ही किसी फ़ोन में 2MP का ब्लैक-एंड-व्हाइट लेंस और किसी में 2MP का डेप्थ सेन्सर होता है. मेन कैमरे में भी 48MP और 64MP के लेंस आम हो गए हैं, मगर कैमरे की ताकत सिर्फ उसका मेगा-पिक्सल नहीं होता. कैमरा का सेन्सर साइज़, ऐपर्चर, शटर स्पीड और फ़ोन का प्रोसेसर तय करते हैं कि फ़ोन कैसी फ़ोटो क्लिक करेगा. अगर सब कुछ मेगा-पिक्सल से होता तो 15,000-20,000 रुपए में मिलने वाले 64MP लेंस से लैस फ़ोन आईफोन 12 को भी हरा देते. अगर आप किन्हीं दो कैमरे को कंपेयर करना चाहते हैं तो जिस फ़ोन में बड़े साइज़ का सेन्सर है, उसे चुन लीजिए. बैटरी और चार्जिंग स्पीड

कुछ फ़ोन बिना चार्जर के भी आते हैं, इस बात का भी ध्यान रखिए.
बैटरी कपैसिटी जितनी ज्यादा, उतना अच्छा. कोशिश करिए कि 4000mAh से कम बैटरी वाला फोन न लें. साथ में ये भी ध्यान रखें कि आपके फोन की स्क्रीन जितनी बड़ी होगी, बैटरी उतनी तेजी से खर्च होगी. अगर रिफ्रेश रेट नॉर्मल वाले 60Hz से बढ़कर 90Hz या 120Hz है तो बैटरी खर्च होने की रफ्तार और तेज हो जाएगी. ऐसे ही स्क्रीन का रेसॉल्यूशन जितना ज्यादा होगा, बैटरी उतनी ही तेजी से खर्च होगी. इसलिए बैटरी कपैसिटी के साथ-साथ चार्जिंग स्पीड जरूर देखिए. 10W से नीचे तो किसी स्मार्टफोन में चार्जिंग स्पीड अब नहीं होती है, मगर आपको चाहिए कि कमज़-कम 18W चार्जिंग स्पीड वाला फोन लें. चार्जिंग स्पीड जितनी ज्यादा, उतना ही अच्छा. वज़न और फ़ॉर्म फैक्टर

बड़े फ़ोन एक हाथ से आसानी से इस्तेमाल नहीं किये जा सकते (फ़ोटो: IndiaToday)
फोन खरीदते वक्त हम स्पेक्स और कीमत को तो खूब जमकर कंपेयर कर लेते हैं, मगर एक चीज है जिस पर हमारा ध्यान नहीं जाता- कम्फर्ट. आपका स्मार्टफोन एक मोबाइल डिवाइस है, जिसे आप हर वक्त अपने साथ में रखते हैं. अगर ये मोटा होगा तो जेब में रखने में दिक्कत होगी, वज़न में भारी होगा तो इस्तेमाल करना दुखदायी बन जाएगा. और अगर जरूरत से ज्यादा बड़ा होगा तो एक हाथ से चलाना मुमकिन ही नहीं रह जाएगा. 200gm से ऊपर के फ़ोन को हाथ में लेने पर पता चल जाता है कि ये हल्का नहीं है. आप अपनी सहूलियत के हिसाब से स्क्रीन का साइज़, फोन की थिकनेस और वज़न ज़रूर देख लें.