कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने शुक्रवार, 5 दिसंबर को लोकसभा में एक प्राइवेट बिल पेश किया. इस बिल के ज़रिए उन्होंने सांसदों पर पार्टी लाइन की बाध्यता कम करने की मांग उठाई है. मनीष तिवारी ने बताया कि अच्छे कानून बनाने के लिए सांसदों को 'व्हिप' से मुक्त करना होगा जिससे वो सदन में निष्पक्ष वोट कर पाएं.
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी की मांग, 'व्हिप सिस्टम खत्म करो- अपनी मर्जी से वोट देने दो'
Congress leader Manish Tewari ने बताया कि अच्छे कानून बनाने के लिए सांसदों को 'whip tyranny' से मुक्त करना होगा जिससे वो सदन में निष्पक्ष वोट कर पाएं. उनका कहना है कि सांसद को जनता की आवाज़ के मुताबिक़ फैसला लेना चाहिए न कि केवल अपनी पार्टी के आदेशानुसार.


लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब उन्होंने ये मांग रखी है. इससे पहले भी 2010 और 2021 में इस बिल का प्रस्ताव रखा था. मनीष तिवारी का कहना है कि सांसद को जनता की आवाज़ के मुताबिक़ फैसला लेना चाहिए न कि केवल अपनी पार्टी के आदेशानुसार. उन्होंने अपने X हैंडल से पोस्ट करते हुए इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा,
मैंने तीसरी बार ये विधेयक प्रस्तावित किया है. पहली बार 2010 में और उसके बाद 2021 में प्रस्ताव रखा था. इस विधेयक में दसवीं अनुसूची या एंटी-डिफेक्शन कानून में बदलाव लाने का प्रस्ताव रखा गया है. जिससे सांसद खुद बिल को देखें, समझें और फिर वोट करें. इससे कानून बनाने की प्रक्रिया में स्वतंत्रता आएगी.
हालिया प्रावधान के मुताबिक़, अगर सांसद पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर वोट करते हैं तो उनकी सदस्यता खतरे में पड़ सकती है. इस बिल में किसी सांसद की सदस्यता तभी ख़त्म होगी जब वो विश्वास-अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव या वित्तीय मामलों पर पार्टी निर्देश के खिलाफ वोट दें या अनुपस्थित रहें. अन्य मामलों में सांसद अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ किसी बिल पर वोट दे सकते हैं.
इस बिल की ज़रूरत क्यों है?इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक़, मनीष तिवारी ने बताया कि इस बिल की मदद से कानून बनाने की प्रक्रिया में स्वतंत्रता आएगी. उन्होंने कहा,
अब तो कोई जॉइंट सेक्रेटरी कानून को ड्राफ्ट करते हैं, जिसे मंत्री संसद में पढ़ देते हैं. इसके बाद बहुत थोड़ा-बहुत डिबेट हुआ नहीं तो व्हिप की नोक पर विधेयक पास कर देते हैं. इसमें कहीं से भी स्वतंत्र वोटिंग नहीं होती है. बिल को लेकर गहन डिबेट, रिसर्च और हर पैमाने पर उसकी बारीकियों को समझना अब इतिहास बन चुका है.
उन्होंने 'एंटी-डिफेक्शन कानून' यानी ‘दलबदल विरोधी कानून’ को इसका कारण बताया है जिससे 'राजनीतिक अस्थिरता' बढ़ रही है. 1950 से 1985 तक तो व्हिप लागू किए जाते थे लेकिन वो बाध्यकारी नहीं होते थे. 1960 के दशक में जब ‘आया राम, गया राम’ की घटना बढ़ी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दसवीं अनुसूची लागू कर दी. कांग्रेस सांसद ने इसी अनुसूची में आज की ज़रूरतों के हिसाब से बदलाव लाने का प्रस्ताव रखा है.
वीडियो: मनीष तिवारी ने संसद में नए अपराधिक कानूनों पर क्या कहा?















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