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iPhone में Google Chrome और Google इस्तेमाल मत करो, Apple खुद ऐसा क्यों कह रहा है

ऐप्पल का कहना है कि गूगल क्रोम के मुकाबले उसका अपना Safari यूजर्स की प्राइवेसी को ज्यादा सेफ (Apple warns iPhone users to stop using Google Chrome) रखता है. इतना पढ़कर आपको पक्का लगेगा कि भाई वाह, ऐप्पल कितना अच्छा है. उसे अपने यूजर्स की निजता की कितनी चिंता है. मुआ गूगल तो सब ट्रेक कर लेता है. ठीक बात मगर फिर ऐप्पल, गूगल बाबा से साल के 1.5 लाख करोड़ क्यों लेता है.

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ऐप्पल और गूगल की दोस्ती टूट रही है क्या?

Apple अपने यूजर्स को iPhone में Google Chrome का इस्तेमाल नहीं करने को कह (Apple warns iPhone users to stop using Google Chrome) रहा है. ऐप्पल का कहना है कि गूगल क्रोम के मुकाबले उसका अपना Safari यूजर्स की प्राइवेसी को ज्यादा सेफ रखता है. ऐप्पल के मुताबिक सफारी, वेबसाइटों और विज्ञापन देने वालों को आपके नाम का युनीक फिंगरप्रिंट बनाने से रोकता है. माने कि आपकी प्रोफाइल बनाने से रोकता है. आप वेबसाइट पर क्या देखते हैं, क्या सर्च करते हैं. इसकी जानकारी विज्ञापन देने वालों को नहीं होने देता है. सफारी आपके पीछे ऐसा सिस्टम बनाता है जिससे ट्रेक करने वालों को सभी की प्रोफाइल एक ही दिखती है.

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इतना पढ़कर आपको पक्का लगेगा कि भाई वाह, ऐप्पल कितना अच्छा है. उसे अपने यूजर्स की निजता की कितनी चिंता है. मुआ गूगल तो सब ट्रेक कर लेता है. ठीक बात मगर फिर ऐप्पल, गूगल बाबा से साल के 1.5 लाख करोड़ क्यों लेता है. चल क्या रहा है.

ऐप्पल और गूगल की दोस्ती में दरार

ऐप्पल अपने यूजर्स को गूगल क्रोम इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी दे रहा है. इसके बारे में बात करेंगे मगर पहले जरा ऐप्पल और गूगल की गहरी दोस्ती को समझ लेते हैं. गूगल ऐप्पल प्रोडक्ट जैसे iPhone, iPad और MacBook के अंदर डिफॉल्ट ब्राउजर बने रहने के लिए अरबों रुपये देता है. साल 2021 में गूगल ने ऐप्पल को मोटा-माटी 18 बिलियन डॉलर मतलब लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया था. इतनी बड़ी रकम सिर्फ डिफॉल्ट ब्राउजर के लिए. माने जो आप आईफोन में कोई लिंक खोलो तो वो गूगल क्रोम पर खुले. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि यूजर सफारी का इस्तेमाल नहीं कर सकता. वो चाहे तो अपने डिवाइस से गूगल क्रोम डिलीट भी कर सकता है.

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जाहिर सी बात है कि गूगल इतना सारा पैसा इसलिए ही दे रहा है कि उसे पता रहे कि ऐप्पल यूजर्स की आदतें क्या हैं. इन्हीं आदतों का डेटा वो फिर विज्ञापन देने वालों को सेल करता है. दोस्ती यहीं तक नहीं है. ऐप्पल की App Tracking Transparency से भी गूगल बाहर है. यही वो फीचर है जिसने ऐप्पल प्रोडक्ट में फ़ेसबुक का कार्यक्रम खराब कर दिया था. लेकिन ट्रेकिंग की इस व्यवस्था से भी गूगल और उसके ऐप्स बाहर हैं.

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मतलब इतनी पक्कम-पक्का वाली दोस्ती के बाद अब ऐप्पल गूगल ऐप्स के इस्तेमाल से मना कर रहा है. क्यों?

डिजिटल फिंगरप्रिंट का चक्कर बाबू भईया

ऐप्पल की इस चेतावनी के पीछे दरअसल गूगल बाबा की हरकतें हैं. गूगल ने यूजर के डिजिटल फ़िंगरप्रिंटिंग बनाने से बैन हटा लिया है. थोड़ा कठिन सा शब्द है तो आसान कर देते हैं. जब भी आप किसी भी ऐप का इस्तेमाल करते हैं तो वो आपकी आदतों को समझता है. जैसे आप किसी फूड ऐप से खाना ऑर्डर करते हैं तो उसे कुछ दिनों में पता चल जाता है कि आप वेज खाना ज्यादा ऑर्डर करते हैं. छोले आपके फेवरिट हैं. यही डेटा फिर आगे जाता है और फिर आपकी स्क्रीन पर उससे जुड़े विज्ञापन आते हैं.

इस किस्म की ट्रेकिंग में गूगल ऐप्स सबसे आगे हैं. आपकी हर सेकंड की गतिविधि को ट्रेक किया जाता है और फिर आपका डिजिटल फ़िंगरप्रिन्ट बनाया जाता है. ऐप्पल को शायद ये पसंद नहीं. इसलिए वो अपने यूजर्स को गूगल क्रोम और दूसरे गूगल ऐप्स के इस्तेमाल से बचने को कह रहा है. हालांकि अभी तक ये सिर्फ सुझाव है. उसने किसी ऐप को बैन नहीं किया है.

वैसे इस पूरी कयावद एक और पहलू है. ऐप्पल यूजर करेगा क्या. माने सफारी के इस्तेमाल के बाद अगर उसे लिंक पर क्लिक करना है तो जाना तो गूगल पर ही होगा. देखते हैं क्या होगा.  

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