इनके अलावा गूगल और दूसरे ऐड प्लैट्फॉर्म की मदद से भी मीडिया हाउस अपनी वेबसाइट और ऐप पर ऐड दिखाते हैं. ये ऐड प्लैट्फॉर्म, ऐड दिखाने वाली कंपनियों और मीडिया हाउस के बीच में बिचौलिया का काम करते हैं. ऐड प्लैट्फॉर्म कंपनियों से पैसा लेते हैं और जब न्यूज वेबसाइट देखते समय ऐड पर कोई क्लिक करता है तो उस पैसे का कुछ हिस्सा मीडिया हाउस को मिलता है.

न्यूज वेबसाइट पर मौजूद ऐड.
ऐड के अलावा कुछ मीडिया हाउस डोनेशन भी लेते हैं और कुछ सब्स्क्रिप्शन मॉडल पर चलते हैं. मतलब कि खबरें पढ़ने के लिए आपको मीडिया हाउस को डायरेक्ट पैसा देना होता है. अमेरिका और दूसरे कुछ देशों में ये तरीका काफ़ी सफल है, मगर अपने देश में इंटरनेट पर मौजूद खबरों को पढ़ने के लिए पैसा देने का सिस्टम मज़बूत नहीं है. सब्स्क्रिप्शन मॉडल में आप मीडिया हाउस को महीने, छह महीने या साल के हिसाब से पैसा देते हैं. इसकी एवज में आपको ऐड नहीं दिखाई पड़ते.
ये ठीक मैगज़ीन या अखबार के लिए पैसा देने जैसा होता है. अब आप कहेंगे कि मगर मैगज़ीन और अखबार के लिए पैसा देने के बाद भी आपको उनमें ऐड दिखाई पड़ते हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि आपकी दी हुई रकम से, मुश्किल से मैगज़ीन या अखबार में लगे हुए कागज़ वग़ैरह का ही पैसा निकल पाता है. डोनेशन, सब्स्क्रिप्शन और ऐड के अलावा मीडिया हाउस एक और तरह से पैसा कमाते हैं-- गूगल और फ़ेसबुक पर इन्स्टेन्ट आर्टिकल जमा करके. इसके बारे में बताने से पहले आप ये जान लीजिए कि गूगल और फेसबुक खबरें कहां और कैसे दिखाते हैं. गूगल खबरें कहां और किस तरह दिखाता है? गूगल दो जगह पर खबरें दिखाता है-- गूगल न्यूज प्लैट्फॉर्म पर और गूगल के ऐप पर.
जब आप गूगल पर कुछ ढूंढते हैं तो सर्च रिजल्ट में ऊपर की तरफ़ इनके न्यूज सेक्शन में उसी टॉपिक से जुड़ी खबरें दिखाई पड़ती हैं. सर्च करने के बाद आप “न्यूज” वाले टैब में जाकर सिर्फ़ और सिर्फ़ खबरें भी खोज सकते हैं. इसके अलावा गूगल न्यूज का एक ऐप भी है जहां पर अलग-अलग कैटेगरी में खबरें दिखाई पड़ती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मीडिया हाउस अपने आप को गूगल न्यूज पर रजिस्टर करते हैं और उनकी सारी खबरें गूगल न्यूज उठा लेता है.
गूगल अपने ऐप और क्रोम ब्राउजर के ज़रिए आपकी पसंद के टॉपिक की खबरें छांटकर आपके सामने लाता है. गूगल क्रोम ब्राउजर खोलने पर नीचे की तरफ़ खबरें दिखती हैं और अगर आप गूगल का मोबाइल ऐप खोलते हैं तो सर्च वाले ऑप्शन के नीचे खबरें दिखेंगी. यहां पर मौजूद खबरों को गूगल सारे न्यूज पोर्टल को स्कैन करके जमा करता है. फेसबुक खबरें कैसे दिखाता है? मीडिया हाउस के पेज फ़ेसबुक पर मौजूद हैं, जो फ़ेसबुक को ख़बर मुहैया कराते हैं. इस पेज के जरिए वेबसाइट पर छपने वाली खबरों के लिंक फ़ेसबुक पर साझा किए जाते हैं. लिखी खबरों के साथ-साथ मीडिया हाउस अपने बनाए हुए न्यूज वीडियो भी फ़ेसबुक पर साझा करते हैं. ये लिंक और वीडियो पेज को फॉलो करने वाले लोगों तक पहुंचते हैं.

फेसबुक पर मौजूद The Lallantop का पेज.
फेसबुक पर मौजूद यूजर भी अपनी पसंद की खबरें फ़ेसबुक पर साझा करते हैं. मगर ये फेसबुक पर खबरें डाले जाने का बहुत बड़ा सोर्स नहीं है. मीडिया हाउस के पेज ही हैं, जो अपनी वेबसाइट और ऐप पर जाने वाली सारी खबरों को फ़ेसबुक पर पहुंचाने का काम करते हैं. गूगल और फेसबुक को खबरें दिखाने पर क्या मिलता है? फ़ेसबुक और गूगल पर न्यूज मौजूद होने की वजह से बहुत से लोग ख़बर पढ़ने यहीं पर आते हैं. इससे इन प्लैट्फॉर्म पर आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती है. ये बढ़ी हुई संख्या इन दोनों प्लैट्फॉर्म के ऐड बिज़नेस को और भी बड़ा बनाती है. जितने ज़्यादा लोग, उतनी ज़्यादा आंखें और जितनी ज़्यादा आंखें, उतना ही ज़्यादा ऐड का पैसा. इंसटेंट आर्टिकल का क्या सीन है? गूगल ऐप पर खबरें दिखाने के लिए न्यूज पोर्टल अपनी खबरों का एक इंसटेंट आर्टिकल बनाते हैं. ये पेज हल्का फुल्का होता है, मोबाइल डिवाइस पर आसानी से खुलता है और यूजर का इंटरनेट डेटा भी कम खाता है. मगर यहां पर दिखने वाले ऐड का पूरा कंट्रोल गूगल के पास होता है. इन ऐड से बनने वाले पैसे का कुछ हिस्सा मीडिया हाउस को भी मिलता है.

फ़ेसबुक इंसटेंट आर्टिकल कुछ इस तरह दिखता है.
गूगल की ही तरह फ़ेसबुक भी इंसटेंट आर्टिकल चलाता है. आपने ध्यान दिया होगा कि फ़ेसबुक के मोबाइल ऐप पर जब आप किसी ख़बर को क्लिक करते हैं, तो वो ख़बर फ़ेसबुक ऐप में ही खुल जाती है. ये फ़ेसबुक इन्स्टेन्ट आर्टिकल होते हैं. यहां पर दिखने वाले ऐड का पूरा कंट्रोल फ़ेसबुक के पास होता है. इन ऐड से बनने वाले पैसे का कुछ हिस्सा मीडिया हाउस के फ़ेसबुक पेज को भी मिलता है. मीडिया हाउस ये इंसटेंट आर्टिकल के ज़रिए फ़ेसबुक को कंट्रोल इसलिए देते हैं, क्योंकि फ़ेसबुक इंसटेंट आर्टिकल को ज़्यादा तरजीह देता है और लोगों के सामने ज़्यादा लेकर आता है. दिक्कत कहां है? अपनी वेबसाइट और ऐप पर न्यूज पोर्टल का खुद का कंट्रोल होता है. मगर इंसटेंट आर्टिकल के ज़रिए गूगल और फ़ेसबुक मीडिया न्यूज पोर्टल की खबरें तो पाते ही हैं, साथ में इन पर दिखने वाले ऐड का भी पूरा कंट्रोल पा जाते हैं. खबरों की वजह से गूगल और फ़ेसबुक काफ़ी पैसा कमाते हैं. असल में ये रकम कितनी है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. अलग-अलग स्टडी, अलग-अलग रकम बताती हैं और गूगल-फ़ेसबुक खुद से इन आंकड़ों को उजागर नहीं करते.

गूगल ऐप पर नज़र आने वाली खबरें.
प्रेस की स्वतंत्रता और न्यूज बिज़नेस को बेहतर करने के लिए काफ़ी टाइम से ये आवाज़ें उठ रहीं हैं कि गूगल और फ़ेसबुक को एक-एक ख़बर की जगह पर, खबरों की सप्लाई के लिए मीडिया हाउस को पैसा देना चाहिए. खबरों के लिए सारी मेहनत मीडिया हाउस करते हैं और गूगल-फ़ेसबुक बस इनसे मुनाफ़ा कमाते हैं. दि गार्जियन की ख़बर के मुताबिक ऑनलाइन विज्ञापन पर खर्च होने वाले 100 डॉलर में से $53 गूगल को जाता है, $28 फ़ेसबुक को और बचा हुआ $19 बाकी सबके पास. ऑस्ट्रेलिया का नया कानून ऑस्ट्रेलिया एक कानून बना रहा है जिसमें गूगल और फ़ेसबुक के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो जाएगा. अब इन कंपनियों को प्रति आर्टिकल क्लिक की जगह खबरों को अपने प्लैट्फॉर्म पर दिखाने के लिए इकट्ठा पैसा देना होगा.
दोनों ही कंपनियों को ये बात गले से नहीं उतर रही है. फ़ेसबुक ने कहा था कि है कि ये अपने प्लैट्फॉर्म पर खबरें शेयर करना ही बंद करवा देगा और गूगल ने कहा था कि ये अपनी सर्च इंजन सर्विस को ऑस्ट्रेलिया में बंद कर देगा. मगर अब गूगल और ऑस्ट्रेलिया के बीच में टेंशन कुछ कम हो गई है. ये अब ऑस्ट्रेलिया के न्यूज पोर्टल के साथ डील कर रहा है. गूगल के मुताबिक इसने 7 न्यूज वेबसाइट को इनके कॉन्टेन्ट के लिए पैसा देना भी शुरू कर दिया है. मगर फ़ेसबुक ने अपनी कही बात पर अमल कर दिया है और अपने प्लैट्फॉर्म पर ख़बर के लिंक बंद कर दिए हैं.