बचपने में साल के बारह महीनों को याद रखने के लिए के एक बढ़िया तरीका था. सि अप जू नव तीस के बाकी के इकतीस. अट्ठाईस दिन की फरवरी चौथे सन उनतीस. तब ये लीप ईयर का फंडा कुछ समझ नहीं आता था. बाद में पता चला कि इसका संबंध तो धरती के घूमने से है. अब यही धरती का घूमना मतलब अपनी धुरी पर एक रोटेशन पूरा करना टेक जगत में भूचाल ला सकता है.
धरती के सिर्फ 1.59 मिली सेकेंड तेज घूमने पर टेक कंपनियों के होश क्यों उड़ गए?
निगेटिव लीप सेकंड से अगर टाइम में कोई बदलाव हुआ तो कंप्यूटर प्रोग्रामों का क्रैश होना, डेटा करप्ट होना तय है.

क्या है ये नेगेटिव लीप सेकेंड (negative leap second) जिसके होने से आपके सारे गैजेट्स खराब हो सकते हैं. सारे गैजेट्स मतलब स्मार्टफोन, कंप्यूटर, सब क्रैश. क्या है ये एक सेकेंड जिसने टेक जगत की सारी कंपनियों गूगल, अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट को अंदर तक डरा दिया है.
इसको समझने के लिए एक महीने से भी थोड़ा पीछे चलते हैं. जून महीने की 29 तारीख. इस दिन अपनी धरती आम दिनों की बजाय तेज घूमी और 24 घंटे से भी कम समय में एक चक्कर पूरा कर लिया. कितना तेज, मात्र 1.59 मिली सेकेंड (एक सेकेंड के एक हजारवें हिस्से से थोड़ा अधिक). ऐसा नहीं है कि ये पहली दफा हुआ हो. यूके के अखबार इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भी धरती तेज घूम रही थी, लेकिन अंतर मिली सेकेंड से भी कम था.
2020 में भी ऐसा हुआ था, लेकिन इस साल ये मिली सेकेंड थोड़े से ज्यादा हो गए. अभी तक तो सब ठीक लग रहा था, लेकिन कांड हुआ 26 जुलाई को. धरती फर्राटा भरी और सेकेंड का अंतर 1.59 मिली सेकेंड से घटकर 1.50 मिली सेकेंड हो गया.
धरती की इसी तेज होती स्पीड ने वैज्ञानिकों से लेकर हर किसी के दिल में धुकधुकी पैदा कर दी है. अभी तक तो ये होता था की धरती के घूमने की गति धीमी होती थी. आंकड़ों के मुताबिक सदी में धरती एक चक्कर पूरा करने में कुछ मिली सेकेंड ज्यादा समय लेती है. ये तो हुआ कारण. अब ऐसा क्यों हो रहा उस पर वैज्ञानिकों में दो मत हैं. कोई स्पष्ट कारण नहीं. धरती के इनर या आउटर लेयर में बदलाव, टाइड या जलवायु परिवर्तन, समुद्र, चांडलर वॉबल भी हो सकता है. इसलिए हम समझते हैं कि ये सेकेंड का हजारवां हिस्सा क्या कांड कराने वाला है.
कांड के पहले आपको पॉजिटिव लीप सेकेंड की एक झलक भी दे देते हैं. पॉजिटिव लीप सेकेंड मतलब 1 सेकेंड को जोड़ कर घड़ियों का टाइम सही किया जाना. हमारी धरती को 360 डिग्री घूमने में लगते हैं 86,400 सेकेंड यानी 24 घंटे. असल में ये 86,400 सेकेंड नहीं, बल्कि 86,400.002 होते हैं. ये जो .002 सेकेंड हैं, वो साल में बनते हैं 2 मिली सेकेंड और तीन साल में एक सेकेंड. इसी तीन साल के एक सेकेंड को इंटरनेशनल एटॉमिक टाइम यानी IAT से मिलाने के लिए 1 सेकेंड जोड़ा जाता है. और हां ये रोज-रोज नहीं बल्कि जून 30 या दिसंबर 31 को जोड़ा जाता है, वो भी आधी रात के बाद. फ्रांस में स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस ये काम करती है.
हाल के कुछ वर्षों की बात करें तो 1998, 2005, 2008, 2016 में ऐसा किया गया. एक साल 2012 का विशेष जिक्र जब लीप सेकेंड जोड़ा गया और mozilla, linkedin जैसी कई वेबसाइट का भट्टा बैठ गया था. मतलब क्रैश हो गई थीं. वैसे इससे कुछ और गलत अभी तक तो नहीं हुआ इसलिए इसको खतरा नहीं माना जाता. हां, लीप सेकेंड जोड़े जाने वाले दिन रॉकेट लॉन्च नहीं होता.
क्या निगेटिव लीप सेकेंड से कोई फायदा या नुकसान है?जनाब सिर्फ नुकसान ही नुकसान. अगर धरती यूं ही स्पीड पकड़े रही तो निगेटिव लीप सेकेंड की जरूरत पड़ेगी, ताकि घड़ियों की गति को सूरज के हिसाब से चलाया जा सके. इससे होगा बहुत बड़ा वाला नुकसान. हर तरीके के कम्यूनिकेशन सिस्टम की घड़ियां, स्मार्टफोन, कंप्यूटर खराब हो सकते हैं या उनका पूरा मकेनिज़्म बिगड़ सकता है. ऐसा होता कैसे है वो समझते हैं.
किसी भी डिवाइस की घड़ी 23:59:59 के बाद 23:59:60 पर जाती है और फिर 00:00:00 से दोबारा शुरू होती है. टाइम में अगर कोई बदलाव हुआ तो कंप्यूटर प्रोग्रामों का क्रैश होना, डेटा करप्ट होना तय है. ये डेटा टाइम स्टाम्प के साथ सेव होता है जो गड़बड़ा जाएगा.
मेटा के एक ब्लॉग के मुताबिक निगेटिव लीप सेकेंड से घड़ियों का समय 23:59:58 के बाद सीधा 00:00:00 पर जाएगा और ये भयानक कांड करा सकता है. जैसा हमने पहले बताया, चिंता सिर्फ वैज्ञानिकों और एस्ट्रोनॉमर्स यानी खगोलविदों तक नहीं है. सारी टेक दिग्गज मतलब गूगल से लेकर मेटा और माइक्रोसॉफ्ट ने इसको बेहद खतरनाक बताया है और इसे खत्म करने की मांग की है.
लीप सेकेंड तो 1972 से अब तक 27 बार जोड़ा गया, लेकिन अगर घटाना पड़ा, जैसी आशंका है, तो भयानक परिणाम देखने को मिलेंगे.
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