41 साल पहले भारत के राकेश शर्मा (Rakesh Sharma) पहली बार अंतरिक्ष पहुंचे थे. तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से फोन पर बात की और पूछा कि वहां से भारत कैसा दिखता है? शर्मा बोले, सारे जहां से अच्छा. हिंदोस्तां हमारा. इसके वीडियो आपने देखे होंगे. यही सीन हाल ही में तब दोहराया गया, जब इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वीडियो कॉल (PM Modi Shubhanshu Shukla interaction) पर बात की. उन्होंने राकेश शर्मा की ही बात दोहराई और बोले, स्पेस से भारत बेहद भव्य और बड़ा दिखता है. कोई सीमा नहीं दिखती. पृथ्वी पर अनेकता में एकता दिखती है.
'कोई टावर नहीं, न कोई फोन', फिर शुभांशु की PM मोदी से वीडियो कॉल पर बात कैसे हुई?
स्पेस स्टेशन से शुभांशु शुक्ला की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत सभी ने सुनी होगी. सबके मन में सवाल होगा कि आखिर स्पेस से वीडियो कॉल कैसे किया जाता होगा? आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं.
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नरेंद्र मोदी और शुभांशु की बातचीत के बीच आपके मन में भी ये सवाल जरूर उठा होगा कि अंतरिक्ष में तो कोई मोबाइल टावर नहीं है. कोई नेटवर्क नहीं है. हवा तक नहीं है तो यह ‘वायवीय’ संचार पॉसिबल कैसे हुआ? ये क्या टेक्नॉलजी है, जिससे धरती से 400 से ज्यादा किमी दूर अंतरिक्ष में बैठे शुभांशु शुक्ला को बातचीत के लिए पल भर में आपके सामने ला देती है? क्या एस्ट्रोनॉट्स के पास स्मार्टफोन होता है, जिस पर कॉल किया जाता है? अगर होता है तो उसका नंबर क्या है? क्या धरती से कोई भी अंतरिक्षयात्रियों को फोन लगा सकता है. मसलन, उनके परिवार वाले उन्हें जब चाहें फोन कर सकते हैं?
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि वीडियो संदेशों को धरती से स्पेस में या स्पेस से धरती पर लाना आसान काम नहीं है. इसके लिए काफी जतन किया जाता है.
न्यू साइंटिस्ट नाम के साइंस पोर्टल पर सैम वॉन्ग अपने आर्टिकल में एस्ट्रोनॉट पाओलो नेस्पोली के हवाले से बताते हैं कि एस्ट्रोनॉट्स ISS पर न तो फोन कॉल कर सकते हैं, न स्काइप और न ही वॉट्सऐप. स्पेस स्टेशन का कोई स्पेशल फोन नंबर भी नहीं होता. अंतरिक्ष यात्री भी अपने स्मार्टफोन घर पर ही छोड़कर जाते हैं. लेकिन, वहां एक इंटरनेट से जुड़ा फोन सिस्टम है जो कंप्यूटर के जरिए चलता है. इससे अंतरिक्ष यात्री धरती पर किसी को भी कॉल कर सकते हैं लेकिन पृथ्वी से उन्हें कॉल बैक नहीं किया जा सकता.
एस्ट्रोनॉट्स के पास टैबलेट भी होते हैं जिनसे वे ईमेल भेज सकते हैं. कुछ अंतरिक्ष यात्री ट्विटर पर भी पोस्ट करते हैं, लेकिन असल में वो ईमेल के जरिए अपनी टीम को मैसेज भेजते हैं, जो फिर ट्विटर पर डाली जाती है.
वीडियो कॉल कैसे होता है?स्पेस में कम्युनिकेशन दो चीजों पर निर्भर करता है. एक ट्रांसमीटर और एक रिसीवर. ट्रांसमीटर के सिग्नल्स रिसीवर तक पहुंचते है, तब संचार कायम होता है. न्यू साइंटिस्ट पोर्टल की रिपोर्ट के मुताबिक, ISS (International Space Station) से वीडियो और ऑडियो का सिग्नल सीधा धरती पर नहीं आता, बल्कि यह पहले आसमान में घूम रहे कुछ खास सैटेलाइट्स (Tracking and Data Relay Satellites – TDRS) तक भेजा जाता है.
ये TDRS सैटेलाइट्स उस सिग्नल को धरती पर दो जगह भेजते हैं- पहला न्यू मैक्सिको में वाइट सैंड्स और दूसरा प्रशांत महासागर के गुआम में. यहां से सिग्नल फाइबर ऑप्टिक केबल के जरिए NASA के मुख्य सेंटर तक पहुंचता है. अंतरिक्ष यात्री से जिसको बात करनी होती, सिग्नल इसके बाद उन्हीं के पास भेजा जाता है. लंबा रास्ता और अलग-अलग सिस्टम बदलने की वजह से वीडियो में करीब 5–6 सेकंड की देरी भी आ जाती है.
हालांकि, अंतरिक्ष यात्रियों की धरती पर लोगों से बात हमेशा इतनी आसानी से नहीं होती थी. इसके लिए तकनीकी ने एक लंबी यात्रा तय की है.
पहले स्पेस स्टेशन पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्री साधारण रेडियो टेक्नीक से ही बात करते थे. इसमें एक दिक्कत ये थी कि सीधी बातचीत के लिए स्पेस स्टेशन को किसी रिसीवर स्टेशन के सामने होना जरूरी होता था. तभी ऊपर से सिग्नल भेजे जा सकते थे.
इस कारण पहले एस्ट्रोनॉट्स अपने परिवार से सीधी बात नहीं कर पाते थे. उनके परिवार को सिर्फ रिकॉर्ड किए हुए मेसेज ही मिलते थे. इसका जवाब भी रिकॉर्ड करके ही स्पेस में भेजा जाता था लेकिन अब टेक्नॉलजी ने लंबी छलांग लगाई है. अब न सिर्फ सीधी बातचीत संभव है बल्कि वीडियो कॉल पर अंतरिक्षयात्री को परिवार के लोग सामने देख सकते हैं.
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