ऑनलाइन स्टोर से मोबाइल खरीदने पर क्या होता है, उसका पता हम सभी को है. बॉक्स की जगह साबुन की बट्टी और ईंट का बट्टा निकलना तो अब आम बात लगती है. पुराने फोन से लेकर पहले से एक्टिव फोन मिलना भी कोई नई बात नहीं. ई-कॉमर्स कंपनियों के नए-नए चार्जेस जैसे पैकिंग से लेकर कार्ड डिस्काउंट ऑफर का अपना दुख है. माने एक डिस्काउंट को छोड़कर इस दुनिया में रखा क्या है. ऐसे में ऑफ़लाइन स्टोर से मोबाइल खरीदना अभी भी एक सेफ सौदा माना जाता है. मगर जो इसमें भी खेल होने लगे तो.
दुकान से खरीदा नया फोन, वारंटी निकली 12 की जगह 9 महीने की, ये कौन सा खेल हो रहा?
ऑफ़लाइन स्टोर से मोबाइल खरीदना अभी भी सेफ सौदा माना जाता है. सब देख सुनकर डिवाइस लेने की तसल्ली होती है. मगर अब इधर भी झोल नजर आ रहे. ब्रांड न्यू बॉक्स में पहले से एक्टिव (pre-activated) फोन पकड़ा दिए जा रहे हैं.

अंदाजा आपने लगा लिया होगा कि कुछ तो हुआ है. कुछ हो गया है तभी तो हम आपके सामने हैं. हालांकि ये सिर्फ एक घटना है और इसके लिए पूरे सिस्टम को दोष नहीं दे सकते हैं. कंपनी को तो बिल्कुल नहीं मगर झोल की पोल खोलने के लिए काफी है.
वारंटी में गेमऑफ़लाइन मार्केट में होने वाले इस महीने से झोल का पूरा वाकया शेयर किया है टेक एक्सपर्ट Sanju Choudhary ने. संजु मार्केट में अपने पिता के साथ उनके लिए एक फोन खरीदने निकले थे. अचानक से एक दुकान पर उनको दिखता है कि एक दूसरा ग्राहक दुकानदार से एक सवाल कर रहा था.
“why my phone is showing only 9 months warranty instead of 12 months?”,
मतलब मेरे फोन की वारंटी 12 महीने की जगह 9 महीने क्यों दिख रही है. दुकानदार जवाब देता है कि आप क्यों चिंता कर रहे. हम आपको बिल की तारीख से 12 महीने की वारंटी देंगे. अब जो नॉर्मल दिन होते तो ग्राहक को दुकानदार की बात पर भरोसा कर लेना था. मगर इस केस में संजु बीच में आ जाते हैं.
संजु ग्राहक से उसका फोन लेते हैं और थोड़ी बहुत पड़ताल के बाद ये पता करने में कामयाब हो जाते हैं कि फोन पहले से एक्टिव (pre-activated) है. मतलब नया फोन नहीं है भले बॉक्स से लेकर सब ब्रांड न्यू लग रहा हो. ऐसा करना कोई मुश्किल भी नहीं है. मतलब आजकल ज्यादातर फोन में बैटरी साइकिल चेक करने का ऑप्शन होता है. नए फोन की बैटरी साइकिल 1 से ज्यादा नहीं होती और कंपनी एक फोन बैटरी से 500 साइकिल की उम्मीद रखती है. अब जो कोई फोन 50 चार्ज साइकिल चला है तो फिर नया तो हुआ नहीं. 2 महीने या 4 महीने पुराना हुआ.
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खैर संजु कि बात मानकर ग्राहक ने दुकानदार से बात की. बात बहस में बदली मगर आखिर में उसको नया फोन दिया गया. कहने का मतलब ऑफ़लाइन मार्केट में भी खेल हो रहा है. यहां काम भरोसे का ज्यादा है तो ग्राहक मान भी जाता है. अब इस पूरे केस में फोन कंपनी पर दोष मढ़ने का कोई तुक नहीं. दुकानदार या डीलर या डिस्ट्रीब्यूटर की गलती बताना भी मुश्किल है. मतलब बिना जांच के कुछ भी कहना कठिन है. मगर झोल तो इधर भी है. आंखे खोले रहिए.
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