ASUR-2 वेब सीरीज को OTT पर आए हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा समय हो चुका है. सीरीज के किरदारों के साथ इसमें दिखाई गई तकनीक की भी खूब बात हो रही है. साइबर हैकिंग के नायाब तरीकों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग चर्चा में हैं. लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचा सॉनिक बॉम्ब ने. आवाज वाला बॉम्ब, जो सीरीज के सबसे महत्वपूर्ण किरदारों में से एक है. ऐसा बॉम्ब, जो सिर्फ आवाज के सहारे करोड़ों लोगों को एक बार में मार सकता है. लेकिन क्या ऐसा वाकई में संभव है? परमाणु बम और टाइम बम से भी खतरनाक सॉनिक बम क्या वाकई में बन सकते हैं? हमने समझने की कोशिश की.
असुर-2 में दिखाए गए सॉनिक बॉम्ब से क्या वाकई में मौत होती है?
सॉनिक बॉम्ब (बूम) मतलब ऐसा धमाका, जो सिर्फ आवाज से करोड़ों लोगों की जान ले सकता है.

सॉनिक बूम (sonoc boom) मतलब एक किस्म की तेज ध्वनि. दरअसल जब कोई चीज ध्वनि या आवाज की रफ्तार से भी ज्यादा तेज रफ्तार से हवा के बीच में से गुजरती है, तो विस्फोट जैसी आवाज पैदा होती है. इस आवाज को ही सॉनिक बूम कहा जाता है. सॉनिक बूम से बड़ी मात्रा में ध्वनि ऊर्जा पैदा होती है. इसी बूम को असुर-2 में बॉम्ब कहा गया है. ध्वनि की स्पीड मतलब किसी वस्तु या विमान का 1238 किमी/घंटा से भी तेज रफ्तार से फर्राटा भरना. अब किसी वस्तु के लिए या गाड़ी के लिए ऐसा करना फिलहाल तो संभव नहीं लेकिन विमान ऐसा जरूर कर सकते हैं.

आमतौर पर फाइटर जेट्स जैसे (F-16s) और मिलिट्री रिसर्च वाले प्लेन इस रफ्तार से हवा को भेद सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पैसेंजर प्लेन ऐसा नहीं कर सकते. Tupolev Tu-144 और The Concorde इतिहास में ऐसे दो विमान हुए हैं, जो ध्वनि की रफ्तार से भी तेज उड़ सकते हैं. आपको जानकर हैरत होगी कि साल 1947 में अमेरिकी सेना के पायलट चक ईगर ऐसे पहले विमान चालक बने, जिन्होंने बेल एक्स 1 विमान 1127 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ाकर नया कीर्तिमान बनाया. बोले तो पहला सुपरसॉनिक विमान. आज तो उन्नत तकनीकी के दौर में ऐसे विमान आ गए हैं, जिन्हे 3 माक या ध्वनि के वेग से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ाया जा सकता है. ऐसे विमानों को साइंस की भाषा में सुपरसॉनिक एयर क्राफ्ट कहते हैं. कौन सॉनिक बूम उत्पन्न कर सकता है और कैसे, वो जान लिया. अब क्यों करता है, वो भी जान लेते हैं.
ध्वनि तरंगों के रूप में चलती है. यह तरंगे आम तौर पर जिस स्त्रोत से पैदा होती हैं, उनसे बाहर की ओर को चलती हैं. लेकिन हवा में इन तरंगों की रफ़्तार कई कारकों पर निर्भर करती है. जैसे हवा का तापमान और ऊँचाई. मसलन किसी रुके हुए स्त्रोत जैसे टेलीविज़न सेट या रेडियो से पैदा होने वाली ध्वनि तरंगे, हमेशा बाहर की ओर को चलती है. इसके उलट जब आवाज़ किसी चलते हुए माध्यम से निकलती है, जैसे ट्रक या विमान से, तो इससे निकलने वाली तरंगे ट्रक के सामने एक दूसरे के करीब होती जाती है और पीछे की ओर जाकर फैलती जाती हैं. साइंस में इसको डॉपलर इफेक्ट कहते हैं. जब कोई विमान ध्वनि की गति से कम स्पीड से उड़ता है, तो उसके द्वारा उत्पन्न प्रेशर डिस्टरबेंस या साउंड सभी दिशाओं में फैल जाती है, लेकिन सुपरसॉनिक वेग में दबाव क्षेत्र एक खास इलाके तक सीमित होता है. ये दबाव क्षेत्र अक्सर विमान के पिछले हिस्से में फैलता है और एक सीमित चौड़े कोन में आगे बढ़ता है. जिसे ‘मैक’ कोन कहा जाता है.
विमान के आगे बढ़ने के साथ ही पीछे की ओर कोन का पैराबोलिक किनारा पृथ्वी से टकराता है और एक जबरदस्त धमाका या बूम पैदा करता है. जब इस तरह का विमान काफी लो अल्टीट्यूड में या नीचे उड़ता है, तो यह शॉक वेव इतनी तीव्र होती है कि इनसे खिड़कियों के शीशे तक टूट सकते हैं. ऐसे विमानों के नीचे उड़ने पर हमें विस्फोट या बादलों के गड़गड़ाहट जैसी आवाज सुनाई देती है.
क्या सॉनिक बूम से मौत हो सकती है.सुपरसॉनिक विमान अगर 100 फीट से कम की ऊंचाई पर भी उड़ान भरता है, तो भी 20 से 144 पाउंड के बीच दबाव पैदा करने वाली सॉनिक बूम पैदा होगी. जबकि कान के पर्दों को फाड़ने के लिए प्रेशर 720 पाउंड तक होना चाहिए. कहने का मतलब है कि मनुष्यों को चोट पहुचने के चांस नहीं के बराबर हैं. हालांकि सॉनिक बूम को सुरक्षित नहीं माना जाता है. क्योंकि पेरिस से लेकर बेंगलुरू तक में इसकी वजह से कांच टूटने के मामले सामने आए हैं. जांच में पता चला कि फाइटर जेट आबादी वाले इलाके में बहुत नीचे उड़ रहे थे. इसलिए सुपरसॉनिक विमानों पर आबादी वाले इलाके में उड़ने पर रोक होती है.
वैसे बात करें वेबसीरीज की, तो वहां इसका कैसे इस्तेमाल हुआ वो आप खुद देखें तो मजा आएगा. नहीं देखना तो हमारी सिनेमा टीम का रिव्यू देख लीजिए.
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