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1000 रुपये का प्रोडक्ट सिलेक्ट, बिल बना 1150 का, ऑनलाइन शॉपिंग का 'ऐड ऑन' खेल आज समझ लें

ऐप या वेबसाइट पर शॉपिंग या सर्फिंग करते समय आहिस्ता से नजर आने वाला चमकीला पॉपअप कोई सर्विस नहीं, बल्कि कंपनियों का काला धंधा है.

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डार्क पैटर्न. (सांकेतिक तस्वीर)

बीमा पॉलिसी के साथ ड्राइवर कवर या AC के साथ एनुअल मेंटेनेन्स. ऐप्स और वेबसाइट पर अक्सर बड़े-बड़े अक्षरों में ऐसे प्रोडक्ट प्रमोट किए जाते हैं. बैनर की शक्ल में दिखने वाले ये प्रोडक्टस आमतौर पर असल प्रोडक्ट का हिस्सा नहीं होते हैं. अंग्रेजी में इनको ऐड ऑन और देशी भाषा में 'लगेठा' कहते हैं. जाने अनजाने कितनी बार हम ऐसे प्रोडक्ट या सर्विस खरीद लेते हैं. जब तक समझ आता है तब तक खेला हो चुका होता है. क्योंकि आमतौर पर ऐसी ऐड-ऑन सर्विस को रद्द करने का कोई सीधा रास्ता नहीं होता. आज बात कंपनियों के इसी डार्क पैटर्न (Dark Patterns) वाले धंधे की.

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डार्क पैटर्न का काला खेल

आप स्क्रीन पर ब्राउज़िंग कर रहे हैं और अपना पसंदीदा प्रोडक्ट बस लेने वाले होते हैं तभी आहिस्ता से हौले-हौले (बिल्कुल इकोनॉमी के जैसे) एक पॉपअप स्क्रीन पर प्रकट होता है. पॉपअप पर कोई बढ़िया सी स्कीम का विज्ञापन होता है. सर्विस को बढ़िया से चमकीले कलर में दिखाया जाता है और हम फट से इसको ओके कर देते हैं भले उसकी जरूरत हो या नहीं. लुभावने से इस विज्ञापन में एक झोल है. चूंकि ये तो एक अतिरिक्त सर्विस है तो ऑप्शन में इसको हटाने का विकल्प भी होना चाहिए. वो होता है, लेकिन बहुत बारीक अक्षर में. सर्विस को हटाने वाले पॉपअप को बहुत गहरे रंग में तकरीबन ना दिखने वाले कलर में दिखाया जाता है. इसी को कहते हैं डार्क पैटर्न.

एक उदाहरण से समझते हैं. दवाई के किसी ऐप पर पहली दफा कुछ प्रोडक्टस सेलेक्ट करके देखिए. आपका बिल हुआ 1000 रुपये, लेकिन जब आप पेमेंट करने जाते हैं तो फाइनल अमाउन्ट 1150 या 1200 रुपये होता है. ये एक्स्ट्रा पैसा तीन या छह माह की मेंबरशिप के नाम पर लिया जाता है. जो आप समझदार हुए और आपने कार्ट में जाकर इसको अनचेक कर दिया तो ठीक, नहीं तो खेल हो गया समझो. अब आप मजबूरन उसी ऐप से बार-बार दवाई या दूसरे प्रोडक्ट लेने के लिए बाध्य हो जाते हैं.

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सहमति का दिखावा

डार्क पैटर्न का एक और तरीका है आपकी सहमति लेना. कई बार ऐप और वेबसाइट हमसे डेटा कलेक्ट करने की सहमति बड़े स्मार्ट तरीके से ले लेती हैं. ऐप पर लिखा आता है ‘Allow us to use your app and website activity’. हमें लगता है ये तो ऐप पर विज्ञापन दिखाने के लिए किया जा रहा है. ये आधी हकीकत है, क्योंकि ये एक किस्म की सहमति है. इसके बहाने कई सारे प्रोडक्टस हमारी शॉपिंग कार्ट में जोड़ दिए जाते हैं. इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है ऐप की सालाना या प्रीमियम सर्विस. मतलब ये सर्विस लीजिए और आपको फ्री डिलीवरी जैसी सुविधा मिलेगी. जो आपने चेक आउट के टाइम इसको अनचेक नहीं किया तो चूना लगना तय है.

इमोशनल ब्लैकमेल

सर्विस हमने खरीद ली और फिर थोड़े समय बाद हुआ आत्मज्ञान. संपट (इंदौर में इसका मतलब होता है समझ आना) पड़ा कि इसकी तो जरूरत ही नहीं थी. ऐप से साल भर में एक बार ही ऑर्डर करना था लेकिन वार्षिक मेंबरशिप ले डाली है. ऐप पर जाकर कैंसिल करने का ऑप्शन तलाशा तो दिमाग का दही हो गया. क्योंकि ये ऑप्शन पता नहीं कितनी परतों के पीछे छिपा होता है. कैसे करके अगर ऑप्शन तक पहुंच गए तो फिर शुरू होता है इमोशनल अत्याचार.

स्क्रीन पर फ्लैश होता है कि हमें बड़ा दुख है कि आप जा रहे हैं. आपको फलां-फलां सर्विस से हाथ धोना पड़ेगा. ये नुकसान होगा वगैरा-वगैरा. जो अपन जिद्दी हुए और बिना कैंसिल किए नहीं मानेंगे तो फिर लिखा आएगा. 'No Thanks, I don't want to save money'.  मतलब एक किस्म से दिल पर चोट. कैसे करके सर्विस को जारी रखने का जुगाड़. 

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इतना पढ़कर आपके मन में सवाल होगा, ये आज क्यों बता रहे. पहला उद्देश्य तो आपको सावधान करना है. जैसे हर पीली चीज सोना नहीं होती वैसे हर नीला पॉपअप भी काम का नहीं होता. शॉपिंग करते समय अपने कार्ट को बारीकी से चेक करें वरना चूना लगता रहेगा. वैसे इस चूने पर पानी फेरने के लिए Advertising Standards Council of India (ASCI) भी काम कर रही है. 

बिजनेस स्टेंडर्ड के मुताबिक ASCI ने डार्क पैटर्न के खिलाफ नए नियम का खाका तैयार किया है. आने वाली 1 सितंबर से कंपनियों पर नए नियम लागू होंगे और उसके बाद भ्रमित करने वाले विज्ञापनों और बेवजह के प्रोडक्टस से मुक्ति मिलेगी. उम्मीद तो ऐसी ही है, लेकिन ऐप्स कान इधर से ना पकड़कर उधर से पकड़ने का रास्ता निकाल ही लेते हैं. इसलिए बेहतर होगा की सावधान रहें.  

वीडियो: Flipkart ने एक ही कस्टमर को लगातार 5 बार भेजे बेकार, नकली और आधे-अधूरे प्रोडक्ट

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