एंड्रॉयड अच्छा है या iOS? स्मार्टफोन यूजर्स के बीच शायद कभी ना खत्म होने वाली लड़ाई. कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इसका फैसला करना आम पब्लिक के लिए तो बहुत ही मुश्किल है. लेकिन दुनिया के सबसे बड़े टेक एक्सपर्ट के लिए नहीं. नाम है Marques Brownlee. आज की तारीख में उनके यूट्यूब चैनल पर तकरीबन पौने दो करोड़ सब्सक्राइबर हैं. Marques ने अपने यूट्यूब पर एक वीडियो पोस्ट किया और एक बार फिर से एंड्रॉयड और आईफोन के बीच कौन बेहतर (android vs iPhone) वाली बहस को जन्म दे दिया. क्या निकला वीडियो से. चलिए जानते हैं.
एंड्रॉयड अच्छा या iPhone? दुनिया के सबसे बड़े टेक एक्सपर्ट ने क्या बता दिया?
एंड्रॉयड अच्छा है या आईफोन पर Marques Brownlee ने 7 वजहों के साथ रिजल्ट बताया है...

Marques ने दोनों ऑपरेटिंग सिस्टम को 7 पॉइंट पर तौला. सबसे पहले कस्टमाइजेशन, फिर फीचर्स उसके बाद इस्तेमाल में आसानी जैसे पॉइंट पर बात हुई. सॉफ्टवेयर अपडेट ऐप्स की उपलब्धता और आखिर में ईको सिस्टम पर जाकर कहानी खत्म हुई. मुकाबला कांटे का रहा क्योंकि कभी लगा कि एंड्रॉयड आगे तो कभी आईफोन बाजी मारता दिखा. आखिर में कौन जीता उसके पहले जरा जानते हैं कि 7 पॉइंट पर क्या निकला?
Customizationयहां अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं क्योंकि सभी को पता है कि एंड्रॉयड एक ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म है. भले ऑपरेटिंग सिस्टम गूगल बनाता है मगर कपड़े (यूजर इंटेरफेस) अलग-अलग स्मार्टफोन मेकर्स के होते हैं. इसी का फायदा एंड्रॉयड यूजर्स को मिलता है. फोन के लुक से लेकर रिंगटोन और वॉलपेपर्स को बदलना बहुत ही आसान है. वहीं दूसरी तरफ आईफोन में इसके लिए सीमित ऑप्शन मिलते हैं. कहें तो फोन जैसा आया है तकरीबन वैसा ही रहता है. इसलिए पहली बॉल पर छक्का तो एंड्रॉयड ने लगाया.
आईफोन जब शुरू-शुरू में बाजार में आया था तब इसके फीचर्स सीमित होते थे. बेसिक सी चीजें भी फोन में नहीं आती थीं. आज सालों बाद भी कुछ ज्यादा नहीं बदला है. मतलब डेटा ट्रांसफर जैसा काम आज भी बहुत ही मुश्किल से होता है. दूसरी तरफ एंड्रॉयड में पहले से ही फीचर्स की कमी नहीं रही. जो फीचर्स नहीं थे वो भी स्मार्टफोन मेकर्स ने जल्दी-जल्दी जोड़ दिए. ऐप्पल ने भी ऐसा किया, लेकिन बहुत ही आराम-आराम से. दबी जुबान से तो ये भी कहा जाता है कि ऐप्पल आमतौर पर एंड्रॉयड के फीचर्स ही कॉपी करता है. हालांकि आजकल तो दोनों ही प्लेटफॉर्म सभी फीचर्स के साथ आते हैं, लेकिन आमतौर पर उनकी शुरुआत एंड्रॉयड से होती है. मसलन फ्रेमलेस स्क्रीन हो या रिफ्रेश रेट. ऐसे में यहां भी जलवा एंड्रॉयड का होता है. मतलब शानदार शुरुआत के बाद मिडिल ओवर में भी बढ़िया बल्लेबाजी हो रही.
इस्तेमाल में कौन आसान है?इस्तेमाल में क्या आसान है उसको आप अपनी पुरानी कार या बाइक से भी समझ सकते हैं. नई कार नए फीचर्स के साथ आती है मगर अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि भैया हमें तो अपनी वाली पसंद. चाबी घुमाओ, किक मारो और फर्राटा भर लो. एक किस्म की आदत पड़ जाना. आईफोन यूजर्स के साथ कुछ ऐसा ही है. पुरानी कार वाला मामला. वहीं एंड्रॉयड में बहुत सारे स्मार्टफोन मेकर्स हैं और उनके अलग-अलग यूजर इंटरफ़ेस. एक से दूसरे में कूदी मारो तो कई बार गफलत हो जाती है. इसलिए यहां पॉइंट मिला आईफोन को. कहने का मतलब बड़ी मुश्किल से विकेट मिला.
अपडेट्स का क्या सीन है?यहां बहस का कोई जुगाड़ नहीं है क्योंकि आईफोन उसका बेताज बादशाह है. आज की तारीख में जब नया सॉफ्टवेयर अपडेट महज कुछ महीने दूर है. आईफोन यूजर्स को चिंता ही नहीं. इधर ऐप्पल हेडऑफिस से बटन दबा नहीं उधर पांच साल पुराना आईफोन भी अपडेट हुआ समझो. वहीं एंड्रॉयड में हाल वाकई में बुरा है. कई सारी कंपनियां टाइम पर तो क्या सालों के बाद भी अपडेट नहीं देतीं. जो अपडेट आता भी है तो फोन हरे-नीले होने लगते हैं. भला हो सैमसंग का जिसने टाइम पर अपडेट देकर लाज बचा रखी है. ऐसे में ये वाला पॉइंट तो आईफोन को मिलना ही था.
एंड्रॉयड ठहरा ओपन सोर्स तो ऐप्स की कोई कमी नहीं. आज की तारीख में तकरीबन 35 लाख ऐप्स एंड्रॉयड पर उपलब्ध हैं तो आईफोन पर इसके आधे भी नहीं. मतलब 15 लाख ऐप्स ही हैं. इसके पीछे ऐप्पल की तगड़ी निगरानी भी एक वजह मानी जाती है. लेकिन ये भी सच है कि दुनिया जहान के सभी डेवलपर्स सबसे पहले आईफोन के लिए ऐप्स लॉन्च करते हैं. वॉट्सऐप से लेकर इंस्टा तक अपने नए फीचर्स को पहले आईफोन के लिए लॉन्च करते हैं. इतना ही नहीं खुद गूगल अपने ब्राउजर को ऐप्पल में डीफाल्ट सेटिंग्स में रखने के लिए अरबों रुपये देता है. मतलब भले एंड्रॉयड में ऐप्स की कोई कमी नहीं हो लेकिन उनकी मक्खन जैसी परफ़ोर्मेंस की वजह से आईफोन को पॉइंट मिल जाता है.
adrenaline rush किसकी तरफ बहता है?अभी तक तो लगता है जैसे आईफोन बाबा स्लो शुरुआत के बाद लीड ले चुके हैं, मगर जब बात किसी फोन के लॉन्च की आती है या नए फीचर्स और डिजाइन का जिक्र होता है तो एंड्रॉयड बहुत आगे है. एंड्रॉयड जहां फ्लिप और फोल्ड वाले फोन्स पर पहुंच गया है वहीं आईफोन अभी डायनामिक आइलैंड पर ही अटक गया है. बेसिक सा टाइप-सी पोर्ट भी शायद आईफोन 15 के साथ आएगा. कहने का मतलब नए फीचर्स, डिजाइन, साइज में एंड्रॉयड का कोई मुकाबला ही नहीं.
ईकोसिस्टम ने सिस्टम फेल कर दियायहां ऐप्पल की असल बाजिगिरी दिखती है. imessage से लेकर फेसटाइम तक और एक ऐप्पल डिवाइस से दूसरे ऐप्पल डिवाइस की कनेक्टिविटी तक. अगर जो आपके पास आईफोन से लेकर ऐप्पल वॉच है या मैकबुक है तो आपके लिए किसी भी डिवाइस से काम स्टार्ट करके किसी भी डिवाइस पर खत्म करना बाएं हाथ का खेल है. यहां एंड्रॉयड काफी पीछे है. भले से गूगल और सैमसंग जैसे दिग्गज ईकोसिस्टम बनाने की बात करते हैं मगर अभी तक कुछ सालिड हुआ नहीं है.
कहानी का सार ये कि महज कुछ अंतर से आईफोन यहां बाजी मारता दिख रहा है. लेकिन ये भी सच है कि पिछले साल का बेस्ट फोन गूगल पिक्सल था. मतलब सब आपकी निजी पसंद पर निर्भर करता है. अब आपको ज्यादा कुछ बदलाव पसंद नहीं तो आईफोन आपके लिए मुफीद है. वहीं अगर आपको अतरंगी होना हैं तो एंड्रॉयड जिन्दाबाद. रही बात हमारी तो हमें तो दोनों ही पसंद हैं. थोड़ा इधर सरक लेते हैं तो थोड़ा उधर. आप किस तरफ हो, हमें जरूर बताना.
वीडियो: सैमसंग और आईफोन किनारे पड़े रहे, बेस्ट स्मार्टफोन का 'अवॉर्ड' इसे मिल गया!