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एक कविता रोज़: जैसे पुरानी मोहब्बतों में चिठ्ठियां फेंका करते थे लोग

आज के दौर के युवा कवि गौरव सोलंकी की एक कविता.

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पहले उसने ढूंढा मुझे फिर चिल्लाई यह भी कि धोखा दे गया हूं मैं. फिर, रोने लगी. और रोती रही महीनों. बस इतना ही प्यार किया हमने.

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