अंडरडॉग की कहानियां स्पोर्ट्स फ़ैन्स को सदियों से लुभाती रहीं हैं. शायद यही उम्मीद स्पोर्ट्स को उस दर्जे पर लेकर जाती है, जिसके दुनियाभर के लोग दीवाने हैं. 1990 में बस्टर डगलस का माइक टाइसन को हराना, 2004 में ग्रीस का यूरोपियन चैंपियनशिप जीतना, 2009 के PGA टूर्नामेंट में YE Yang का टाइगर वुड्स को हराना, 2015-16 में लेस्टर सिटी का प्रीमियर लीग जीतना, ऐसी कहानियां उम्मीद देती हैं. आप उठकर बैठ जाते हैं इन्हें सुनकर. रौंगटे खड़े हो जाते हैं. क्रिकेट भी ऐसी कहानियों से भरा पड़ा है. 1999 वर्ल्ड कप में बांग्लादेश का पाकिस्तान को हराना, 2011 वर्ल्ड कप में आयरलैंड ने इंग्लैंड के साथ ये किया, 1996 के वर्ल्ड कप में केन्या ने वेस्ट इंडीज को पीट दिया था. लेकिन एक मैच की कहानी इन सब पर भारी है.
भारत के वो 11 'अंडरडॉग्स', जिन्होंने आज ही के दिन अनहोनी को होनी किया था!
'वी आर हियर टू विन' की पूरी कहानी.

आप सोच रहे होंगे कि हम ये सब आपको क्यों बता रहे हैं. क्योंकि आज ही के दिन इंडियन टीम ने ऐसा ही कुछ किया था. आज का दिन, यानी 25 जून. ये सिर्फ एक अंडरडॉग की जीत नहीं थी, ये आगाज़ था एक रेवोल्यूशन का. ये एक ऐसी कहानी की शुरुआत थी, जिसने इंडिया को दुनिया के नक्शे पर सजा दिया. आइए अब आपको उस कहानी की तरफ लिए चलते हैं.
सुबह के साढ़े पांच बजे. 24,609 लोगों के सामने डिकी बर्ड और बैरी मेयर टॉस करवाने बाहर आए. सामने थे कपिल देव और सर क्लाइव लॉयड. वेस्ट इंडीज के पास उस दौर की सबसे खतरनाक पेसर चौकड़ी भी थी- मैलकम मार्शल, एंडी रॉबर्ट्स, जोएल गार्नर और माइकल होल्डिंग. इंडिया के पास टेस्ट क्रिकेट में नाम कमाने वाले सुनील गावस्कर जरूर थे, पर उस वर्ल्ड कप में गावस्कर का फॉर्म अच्छा नहीं रहा था.
ख़ैर, टॉस जीतकर लॉयड ने अपने पेसर्स को न्योता दिया कि इंडियन बैट्समैन पर आक्रमण करें. इन चारों ने मिलकर इंडिया के आठ विकेट निकाले. आलम ये था कि इंडिया के किसी भी बैट्समैन ने 40 का आंकड़ा पार नहीं किया. कृष्णाम्माचारी श्रीकांत ने सर्वश्रेष्ठ 38 रन बनाए. संदीप पाटिल ने 27 और मोहिन्दर अमरनाथ ने 26 रन बनाए. इनके अलावा, कोई भी बैट्समैन 20 रन भी पार नहीं कर सका.
वेस्ट इंडीज की बोलिंग की तारीफ सुनकर ये मत सोचिएगा की उनकी बैटिंग कमज़ोर थी. गार्डन ग्रीनिज़ और डेसमंड हेन्स की लाजवाब सलामी जोड़ी थी. विव रिचर्ड्स थे, जिनकी चाल और गम चबाने का स्टाइल ही बता देता था कि विरोधी बोलरों का क्या हश्र करने वाले हैं. और भरोसेमंद क्लाइव लॉयड थे जो पहले भी अकेले अपने दम पर टीम को वर्ल्ड कप दिला चुके थे. लेकिन वो दिन कुछ और था. वक्त के पहिये को कुछ और मंजूर था. बदलाव की हवाएं बहुत तेज चल रही थीं.
इस हवा में सबसे तेज बहे मोहिन्दर अमरनाथ और मदन लाल. मदन लाल ने हेन्स, रिचर्ड्स और लैरी गोम्स को आउट किया. अमरनाथ ने वेस्ट इंडीज की टेल को चलता किया. दोनों ने तीन-तीन विकेट निकाले. इंडिया ने सबको चौंकाते हुए अपना पहला वर्ल्ड कप ख़िताब जीत लिया था. ये मैच इतिहास के पन्नों को सबूत दे गया कि इंडिया की फाइटिंग स्पिरिट किसी से कम नहीं. इसके बाद धीरे-धीरे इंडियन क्रिकेट टीम ने इस खेल में अपना दबदबा बना लिया. लेकिन ये कहानी एक अंडरडॉग की जीत से शुरू हुई थी. एक टीम के कैप्टन के भरोसे से शुरू हुई थी. एक टीम के उस कैप्टन के उस कथन से शुरू हुई थी-
वी हियर टू विन (द वर्ल्ड कप). दैट्स वाट वी आर हियर फॉर.
हम यहां वर्ल्ड कप जीतने आए हैं. कपिल देव की ये बात शायद उनकी टीम के फाइटर्स ने सुन ली थी. और वहीं आगाज़ हुआ था दुनिया की सबसे यादगार अंडरडॉग स्टोरी का.