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जब वर्ल्डकप के लिए भारत-पाक ने हाथ मिलाया!

क्रिकेट वर्ल्ड कप की कहानियां, जिसने देशों की राजनीति बदलकर रख दी

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पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ज़िया उल हक़ और भारत के पूर्व पीएम राजीव गांधी

60 बरस पहले त्रिनिदाद के इतिहासकार सिरिल जेम्स ने एक किताब लिखी थी. बियॉन्ड ए बाउंड्री. इसमें एक मशहूर लाइन थी,

"What do they know of cricket who only cricket know?"

यानी, क्रिकेट का दायरा सिर्फ़ मैदान तक सीमित नहीं है. जिन्हें समाज और समय पर पड़ने वाला असर नहीं पता, वो क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानते.

जेम्स की किताब को वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम का ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है. वो टीम, जिसने सदियों तक विदेशी सत्ताओं का दंश झेला. जिन्हें रंग और नस्ल की वजह से दोयम माना गया. और, जब 1975 में वनडे क्रिकेट का पहला वर्ल्ड कप हुआ, वही टीम विश्व-विजेता बनी. वेस्टइंडीज असल में कोई देश नहीं है. ये नॉर्थ अटलांटिक महासागर में बसे 13 देशों का समूह है. ये नाम औपनिवेशिक शासकों ने दिया था. आज़ादी के बाद ये उनकी एकजुटता का प्रतीक बना. क्रिकेट ने इस प्रतीक को बचाकर रखा है.

आज क्रिकेट की कहानी क्यों?

क्योंकि 05 अक्टूबर 2023 से वनडे क्रिकेट का सबसे बड़ा मुक़ाबला शुरू हो रहा है. भारत में.

मैदान पर जो होगा, सो होगा. उससे पहले बाहर सरगर्मियां तेज़ है. सबसे ज़्यादा संशय पाकिस्तान पर था. भारत ने उनके यहां एशिया कप खेलने से मना किया था. फिर पाकिस्तान ने धमकी दी, हम आपके यहां वर्ल्ड कप नहीं खेलेंगे. लेकिन बाद में सरकार ने मंज़ूरी दी. फिर मामला वीजा पर फंसा. पाकिस्तान ने देरी का आरोप लगाया. अब वो मसला भी सुलट चुका है. और, फ़ाइनली 27 सितंबर को पाकिस्तान की टीम हैदराबाद पहुंच गई. पाकिस्तान के अलावा न्यूज़ीलैंड की टीम भी आ चुकी है. ऑस्ट्रेलिया पहले से यहां मौजूद है.

अब एक नज़र टीमों और उनके पुराने रेकॉर्ड पर डाल लेते हैं.
भारत - 1983 और 2011 में विजेता रहा.
पाकिस्तान - 1992 में विजेता.
श्रीलंका - 1996 में विजेता.
ऑस्ट्रेलिया - 1987, 1999, 2003, 2007 और 2015 में जीते.
इंग्लैंड - 2019 में विजेता बने.
साउथ अफ़्रीका, न्यूज़ीलैंड, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और नीदरलैंड्स को पहली ट्रॉफ़ी का इंतज़ार है.

टूर्नामेंट का फ़ॉर्मेट क्या है?

कुल 10 टीमें हैं.

ग्रुप स्टेज में हरेक टीम बाकी टीमों से एक-एक मैच खेलेगी.

ग्रुप स्टेज की टॉप 04 टीम सेमीफ़ाइनल में पहुंचेगी. पहले नंबर वाली टीम चौथे नंबर से भिड़ेगी. दूसरे नंबर और तीसरे नंबर की टीमों के बीच दूसरा सेमीफ़ाइनल होगा. दोनों मैचों के विजेता 20 नवंबर को अहमदाबाद में भिड़ेंगे. जीतने वाले को वर्ल्ड कप की ट्रॉफ़ी के साथ-साथ 33 करोड़ रुपये का इनाम मिलेगा.

अब टूर्नामेंट के वेन्यू के बारे में जान लेते हैं. कहां-कहां मैच खेले जाएंगे?

कुल 10 मैदानों को चुना गया है.
नई दिल्ली - अरुण जेटली स्टेडियम.
चेन्नई - एम.ए. चिदम्बरम स्टेडियम.
कोलकाता - ईडन गार्डन्स.
मुंबई - वानखेड़े स्टेडियम.
बेंगलुरू - एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम.
पुणे - महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम.
हैदराबाद - राजीव गांधी इंटरनैशनल स्टेडियम.
धर्मशाला - हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम.
लखनऊ - इकाना स्टेडियम.
अहमदाबाद - नरेंद्र मोदी स्टेडियम. फ़ाइनल इसी मैदान पर होगा.

मैदानों के चुनाव को लेकर भी सियासत हुई. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आरोप लगाया कि BCCI भेदभाव कर रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम होने के बावजूद केरल को एक मैच नहीं मिला. इसी तरह पंजाब सरकार मोहाली में मैच ना कराने को लेकर नाराज़ हुई थी.

इस बार के टूर्नामेंट में अलग क्या है?

- पहली, 1975 और 1979 में वर्ल्ड कप जीतने वाली वेस्टइंडीज की टीम क़्वालीफ़ाई नहीं कर सकी. ऐसा पहली बार हुआ.

- दूसरी, अफ़ग़ानिस्तान की टीम लगातार तीसरा वर्ल्ड कप खेल रही है. तालिबान की वापसी के बाद पहला. अगस्त 2021 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया था. सारे स्पोर्ट्स बैन कर दिए. मगर क्रिकेट को रहने दिया. अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट टीम काफ़ी हद तक BCCI के सपोर्ट से चलती है. 2019 में लखनऊ के इकाना स्टेडियम को होम ग्राउंड बनाया गया था. ये भारत की क्रिकेट डिप्लोमेसी का हिस्सा है.

- और तीसरी, पहली दफा पूरा टूर्नामेंट भारत में खेला जाएगा. वर्ल्ड कप के मैच भारत में पहले भी हुए हैं. 1987, 1996 और 2011 में. मगर तब साझा मेज़बानी मिली थी.

फिलहाल चलते हैं इतिहास की तरफ़.

वे मौके, जब क्रिकेट ने राजनीति और राजनीति ने क्रिकेट की दशा और दिशा बदली.

> पहला वर्ल्ड कप 1975 में हुआ. इंग्लैंड में. उस समय तक सिर्फ़ 18 वनडे इंटरनैशनल (ODI) मैच खेले गए थे. ODI की शुरुआत भी दिलचस्प तरीके से हुई. हुआ यूं कि 1971 में इंग्लैंड की टीम ऐशेज़ खेलने ऑस्ट्रेलिया गई. तीसरा टेस्ट मेलबर्न में था. लेकिन मैच हो नहीं पाया. बारिश की वजह से. जनता गुस्सा थी. टिकट का पैसा वापस मांगने लगी. तब दोनों टीमों ने प्रदर्शनी मैच खेलने का फ़ैसला किया. 40-40 ओवर का मैच रखा गया. एक ओवर में 08 गेंदें. मैच ऑस्ट्रेलिया ने जीता. ये मैच एक एक्सपेरिमेंट था. सफल रहा. उम्मीद से दोगुने दर्शक आए थे. संभावनाओं को देखते हुए इसे जारी रखने का फ़ैसला किया गया.

फिर 1975 आया. पहला वर्ल्ड कप कराया गया. 08 टीमों को हिस्सा लेने का मौका मिला. फ़ाइनल में वेस्टइंडीज़ ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर खिताब जीता. ये ऐतिहासिक था. उससे पहले तक गोरी चमड़ी वाले अधिकांश दर्शक ‘ब्लैक बास्टर्ड्स’ और ‘जंगली’ बोलकर उपहास करते थे. वेस्टइंडीज ने एक झटके में उनका मुंह बंद करा दिया था. उन्होंने उस इंग्लैंड में जीत दर्ज की थी, जो उपनिवेशवाद का सबसे बड़ा प्रतीक था. वर्ल्ड कप के कुछ महीने बाद एक और वाकया हुआ. 1976 में एक टेस्ट मैच के दौरान इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग ने कहा, वी विल मैक देम ग्रोवेल. हम उन्हें रेंगने पर मजबूर कर देंगे. वेस्टइंडीज ने इसे पहचान पर हमले के तौर पर लिया. और, खेलने का तरीका बदला. वे आक्रामक होकर आए. उस सीरीज़ में इंग्लैंड 3-0 के अंतर से हारा. वेस्टइंडीज आने वाले कई बरसों तक अपराजेय बनी रही.

- दूसरा वर्ल्ड कप 04 बरस बाद 1979 में खेला गया. लेकिन उससे पहले क्रिकेट का रूप-रंग बदल चुका था. ऑस्ट्रेलिया में एक उद्योगपति हुए, कैरी पेकर. उनके पास अपना टीवी नेटवर्क था. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के टेस्ट मैचों को दिखाने का राइट्स मांगे. मगर क्रिकेट बोर्ड ने मना कर दिया. नाराज़ पेकर ने अपना टूर्नामेंट शुरू कर दिया. वर्ल्ड सीरीज़ क्रिकेट (WSC) के नाम से. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, वेस्टइंडीज, पाकिस्तान और साउथ अफ़्रीका के सबसे बेहतरीन प्लेयर्स शामिल हुए. इमरान ख़ान से लेकर क्लाइव लॉयड तक प्राइवेट टूर्नामेंट में खेल रहे थे. रंगीन जर्सी, डे-नाइट मैच, सफ़ेद गेंद, फ़ील्डिंग से जुड़े लचीले नियम. लोगों को ये भाने लगा. लेकिन इंटरनैशनल क्रिकेट को संचालित करने वाली संस्था ICC नाराज़ थी. उसने मैचों को मान्यता देने से मना कर दिया. फिर मामला कोर्ट में गया. कैरी पेकर जीत गए. ICC को मुकदमे का खर्चा भी देना पड़ा. 1979 में ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट बोर्ड ने पेकर से डील कर ली. हालांकि, उन्होंने WSC में खेले खिलाड़ियों का बैन नहीं हटाया. इसके चलते ऑस्ट्रेलिया ने वर्ल्ड कप में बेहद कमज़ोर टीम उतारी.

इस वर्ल्ड कप को भी वेस्टइंडीज ने जीता. फ़ाइनल में इंग्लैंड को हराकर. भारत के लिए ये टूर्नामेंट बेहद ख़राब रहा. ग्रुप स्टेज में तीनों मैचों में हार का सामना करना पड़ा. सबसे निराशाजनक हार श्रीलंका के ख़िलाफ़ मैच में मिली थी. उस वक़्त तक श्रीलंका को टेस्ट टीम का दर्ज़ा तक नहीं हासिल था.

- ये बड़ी वजह थी कि जब 1983 में भारत की टीम वर्ल्ड कप खेलने इंग्लैंड पहुंची, उनका कोई चांस नहीं दिख रहा था. इसके चलते उनके मैचों को ठीक से कवरेज भी नहीं मिली. एक मैच ज़िम्बॉब्वे साथ था. भारत पहले बैटिंग कर रहा था. 17 पर 5 विकेट गिर गए. फिर कपिल देव ने 175 रनों की ऐतिहासिक पारी खेली. मैच भारत ने जीत लिया. इंग्लैंड में मैचों की कवरेज का राइट बीबीसी के पास था. लेकिन उन्हें भारत का मैच उतना अहम नहीं लगा. एक कारण ये भी बताया जाता है कि बीबीसी के कर्मचारी उस रोज़ हड़ताल पर थे. इसलिए, कपिल देव की पारी रेकॉर्ड नहीं हो सकी.

खैर, ज़िम्बॉब्वे वाले मैच के बाद परिदृश्य बदल चुका था. टीम इंडिया फ़ेवरेट्स में आ चुकी थी. उन्होंने खरा उतरकर दिखाया. 25 जून 1983 को लॉर्ड्स में फ़ाइनल में वेस्टइंडीज को हराकर वर्ल्ड कप जीता. इसी मैदान पर इसी तारीख़ को 1932 में भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला था.

दब भारत ने वर्ल्ड कप जीता, उस समय मुल्क अशांत था. पंजाब और असम दंगों की आग में झुलस रहा था. किसी को पता नहीं था कि वक़्त किस करवट बैठेगा. ऐसे माहौल में इतिहास रचा गया था.

पूर्व भारतीय क्रिकेटर फ़ारुख इंजीनियर ने रेडिफ़ न्यूज़ के हरीश कोतियान को एक क़िस्सा सुनाया था. इंजीनियर मैच के अंतिम क्षणों में बीबीसी रेडियो के एक प्रोग्राम में शामिल हुए. वहां उनके साथी प्रजेंटर ने पूछा, क्या मैडम प्राइम मिनिस्टर कॉमेंट्री सुनती हैं? इंजीनियर बोले, हां. उन्हें जब भी टाइम मिलता है, वो सुनती हैं. अगला सवाल था, क्या वो कल छुट्टी का ऐलान करेंगी? इस पर इंजीनियर ने कहा, हां हां. क्यों नहीं? ये बेहतरीन मौका है.

इसके पांच मिनट बाद ही बीबीसी हेडक़्वार्टर में भारत सरकार की तरफ़ से फ़ोन गया. उस फ़ोन कॉल को कॉमेंट्री बॉक्स में सुनाया गया. इंदिरा गांधी ने कॉमेंट्री सुनने के बाद पब्लिक हॉलिडे का ऐलान कर दिया था.

- फिर आया 1987 का साल.

पहली बार वर्ल्ड कप ब्रिटेन की दहलीज से बाहर निकला. भारत और पाकिस्तान संयुक्त रूप से मेज़बान बने. इस मेज़बानी की कहानी भी मज़ेदार है. इसकी पटकथा 1983 के फ़ाइनल में लिखी जा चुकी थी. दरअसल, भारत से कई दिग्गज लोग फ़ाइनल देखने लंदन गए. इनमें BCCI के तत्कालीन मुखिया NKP साल्वे और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दार्थ शंकर रे भी थे. लेकिन उन्हें मैच का पास नहीं मिला. ये सम्मान का सवाल बन गया. तब उन्होंने इंदिरा गांधी से बात की. इंदिरा ने हरी झंडी दिखा दी. इसी बीच अक्टूबर 1984 में उनकी हत्या हो गई. फिर राजीव गांधी पीएम बने. हालांकि, उन्होंने प्लान जारी रखा. तब भारत और पाकिस्तान ने मिलकर मेज़बानी के लिए अप्लाई किया. इंग्लैंड मेज़बानी छोड़ने के ख़िलाफ़ था. तब भारत-पाकिस्तान ने टीमों को चौगुना पैसा देने का वादा किया. आख़िरकार, इंग्लैंड को पीछे हटना पड़ा.

लेकिन अपने इधर हालात बिगड़ने लगे थे. 1986 के अंत में भारत-पाकिस्तान के बीच बॉर्डर पर तनाव बढ़ गया था. फिर पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन (PCA) के प्रेसिडेंट IS बिंद्रा (इन्हीं के नाम पर मोहाली का क्रिकेट स्टेडियम है) ने जनरल ज़िया उल-हक़ से बात की. भारत आने के लिए कहा. फ़रवरी 1987 में ज़िया जयपुर आए. भारत-पाक टेस्ट मैच देखा. राजीव गांधी से मिले. तब जाकर बॉर्डर पर टेंशन खत्म हुआ. और, फिर वर्ल्ड कप साथ में कराने का रास्ता साफ़ हुआ.

- पांचवां वर्ल्ड कप 04 की बजाय 05 साल के गैप पर हुआ. 1992 में. ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड मेज़बान थे. ये साउथ अफ़्रीका का पहला वर्ल्ड कप था. नस्लभेद की नीति के चलते उन्हें इंटरनैशनल क्रिकेट से सस्पेंड कर दिया गया था. 1990 में नीति खत्म हुई, तब जाकर बैन हटा. टीम सेमीफ़ाइनल तक पहुंची. वहां बरसात के कारण उनका टारगेट बदला. और, टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा.

ये वर्ल्ड कप पाकिस्तान ने जीता. टीम के कप्तान इमरान ख़ान 1987 में संन्यास ले चुके थे. फिर जनरल ज़िया के कहने पर वापस लौटे. 1992 की जीत ने इमरान को पाकिस्तान में नायक बनाया. उसी को आधार बना राजनीति में आए. पार्टी बनाई. 2018 में प्रधानमंत्री बने. फिलहाल, करप्शन केस में जेल में बंद हैं.

- छठा वर्ल्ड कप भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका ने मिलकर आयोजित किया. इस टूर्नामेंट को ईडन गार्डन्स में हुए सेमीफ़ाइनल के लिए याद किया जाता है. 252 के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम 120 पर आठ विकेट खो चुकी थी. इसके बाद दर्शकों ने उत्पात मचाना शुरू किया. स्टेडियम के कई हिस्सों में आग लगा दी. जिसके चलते मैच रोकना पड़ा. और, श्रीलंका को विजेता घोषित कर दिया गया. फ़ाइनल लाहौर में हुआ. वहां श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को हरकार खिताब जीता.

ये जीत उस समय हासिल हुई थी, जब श्रीलंका में सिविल वॉर चरम पर था. टूर्नामेंट से एक महीने पहले लिट्टे के आतंकियों ने सेंट्रल बैंक को बम से उड़ा दिया था. इसके चलते ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज ने वहां खेलने से मना कर दिया था.

- सातवां वर्ल्ड कप 1999 में हुआ. ब्रिटेन और नीदरलैंड्स में.

इसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता. पाकिस्तान को हराकर.
ये टूर्नामेंट काफ़ी हद तक शांतिपूर्ण बीता.

- आठवां वर्ल्ड कप हुआ, 2003 में.

साउथ अफ़्रीका, ज़िम्बॉब्वे और केन्या की मेज़बानी में.
ज़िम्बॉब्वे में तब तानाशाह राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे की सरकार थी. इंग्लैंड की टीम ने वहां मैच नहीं खेला. केन्या में मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट्स थीं. न्यूज़ीलैंड ने उनके यहां खेलने से मना कर दिया.

फ़ाइनल मुकाबला जोहानिसबर्ग में हुआ. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच. ऑस्ट्रेलिया ने तीसरा खिताब अपने नाम कर लिया.

- नौवां वर्ल्ड कप 2007 में खेला गया. वेस्टइंडीज़ में.

फ़ाइनल मैच श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ. अंतिम ओवर्स लगभग काले बादलों के बीच खेले गए. ऑस्ट्रेलिया ने मैच जीत लिया. लेकिन अंपायर्स और मैच अधिकारियों पर ग़लत फ़ैसला लेने के आरोप लगे.

इस टूर्नामेंट की सबसे कुख्यात घटना थी, पाकिस्तान के कोच बॉब वूल्मर की होटल में मौत. इस मौत के लिए पाकिस्तान टीम के खिलाड़ी संदेह के घेरे में थे.

- 10वां वर्ल्ड कप फिर से भारतीय उपमहाद्वीप में लौटा. भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश मेज़बान थे. 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव चरम पर था. 2011 में दोनों देशों की क्रिकेट टीमें सेमीफ़ाइनल में टकराईं. तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने पाक पीएम युसुफ़ रज़ा गिलानी को न्यौता भेजा. दोनों ने मोहाली में साथ में मैच देखा. इससे तल्खी थोड़ी कम हुई. लेकिन इसका दूरगामी असर नहीं हुआ.

फ़ाइनल भारत ने जीता. श्रीलंका को हराकर.

- 11वां वर्ल्ड कप 2015 में खेला गया. ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की मेज़बानी में.
इन्हीं दोनों के बीच फ़ाइनल भी हुआ. ऑस्ट्रेलिया ने वहां बाज़ी मार ली.

- 12वां वर्ल्ड कप इंग्लैंड में खेला गया. 2019 में.
इसे इंग्लैंड ने जीता. न्यूज़ीलैंड को हराकर.

इस टूर्नामेंट की सबसे चर्चित राजनीतिक घटना वो थी, जब पाकिस्तान के एक मैच के दौरान जस्टिस फ़ॉर बलूचिस्तान वाला बैनर स्टेडियम के ऊपर उड़ाया गया था. इस पर काफी विवाद हुआ था. चर्चा चली थी कि क्रिकेट को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए.