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लल्लनटॉप कहानी कम्पटीशन में चुनी गई कहानी - 'समरीन बानो उर्फ समरू बेगम'

ज्योति की कलम से.

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फोटो - thelallantop
साल 2016 का नवंबर. एक गुनगुने महीने में ‘आज तक’ ने एक दो दिवसीय साहित्य उत्सव के बहाने कुछ सरगर्मियां पैदा कीं. इन सरगर्मियों को बढ़ाने में एक बड़ा किरदार ‘लल्लनटॉप कहानी कंपटीशन’ का भी रहा. यह हिंदी के इतिहास में पहला मौका था, जब साहित्य के किसी समारोह में इस तरह की कोई प्रतियोगिता आयोजित की गई. 10-12 नवंबर, 2017 को एक बार फिर उसी जगह पर होगा साहित्य के शौकीनों का महाजमावड़ा. आप पिछली बार आए हों या न आए हों, इस बार जरूर आइएगा वहां लल्लनटॉप अड्डे पर. कहानी कंपटीशन का पहला इनाम रखा गया था एक लाख रुपये. नतीजा आ भी गया. संपादक मंडल ने अपने विवेक से पहली कहानी कैफ़ी हाशमी की ‘टमाटर होता है फल’ चुनी. इसके अलावा 15 और कहानियां चुनी गईं. इन्हीं में से एक है ज्योति की कहानी ‘समरीन बानो उर्फ समरू बेगम’. ये एक दमदार औरत की कहानी कहती है. यह औरत कस्बाई मानसिकता की शिकार है, लेकिन कथावाचिका उसे बराबर इस मानसिकता के आगे हार मानते हुए नहीं, लड़ते हुए दिखाती है. ‘‘कुछ लिखने का शौक पाल लो. अकेलेपन में काम आता है.’’ कथावाचिका को कथा-नायिका की इस नसीहत के साथ यह कहानी खत्म होती है.
 

समरीन बानो उर्फ समरू बेगम

- ज्योति

‘‘अब तो ये गली की अम्मा हो गई है... अरे अम्मा भी न कहो, ये तो अब तवायफ बन गई है.’’ जब भारी-भरकम गोरी चमड़ी वाली उस औरत ने समरीन बानो को इशारा करते हुए यह कहा, तब गली में खड़े बाकी तमाशबीन, जिसमें औरते भी शामिल थीं, खिलखिला कर हंस पड़े. पर समरीन बानो बुलंद आवाज करके बोल पड़ीं, ‘‘हां हूं मैं तवायफ. नाचती हूं तो क्या तुम सभी के घर से मांगने जाती हूं.’’ बड़े-बूढ़ों के बीच-बचाव के बाद मोहल्ले में हुआ यह झगड़ा सन्नाटे में तब्दील हो गया. कुछ लोग हंसते हुए अपने-अपने घरों में घुस गए, तो कुछ लोग ‘फालतू का झगड़ा’ कह कर शरीफ का चोला पहनते हुए जाने लगे. पर समरीन बानो अभी भी गुस्से में तेजी से सांसे ले रही थीं. उन्होंने गाढ़े हरे रंग की सलवार-कमीज पहनी थी. दुपट्टे में लगी गोटेदार किनारी की वजह से दुपट्टा सुंदर लग रहा था. अक्सर वह इसी दुपट्टे को हर सलवार-कमीज पर बिना मिलान के ओढ़ लिया करती हैं. वास्तव में समरीन बानो को इस मोहल्ले में आए हुए दस साल हो गए हैं. लोग बताते हैं कि अपने भाई-बहनों के साथ बहुत गरीबी की हालत में वह यहां बस गईं. पर यकायक जाने कहां से इतनी दौलत आई कि उन्होंने अपने भाई-बहनों की शादी कर दी, और तो और घर भी खरीद लिया. जबसे उन्होंने घर खरीदा तबसे ही गली की औरतों के किस्से में वह शुमार हो गईं. समरीन बानो छोटे कद की औरत हैं. उनका रंग साफ है और अंग्रेजी सीखी हुई हैं. उन्होंने अपना पहला निकाह एक ऐसे व्यक्ति के साथ किया जो पहले से ही शादी-शुदा था. तब समरीन बानो के बारे में लोगों ने बहुत सारी कहानियां रचीं. पर समरीन बानो ने अपने दिल का पीछा किया और बेधड़क फैसला ले लिया. ऐसा बताया जाता है कि उनकी शादी बड़ी शानदार हुई. हिंदू हो या मुस्लिम किसी के भी खान-पान में कोई कमी न रही. समरीन बानो के भाई-बहन अपनी आपा की शादी में जोर-शोर से लगे रहे. लेकिन लगभग छह-सात महीने बाद ही समरीन बानो की अनबन शुरू हुई और वह अपने शौहर का घर छोड़कर वापस अपने मोहल्ले में आकर रहने लगीं. तब गली के लोग उनके बारे में और भी बातें बनाने लगे. पर समरीन बानो का मिजाज जाने किन तरंगों से बना है. वह नाक ऊंची करके उन्हीं लोगों के बीच रहने लगीं. लोग बताते हैं कि समरीन बानो में बहुत सारी ‘क्वालिटीज’ (खासियतें) हैं. वह अकेले रहने वाली औरत हैं. वह बेखौफ हैं. वह राजेश खन्ना के गाने भी सुनती हैं और अकेले काम-धाम भी कर लिया करती हैं. उम्र एक दो पायदान बढ़ी तो उन्होंने इकबाल नाम का किराएदार रखा जो राजेश खन्ना के गाने गुनगुनाया करता था. समरीन बानो को उसका अंदाज धीरे-धीरे भाने लगा. एक रोज फिर उन्होंने दूसरा निकाह करने का मन बनाया. निकाह की तारीख जब तय हुई तब अकेली समरीन, इकबाल के साथ खुश हुईं. लोग बताते हैं कि उनके दूसरे निकाह में रौनक कम रही. दूसरी बात यह कि लोक-लाज और बेहयाई के शब्दों से डर कर उनके खुद के भाई-बहन तक शादी में शामिल नहीं हुए. समरीन बानो को इसका दुख हुआ पर इसे उन्होंने अपनी आंखों से जाहिर नहीं होने दिया. शादी हुई और शौहर किराएदार के लिबास से निकल गया. लेकिन मालूम होता है कि धोखा औरत का पीछा करता है. इकबाल के साथ उनके कुछ दिनों में झगड़े शुरू हो गए. इकबाल उनके साथ मारपीट भी करता था और गाली-गलौज भी. किसी पड़ोसी के बयान से मालूम होता है कि एक रोज समरीन बानो को इकबाल कहता पाया गया, ‘‘हरामजादी! तेरा क्या ईमान? जो औरत पहले आदमी की नहीं हुई वो मेरी क्या होगी? तेरा तो अब इस्तेमाल होना चाहिए... तुम औरतों की औकात पैर की जूतियों से ज्यादा क्या हो! दोनों में बहुत हाथापाई हुई. पुलिस आई और मामला शांत कर चली गई.’’ लेकिन समरीन बानो के कानों से घुसे शब्द उनके दिमाग तक चले गए थे. उनके घर मदद करने आने वाली औरत ने गली की औरतों को कानाफूसी कर बताया, ‘‘अरे आज तो ई औरत अपने मरद को लगाम करने की कोशिश कर रही थी. बोली कि इकबाल मेरे घर में तेरी शराबखोरी नाई चलेगी. तलाक चाईये.’’ इस बात पर गली की संभ्रांत औरतों की आंखें फैल गईं. कुछ तो हंसी उड़ाने लगीं. पर कुछ तथाकथित अच्छी औरतों ने मशविरा भी दिया कि ‘एडजस्ट’ करना चाहिए. सारे मरद पीते हैं. गाली देते हैं. बात-बात पर आदमी भी कोई छोड़ा जाता है. खैर, समरीन बानो तक ये मशवरे नहीं पहुंचे. कुछ दिन बाद समरीन बानो का दूसरा तलाक हो गया. गली के लौंडे-लपाड़ों ने समरीन बानो का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. वे प्यार से उन्हें ‘समरू बेगम’ पुकारने लगे! कोई लड़की अगर किसी बात पर मना करती तो उसे डांट कर चुप करा दिया जाता. ‘‘चुप रह! समरू बेगम मत बन.’’ कोई औरत अगर कुछ फैसले लेना चाहती तब उसमें न जाने क्यों ‘समरू बेगम’ दिखने लगती. क्या समरीन बानो को मोहल्ले की इस खिल्ली की खबर नहीं थी? होगी क्यों नहीं! आवाजें भी कब बुत हुआ करती हैं. समरीन बानो ज्यादातर अपना वक्त अकेले ही बिताया करती थीं. कुछ लोगों ने बताया कि रेखा वाली ‘उमराव जान’ फिल्म वह कई दफा दोहरा-दोहरा कर देखती हैं. कई बार गाती हैं,‘‘ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार है... हद-ए-निगाह तलक जहां गुबार ही गुबार है...’’ कुछ सालों के लिए समरीन बानो लखनऊ रहीं. लेकिन न जाने लखनऊ से खबरें परवाज कैसे भर लेती हैं? लोग आपस में बात करते हैं कि लखनऊ में समरीन बानो ने तीसरा निकाह रचाया. पर वह भी उम्रदराज नहीं निकला. कुछ लोग इसी अफवाह के चलते समरीन बानो को तवायफ, रंडी, बदनाम औरत और न जाने क्या-क्या कह कर पुकारते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि समरीन बानो के रहने से मोहल्ला गंदा हो गया है. ‘एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है’ शैली में समरीन बानो लोगों की जिंदगी और जुबान में बनी रहती हैं. कुछ दिन पहले ही लोगों ने उनके घर के बाहर समरू बेगम, छमिया, बांझ काले कोयले से लिख दिया था... रात के अंधेरे में. अगले दिन ही समरीन बानो ने दो मजदूर मुकर्रर किए और सफेदी करवाई और बड़े अक्षरों में लिखवाया : समरीन बानो. समरीन बानो ने एक बार मुझसे मुस्कुराते हुए कहा था, ‘‘गुड़िया, कुछ लिखने का शौक पाल लो. अकेलेपन में काम आता है.’’ दूर से हम दोनों को किसी ने देख लिया. बस फिर क्या था, झगड़ा शुरू हो गया. फिर मेरी पिटाई हुई और हवा में मैंने तैरते हुए अल्फाज सुने : तवायफ, रांड, छोड़ी हुई, धंधेबाज़. कई दिनों तक चिल्लर बटोर कर मैंने एक छोटी डायरी खरीदी और समरीन बानो के दिए सुझाव को अमल में लाना शुरू कर दिया. रात को घर में सबके सो जाने के बाद जो कुछ समझ में आता, वह लिख लेती. कई बार सोचा कि समरीन बानो को वह डायरी दिखाऊं ,पर मौका नहीं मिल पाया. कुछ रोज बाद उनकी लखनऊ रवानगी की खबर मिली. इसके बाद मेरी उनसे फिर कभी मुलाकात नहीं हुई. हां, उनके घर के पास से आते-जाते हुए सबकी नजर बचा कर उनकी नाम की तख्ती पर हाथ जरूर फेर लेती हूं. मुझे ऐसा करके अच्छा लगता है.
ज्योति  को जानेंः 5 जनवरी 1988 को दिल्ली में पैदा हुईं. शुरुआती शिक्षा नगर निगम प्राथमिक विद्यालय में हुई और माध्यमिक व उच्चतर पढ़ाई-लिखाई, अरुणा आसफ अली सर्वोदय विद्यालय में पूरी की. स्नातक कालकाजी स्थित देशबंधु कॉलेज से किया. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया. वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एम.फ़िल. जमा कर चुकी हैं. इससे ज्यादा परिचय नहीं है और इस परिचय का इंटरव्यू देते-देते अब रट्टा लग चुका है, इसलिए इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है. ब्लॉग बना रखा है और उस पर लिखती हैं और उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रियाएं पाती हैं.
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