
एस बंगरप्पा जो 1990 में सीएम बने.
पर चौंकाने वाली बात ये है कि इनके पिता एस बंगरप्पा तीसरी पार्टी माने कांग्रेस के सीनियर नेता थे. कर्नाटक के 12वें सीएम थे. 1990 में गद्दी मिली थी. वीरेंद्र पाटिल की जगह उनको सीएम बनाया गया था. पाटिल को हटाने की वजह थी आडवाणी की रथयात्रा, जिसके बाद कर्नाटक में दंगे हो गए थे. फिर 1992 में उनकी विदाई हुई. उनको हटाए जाने की वजह थी कावेरी विवाद के चलते हुए दंगे. उनको रीप्लेस किया था वीरप्पा मोइली ने.
एस बंगरप्पा कर्नाटक में एक और नाम से मशहूर थे. ये था 'सोलिलडा सरदारा'. माने वो नेता जिसे कोई हरा नहीं सकता. ये बात कमसेकम उनके विधानसभा चुनाव लड़ने तक तो सही ही थी. वो 1967 से लेकर 1996 तक लगातार विधायक रहे. सोराब विधानसभा से. इसके बाद उन्होंने लोकसभा का रुख कर लिया. 1996 से 2009 के बीच 6 बार चुनाव लड़ा, जिसमें दो बार हारे भी.

बंगरप्पा सात बार लगातार विधायक रहे.
इसके अलावा वो कई बार कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रहे. 1977 में सबसे पहले मौका दिया था सीएम देवराज उर्स ने. 1979 में बंगरप्पा को कर्नाटक कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया गया. 1985 में वो नेता विपक्ष रहे. फिर 1990 में सीएम बने तो बने ही.
पार्टी छोड़ने में मास्टर
पर एस बंगरप्पा के बारे में एक बात और मशहूर है. पार्टी बदलने का उनका खेल. 44 साल के अपने पॉलिटिकल करियर में वो कांग्रेस के अलावा बीजेपी, जेडीएस और समाजवादी पार्टी में भी रहे. इससे पेट नहीं भरा तो उन्होंने अपनी भी पार्टी... नहीं, नहीं पार्टियां बनाईं. माने दो-दो पार्टियां. पहले कर्नाटक कांग्रेस पार्टी बनाई और दूसरी कर्नाटक विकास पार्टी.

नरसिम्हा राव के साथ एस बंगरप्पा.
तो लड़के कैसे पीछे रह जाते. वो इनसे दो हाथ आगे हैं. एक भाई बीजेपी में है और एक जेडीएस में. मगर गलती ये करते हैं कि दोनों आमने-सामने खड़े हो जाते हैं. अब क्या किया जा सकता है. पिता की प्रॉपर्टी तो बराबर बांटी जा सकती है. मगर राजनीतिक विरासत बंटेगी तो सबको बराबर नहीं मिलेगी. किसी को ज्यादा किसी को कम मिलेगी. तो सोराब की सीट पर भी यही हुआ है. एक ही आदमी जीत सकता था तो वही हुआ.
एस कुमार बंगरप्पा को मिले वोट - 72,091 वोटमाने बीजेपी वाले बड़े भइया 13,286 वोटों से जीत गए हैं. बड़े भइया माने एस कुमार बंगरप्पा नेता बनने से पहले एक्टर थे. कन्नड़ और तेलुगू फिल्मों में हीरो. हीरो भी ऐसे-वैसे वाले नहीं. एक्शन हीरो. 80 और 90 के दशक में इनकी फिल्मों का जलवा था. फिर 1996 में वो बन गए नेता. चुनाव लड़े, तब जब उनके पिता लोकसभा चले गए और सोराब की विधानसभा सीट खाली हो गई. उस वक्त वो कर्नाटक कांग्रेस पार्टी की टिकट पर लड़े थे. 1999 में वो आ गए कांग्रेस में और उसकी टिकट पर ही चुनाव लड़े और जीते. एसएम कृष्णा ने उनको मंत्री भी बनाया. और फिलहाल पीछे चल रहे छोटे भइया मधु बंगरप्पा भी एक्टर और प्रोड्यूसर हैं. मगर इनका फिल्मी भौकाल बड़े भइया जितना टाइट नहीं था. पर नेता तो इन्हें भी बराबर का बनना था. सो टशन चला आ रहा है. लंबे समय से. फिलहाल सोराब सीट से वही विधायक थे.
एस मधु बंगरप्पा को मिले वोट - 58,805 वोट

कुमार और मधु बंगरप्पा.
जब परिवार का विवाद सड़क पर आ गया
पर असली कांड हुआ 2004 में. बाप और दोनों भाइयों के बीच. जब पिता एस बंगरप्पा चाह रहे थे उनका छोटा बेटा मधु बंगरप्पा बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़े मगर बड़े भइया नहीं माने और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ गए. इसी दौरान एक ऐसा मौका आया जब बड़े भइया अपना मंत्री पद और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए. मगर 20 दिन बाद ही वो फिर से कांग्रेस में लौट आए. इसका नतीजा ये हुआ कि परिवार के झगड़े का सारा रायता सड़क पर आ गया. ये रायता तब और फैल गया जब चुनाव में दोनों भाई आमने-सामने आ गए. इस बार जीते बड़े भाई कुमार बंगरप्पा.
झगड़ा खत्म नहीं हुआ था. 2008 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और दोनों भाई फिर आमने-सामने आ गए. पर इस बार दोनों को झटका लगा. दोनों ही चुनाव हार गए. इस बार मधु बंगरप्पा समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े थे. कांग्रेस से थे बड़े भाई कुमार बंगरप्पा. पर बाजी मारी बीजेपी से खड़े एच हलप्पा ने. तब ऐसा था वोटों का बंटवारा -
एच हलप्पा - 53,4562011 में पिता की मौत के बाद दोनों भाइयों में दूरी और बढ़ गई. दोनों डटकर एक दूसरे की फजीहत करने में लगे रहते हैं. राजनीतिक वाली. अब आया 2013 का विधानसभा चुनाव. इस बार चुनाव जीता छोटे भाई मधु बंगरप्पा ने. वो जेडीएस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. कांग्रेस से लड़ रहे बड़े भाई कुमार बंगरप्पा तीसरे नंबर पर पहुंच गए. और 2018 का नजारा देखिए. लगातार कांग्रेस से लड़ रहे कुमार बंगरप्पा बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते.
कुमार बंगरप्पा - 32,459
मधु बंगरप्पा 30, 984
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