मिस्ट्री डेथ. सस्पेंस. कोई घर छोड़कर गया और फिर लौटा ही नहीं… तमाम स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर हमने ऐसी कई कहानियां देखी और सुनी होंगी. इनमें कुछ काल्पनिक होती हैं तो कुछ सच. कल्पना का तो कोई ओर-छोर नहीं होता. लेकिन ऐसी सच्ची घटना लोगों में बहुत उत्सुकता जगाती है. उत्सुकता, सच जानने की. उत्सुकता ये पता करने की कि आखिर हुआ क्या था.
इंडिया के लिए दो अलग-अलग खेलों में टॉप लेवल पर रहा एथलीट, जिसे विज़्डन मरा हुआ मानती है!
इंडियन क्रिकेटर और टेनिस प्लेयर कोटा रामास्वामी के घर से गायब होने की कहानी.

और कई बार ऐसी सच्ची घटनाओं का सच सामने आ भी जाता है. लेकिन ऐसे भी कई केस हैं, जिनका सच कभी सामने नहीं आता. और आज हम आपको ऐसा ही एक केस बताएंगे. वो केस जो ना सिर्फ क्रिकेट फ़ैन्स बल्कि टेनिस फ़ैन्स को भी आज तक परेशान करता है. और करे भी क्यों ना, इस केस के सेंटर में मौजूद व्यक्ति इन दोनों ही खेलों के टॉप पर था. ऐसा दिग्गज जो इंडियन क्रिकेट टीम के लिए डेब्यू करने से पहले टेनिस के टॉप टीम इवेंट, डेविस कप में खेल चुका था. करियर खत्म होने के बहुत साल बाद ये दिग्गज एक रोज घर से निकला, और फिर कभी नहीं लौटा.
कुछ साल बाद विज़्डन ने इसे ‘मृत मान लिया’. लेकिन लोगों को ये सही नहीं लगा तो विज़्डन को कुछ वक्त के लिए इस एथलीट को ‘मृत’ मानने से इनकार भी करना पड़ा. लेकिन कई साल बाद अंततः कोता रामास्वामी नाम के इस एथलीट को ‘मृत’ करार दे दिया गया. हालांकि आज तक इनकी मौत कंफर्म नहीं हो पाई है. ना ही कभी इनका शरीर मिला.
रामास्वामी का जन्म 16 जून, 1896 को मद्रास या यूं कह लीजिए अब की चेन्नई में हुआ था. उनका फैमिली बैकग्राउंड क्रिकेट का था. तो वो भी क्रिकेट में घुस गए. कुछ फर्स्ट क्लास मुकाबले खेले. और उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज पहुंच गए. अपनी पढ़ाई करने के लिए. वहां पर इन्होंने टेनिस खेलना शुरू किया. यहां कुछ यूनिवर्सिटी गेम्स खेले. नीदरलैंड्स में जीत हासिल की. साल 1920 के आस–पास इंडिया की डेविस कप टीम में एंट्री कर ली. डेविस कप में रामास्वामी ने डबल्स में डॉ हसन अली फईज़ के साथ टीमअप करके निकोल मिसु (Nicolae Misu) और मिसु स्टर्न (Misu Stern) को 6-2, 6-4, 6-0 से हराया.
इसके बाद उसी साल कोटा रामास्वामी ने विम्बलडन में भी शिरकत की. ब्रिटेन के खिलाड़ी यूलिसिस विलियम्स के खिलाफ पहला मैच जीता. लेकिन फिर निकोल मिसु ने डेविस कप में मिली हार का बदला लेते हुए, उनको हरा दिया. निकोल ने रामास्वामी को 6-1, 6-4, 6-3 से हराया. यहां से फिर उन्होंने अगले साल खेले गए डेविस कप की टीम में जगह बनाई. इंडिया इस बार 1–4 से अपनी टाई लकर बाहर हो गई. यहां रामास्वामी और डॉ फईज़ की जोड़ी ने इंडिया के लिए इकलौता मुकाबला जीता था.
#फिर शुरू हुआ क्रिकेटइस बीच रामास्वामी ने क्रिकेट खेलना भी जारी रखा. मद्रास के लिए अलग-अलग लेवल पर क्रिकेट खेली. और जब रणजी ट्रॉफी का पहला एडिशन हुआ तो उसमें भी शिरकत की. ये सिलसिला चलता रहा. और जब जैक राइडर की ऑस्ट्रेलिया टीम इंडिया दौरे पर आई. तो उन्होंने एक मुकाबला मद्रास के साथ खेला.
इस टीम में कोटा रामास्वामी शामिल थे. पहले बल्लेबाजी करते हुए मद्रास 142 रन ही बना पाई थी. जिसमें रामास्वामी के 48 रन शामिल थे. चेज़ करते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम गोपालन की गेंदबाजी का सामना नहीं कर पाई थी. और 50 के स्कोर के अंदर ही ऑल आउट हो गई थी.
मद्रास की दूसरी पारी में भी रामास्वामी ही हाईएस्ट स्कोरर रहे. उन्होंने इस बार 82 रन की पारी खेली. और टीम ने 165 रन बनाए. अब यहां से ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने अच्छा प्रदर्शन कर मैच जीत लिया. और रामास्वामी को इंडियन टीम से कॉल आ गई.
कोटा रामास्वामी को 1936 के इंडिया टूर ऑफ इंग्लैंड में चुना गया. उनका डेब्यू ओल्ड ट्रैफर्ड में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में हुआ. और इसके साथ ही वो इंडिया के लिए सबसे ज्यादा उम्र में डेब्यू करने वाले दूसरे खिलाड़ी बन गए. उस समय उनकी उम्र 40 साल और 37 दिन थी. ओल्ड ट्रैफर्ड के मैदान पर रामास्वामी ने 40 और 60 रन की पारियां खेल टीम इंडिया को टेस्ट मैच ड्रॉ कराने में हैल्प की.
उसी टूर पर रामास्वामी ने इंडिया के लिए अपना आखिरी टेस्ट मैच भी खेला. 15 अगस्त को इंग्लैंड के द ओवल में शुरू हुए उस टेस्ट मैच में इंडिया को नौ विकेट से हार मिली थी. रामास्वामी ने पहली पारी में 29 और दूसरी पारी में 41 नॉट आउट बनाए थे. टीम इंडिया के प्लान से बाहर होने के बाद भी उनका डोमेस्टिक क्रिकेट करियर चलता रहा.
# कैसे गायब हुए रामास्वामी?अब कहानी की शुरुआत पर आते है. अभी तक आप समझ गए होंगे कि रामास्वामी का क्रिकेट और टेनिस करियर अच्छा रहा. उन्होंने क्रिकेट में प्रवेश कर रहे नए बच्चों को भी गाइड किया. तो वो ऐसे गायब कैसे हो गए?
ये बात साल 1985 की है. जब रामास्वामी 89 साल के थे. वह मद्रास में अपने घर से निकले और फिर कभी नहीं लौटे. क्रिकइंफो के अनुसार उनकी फैमिली ने बताया कि वो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे. फिर उनके ना मिलने पर विज़्डन ने भी उनको ‘मृत माने गये’ स्वीकार कर लिया था.
रामास्वामी भारत के वेस्ट इंडीज़ दौरे पर टीम के मैनेजर रहे चुके थे. और 1950 के दशक में उन्होंने नेशनल सेलेक्टर का पद भी संभाला था.
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