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साउथ अफ्रीका क्रिकेट में रिजर्वेशन लागू, क्या भारत में भी हो?

ऐसा इसलिए किया गया ताकि खेल हर किसी की पहुंच में हो.

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फोटो - thelallantop

क्रिकेट. साउथ अफ़्रीका. ब्लैक प्लेयर्स. कोटा.

मसला ये है कि साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट टीम में कोटा सिस्टम लागू किया गया है. उन्हें किसी भी हालत में टीम में 6 नॉन-व्हाइट प्लेयर्स को रखना होगा. इन 6 में से 2 ब्लैक अफ़्रीकन होने चाहिए. इसको ट्रांसफॉर्मेशन टार्गेट का नाम दिया गया है. इसके अंडर क्रिकेट को एक ऐसा खेल बनाना है, जो सही मायनों में देश के लिए खेला जाने वाला खेल हो और जो हर किसी की पहुंच में हो.

क्रिकेट को साउथ अफ्रीका में ब्रिटिश लोग लाये थे. यहां शुरुआत में अंग्रेजी जुबान वाले गोरे खेलते थे. ये वो समय था जब काले लोगों को रेसिज्म का सामना करना पड़ता था. महज़ अपनी चमड़ी के रंग की वजह से. और उन्हें काफी दबाया जाता था. रेसिज्म की बीमारी के साउथ अफ्रीका से निकलने के बाद वहां ये खेल सभी के लिए उपलब्ध था.

इस ट्रांसफॉर्मेशन टार्गेट को हर मैच में हर प्लेयिंग इलेवन में लागू करना उतना ज़रूरी तो नहीं होगा. लेकिन एवरेज मेन्टेन करके चलना होगा. माने कई मैचों में अगर इसे लागू नहीं किया गया, तो आगे के मैचों में फिर इसे धकापेल लागू करना होगा. सेलेक्टर्स को टीम चुनते वक़्त इस बात का ध्यान रखना होगा.

2018 में टी-20 वर्ल्ड कप साउथ अफ्रीका में खेला जा सकता है. ऐसे में ये एक बड़ा कदम होगा. साथ ही देश की स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने खेल में हो रहे बदलावों की धीमी स्पीड के कारण क्रिकेट बोर्ड को कोई भी बड़ा टूर्नामेंट करवाने से बैन कर दिया था. ऐसे में टी-20 वर्ल्ड कप के साउथ अफ्रीका में होने के चान्सेज़ और भी बढ़ गए हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उसी टूर्नामेंट को ध्यान में रखते हुए ये काम करवाया गया हो.

लांस क्लूज़नर, केप्लर वेसल्स, हैन्सी क्रोन्ये, ऐलेन डोनाल्ड, बोएता डिप्पेनार, हर्शेल गिब्स, एबी डिविलियर्स, डु प्लेसी, जेपी ड्यूमिनी, मोर्ने मोर्केल और डेल स्टेन कुछ ऐसे नाम हैं जो अफ़्रीकी स्पीकिंग बैकग्राउंड से हैं और गोरे हैं. मखाया एंटिनी साउथ अफ्रीका के पहले काले क्रिकेट प्लेयर बने. उनके बाद लोनवाबो सोसोबे, ऐरॉन फंगिसो, और रबादा जैसे ब्लैक प्लेयर्स भी आये हैं.

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आज साउथ अफ्रीका में क्रिकेट पॉपुलैरिटी के मायनों में दूसरे नम्बर पर खड़ा है. वहां हर्शेल गिब्स और मखाया एंटिनी जैसे प्लेयर्स कोटा सिस्टम का फ़ायदा पाकर पहुंचे हैं. हर्शेल गिब्स साउथ अफ्रीका के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में से एक रहे हैं, जो पल भर में गेम को कुछ का कुछ बना सकते थे. साथ ही मखाया एंटिनी वर्ल्ड रैंकिंग में दूसरे नम्बर पर पहुंच गए थे. लेकिन दूसरी तरफ साउथ अफ्रीका को अपने इसी सिस्टम की वजह से केविन पीटरसन जैसे खिलाड़ी को खोना पड़ा. पीटरसन इंग्लैंड से खेले. उन्हें ऐसा लगता था कि कोटा सिस्टम की वजह से उन्हें काफी मौके गंवाने पड़े. वो इंग्लैंड पहुंच गए और दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक में अपना नाम शुमार किया. साउथ अफ्रीका के लिए ये एक 'बुरा सौदा' रहा.

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क्रिकेट में कोटा सिस्टम के अपने फायदे हैं. अपने नुकसान हैं. एक तरफ जहां कहा जाता है कि कम से कम खेलों को स्किल के दम पर खेलने दिया जाना चाहिए. और जाति-धर्म-रंग के बल पर किसी को नाहक फ़ायदा नहीं पहुंचने देना चाहिए. लेकिन दूसरी ओर ये बात भी आती है कि दबे हुए वर्ग को जब तक आप सुविधायें मुहैय्या नहीं करायेंगे, या उन्हें एक सीढ़ी नहीं दिलवायेंगे, उन्हें ऊंचाई पर पहुंचने का मौका नहीं मिलेगा.

सिर्फ साउथ अफ्रीका ही नहीं, इंडिया में भी कई बार क्रिकेट में रिज़र्वेशन की बात चली है. क्रिकेट जो कि इंडिया में पॉपुलैरिटी के मामले में पहले नम्बर पर है. यहां हाल ही में सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर के सेलेक्शन और प्रणव धनावड़े की अनदेखी को लेकर सोशल मीडिया पर भारी बहस छिड़ी थी. यहां आरोप लगाये गए थे कि अर्जुन को प्रणव के ऊपर इसलिए जगह मिली क्यूंकि अर्जुन ब्राह्मण है. ऐसे में दबी जुबान कहा जाने लगा था कि टीम में रिज़र्वेशन लागू करवाया जाना चाहिए. इसके साथ ही नॉर्थ-ईस्ट स्टेट्स के प्लेयर्स की टीम में हमेशा मौजूद रही कमी की वजह से भी टीम में कोटा सिस्टम लागू करने को कहा जाता है.

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