‘जब भी मैं कोई गेम हारता था, तो मैं और ज्यादा लड़ता था. खुद को ट्रेन और बार-बार ट्रेन करता था. और उसी ने सारा अंतर बनाया. हारना भी उतना ही जरूरी है जितना जीतना’
कमाल की बात है ना. हारना भी उतना ही जरूरी है जितना जीतना. और जाहिर है कि ये बात वही बोल सकता है, जिसे इन दोनों का अनुभव हो. और ऐसे अनुभवों वाले लोगों की लिस्ट में अभिनव बिंद्रा तो वॉक-इन कर ही सकते हैं ना भाई? तो इन भाईसाब ने वॉक-इन करते हुए ये बात बोली थी. और ऐसे ही चलते-चलते आज इनकी उम्र हो गई है ठीक चालीस साल.
दुनिया जानती है कि इन्होंने भारत के लिए ओलंपिक्स में पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीता था. ये जीत इतनी बड़ी थी, कि इसके तमाम क़िस्से हैं. और आज इनके जन्मदिन पर हम ऐसे ही क़िस्सों में से दो आपको सुनाएंगे.
# द्रविड़ का सिंगल और मेडल पक्का!
बात साल 2008 की है. बेजिंग ओलंपिक्स से क़रीबन सात महीने पहले की. इंडियन टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी. उनके खिलाफ एक T20I के साथ चार मैच की टेस्ट सीरीज़ खेलने. सीरीज़ का दूसरा मुकाबला सिडनी में हो रहा था. इस मैच में इंडियन वॉल द्रविड़ ने 18 रन बनाने के बाद 19वें रन के लिए 40 डॉट बॉल खेली थी.
उन्होंने गेंदबाजों से लेकर, दर्शकों तक… सबको खूब परेशान किया. और जब उनका 19वां रन आया, तो खुशी में दर्शकों ने द्रविड़ को स्टेंडिंग ओवेशन दे दिया. जिसको देखकर द्रविड़ ने भी अपना बल्ला हवा में लहरा दिया था. खैर, अब आप सोच रहे होंगे कि इस पारी का अभिनव से क्या कनेक्शन. तो कनेक्शन ये है कि इस पारी ने गोल्ड जीतने में अभिनव की मदद की थी. कैसे? वो ऐसे, कि अभिनव को शूटिंग टूर्नामेंट्स में पहला शॉट लेने में परेशानी हो रही थी.
वो नर्वस हो जाते थे, उनका हर्ट रेट बढ़ जाता था. वो बेताब हो जाते थे. और ऐसे में द्रविड़ की इस धैर्य भरी पारी ने उनकी मदद की थी. इन द पॉडकॉस्ट में द्रविड़ के साथ बात करते हुए अभिनव ने कहा था,
‘मैं आपकी एक खास पारी के बारे में बात करना चाहता हूं, जिसने मेरे करियर में एक बड़ी भूमिका निभाई थी. मेरे लिए यह आपकी सबसे महत्वपूर्ण पारी थी, क्योंकि इसने मुझे बहुत कुछ सिखाया. यह वह गेम था जिसमें आपने लगातार 40 डॉट गेंदों के बाद एक रन बनाया था.
यह जनवरी 2008 की बात है. वह ओलंपिक्स का साल था. मैं वहां (ऑस्ट्रेलिया में) एक फिटनेस कैंप के लिए गया था. और अपने करियर में उस समय मैं टूर्नामेंट में अपना पहला शॉट लेने में थोड़ा संघर्ष कर रहा था. क्योंकि मैं वास्तव में घबराया हुआ था, मेरा हार्ट रेट वास्तव में बहुत अधिक हुआ करता था.
मैं कभी-कभी बेताब हो जाता था. और बस जल्दी से इसे पार कर जाता था. यह मेरे लिए ज्यादातर नेगेटिव था. तो, मैंने आपको टीवी पर इस गेम में देखा. आपका लगातार 40 गेंदों के लिए अपार धैर्य दिखाना, इसने मुझे बहुत कुछ सिखाया. इसलिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूं. भारतीय खेल इतिहास में उस पारी की बड़ी भूमिका थी क्योंकि इसने ओलंपिक्स सीज़न में मदद की थी.’
‘मुझे खुशी है कि किसी को इससे फायदा हुआ. वो दर्शकों के लिए यातना भरा था, और मेरे लिए भी.’
# जीत से पहले दो पेग
फास्ट फॉरवर्ड करते हुए अब गोल्ड मेडल से पहले वाली रात पर आते है. अभिनव फाइनल से पहले बेचैन थे. वो अपने अंदर चल रहे इमोशंस से डील नहीं कर पा रहे थे, खुद को शांत नहीं रख पा रहे थे. ऐसे में उन्होंने अपने बैग से जैक डैनियल्स की दो मिनिएचर बोतल निकालीं और पी गए.
ये क़िस्सा इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बताते हुए अभिनव ने कहा,
‘ओलंपिक्स के लिए उड़ान भरने से पहले, मैं म्यूनिख में था. मैं अपने होटल से चैक आउट करने के लिए सामान पैक कर रहा था. और मैंने मिनी बार को देखा. यूं तो मुझे शराब पीने की आदत नहीं है. लेकिन मैंने मिनी बार को देखा. वहां मुझे जैक डैनियल्स की दो छोटी बोतलें दिखीं. जाने किस कारण से मैंने इसे अपनी टॉयलेट किट में पैक कर लिया.
मेरे ओलंपिक्स फाइनल से पहले, मैं नर्वस था. मैं सो नहीं पा रहा था. और ऐसा लग रहा था जैसे मैं मरने वाला हूं. मैं झट से अपनी टॉयलेट किट के पास गया. और दो बोतलें खोली. मैंने उन्हें पिया और फिर अगले दिन, एक गोल्ड मेडल! मैं अपने आत्मसम्मान और जैक डैनिएल्स से लैस था, उस दिन मुझे हराने की औकात किसी की नहीं थी.’
# जीत के बाद भी डिप्रेशन होता है!
गोल्ड मेडल. इंडिया का पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल और अभिनव बिंद्रा. अभिनव इस मेडल के साथ और ज्यादा चमक गए थे. और जब आप स्पोर्ट्स का सबसे बड़ा मेडल जीत लेते हो, तो लगने भी लगता है कि अब तो ये बंदा टॉप पर होगा. लेकिन अभिनव के केस में ऐसा नहीं हुआ था.
मेडल के साथ उनका डिप्रेशन वाला दौर शुरू हो गया था. इस पर एक यूट्यूब इंटरव्यू में अभिनव ने कहा,
‘बिल्कुल, मुझे लगता है कि अपने करियर के दौरान, खेल में मेरा लंबा करियर रहा, मैंने कई उतार-चढ़ाव देखे. तुम्हें पता है, यह बहुत विडंबना है कि मेरे जीवन में मेरा सबसे बड़ा मानसिक संकट तब आया जब मैं वास्तव में सफल हुआ. मेरे लिए, सफलता से निपटना शायद मेरे जीवन का सबसे कठिन समय था.
फोटो - सेंटर में इंडियन गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा (बीजिंग ओलंपिक्स)
बेजिंग तक (जो) मेरी सबसे बड़ी जीत थी, मैंने एक लक्ष्य के साथ जीवन के 16 साल तक ट्रेनिंग की. मैं ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीतना चाहता था. एक अच्छे दिन, यह सपना पूरा हो गया, लेकिन इसने मेरे जीवन में एक बहुत बड़ा शून्य पैदा कर दिया. मुझे लगता है कि यह मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था.
मैं डिप्रेस था और वास्तव में खो गया था. मुझे नहीं पता था कि मुझे जीवन में क्या करना है. वह शायद मेरे जीवन का सबसे कठिन पल था. मेरी ऊर्जा समाप्त हो गई थी, गोल्ड मेडल ने मेरे अंदर से काफी कुछ ले लिया. लेकिन किसी भी चीज़ से बढ़कर, जब आप लक्ष्यहीन होते हैं, तो आप अपने जीवन में उदासीन होते हैं.’
डिप्रेशन के लिए प्रोफेशनल हेल्प की मदद से अभिनव बिंद्रा ने यहां से वापसी की. और फिर इंडिया के लिए कई मेडल्स जीते. अभिनव को हमारी ओर से हैप्पी बर्थडे.
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