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मिडिल क्लास की लड़की, ब्याह के घर बिठा दी जाती लेकिन इस एक बात ने बना दिया पायलट

जोया की कहानी लाखों लड़कियों के लिए एक इंस्पिरेशन है.

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Zoya Agarwal जब आठ साल की थीं, तो छत पर खड़ी होकर आसमान में उड़ते जहाज देखती थीं. तभी उन्होंने तय कर लिया था कि एक दिन प्लेन उड़ाकर सितारे छूने हैं. (फोटो: फेसबुक से)
कैप्टन जोया अग्रवाल. पायलट हैं. वो भारत की सबसे लंबी कमर्शियल फ्लाइट की चालक दल में शामिल थीं. जनवरी में इस फ्लाइट ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से भारत के बेंगलुरु एयरपोर्ट तक का सफर किया था. इस फ्लाइट ने साढ़े 13 घंटे में करीब 14 हज़ार किलोमीटर की दूरी तय की थी. फ्लाइट तो जनवरी में उड़ी थी तो हम कैप्टन जोया के बारे में अभी क्यों बात कर रहे हैं? दरअसल हाल ही में उन्होंने ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे फेसबुक पेज से बात की. और पायलट बनने के अपने सफर के बारे में बताया. जोया अग्रवाल की कहानी एक इंस्पिरेशन है. जो बताती है कि कुछ भी हो जाए अपने सपनों का हाथ नहीं छोड़ना चाहिए. मेहनत करनी चाहिए, रास्ता निकल आता है. बचपन से ही पायलट बनना था जोया ने बताया कि वे एक मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुईं. वो कहती हैं,
"90 के दशक में किसी मिडिल क्लास फैमिली में पैदा होने का मतलब था कि आप अपने परिवार की हैसियत से आगे सपने नहीं देख सकते. लेकिन इसके बाद भी मैं सपने देखती थी. मैं छत पर जाती थी. आसमान में उड़ते जहाजों को देखती थी. सोचती थी कि काश मैं प्लेन उड़ा रही होती तो सितारों को छू सकती. 8 साल की उम्र में ही मैंने तय कर लिया था कि मुझे पायलट बनना है. अपने सपने के लिए मैंने पैसे तक बचाने शुरू कर दिए थे."
जोया बताती हैं कि जब भी उन्हें पैसे मिलते, वो गुल्लक में उन्हें जमा कर लेतीं. सबकुछ अच्छा चल रहा था. लेकिन फिर एक दिन उनकी मां ने कहा-
"बड़े होकर अच्छे घर में शादी करनी है इसकी. तब ही लाइफ अच्छी होगी."
मां की ऐसी बातें सुनकर जोया अपने सपने के बारे में माता-पिता को बता ही नहीं पाती थीं. आखिर में बता ही दिया जोया पढ़ती गईं. दसवीं का एग्जाम अच्छे नंबरों से पास किया. फिर एक दिन अपने सपने के बारे में माता-पिता को बता दिया. मां रोने लगीं. जोया से बोलीं कि वो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं. जोया के पापा बोले कि पायलट की ट्रेनिंग में काफी खर्च आएगा.
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सैन फ्रैंसिस्को से बेंगलुरू की फ्लाइट ऑपरेट करने से पहले जोया अपनी साथियों के साथ. (फोटो: एयर इंडिया)

जोया ये सब बातें सुनकर निराश तो हुईं लेकिन पायलट बनने का सपना उन्हें ऊर्जा देता रहा. दसवीं के बाद उन्होंने साइंस स्ट्रीम को चुना. बारहवीं में अच्छे नंबर आए. इसके बाद फिजिक्स से ग्रेजुएशन की. ग्रेजुएशन के साथ ही साथ एविएशन कोर्स में भी दाखिला ले लिया. इसके लिए पैसे अपनी गुल्लक से निकाले.
जोया ने बताया-
"अगले तीन साल तक मैं सुबह पांच बजे उठती रही. छह बजे से साढ़े तीन बजे तक कॉलेज में रहती. इसके बाद एविएशन के कोर्स के लिए शहर के दूसरे हिस्से में जाना पड़ता. सब कुछ निपटाते-निपटाते रात के दस बज जाते. फिर असाइनमेंट भी करती." बन ही गईं पायलट जोया की मेहनत रंग लाई. उन्होंने कॉलेज टॉप किया. फिर पापा से पूछा कि अब तो सपना पूरा करने दोगे ना? पापा ने हिचकते हुए लोन लिया. जोया ने पढ़ाई में पूरी जान लगा दी. फिर दो साल बाद एयर इंडिया में पायलट की नौकरी निकली. सिर्फ सात पद थे. परीक्षा में बैठे तीन हजार अभ्यर्थी. इसी बीच जोया के पापा को दिल का दौरा भी पड़ गया. लेकिन उन्होंने जोया से पूरा ध्यान एग्जाम पर लगाने को कहा.
जोया ने एग्जाम दिया. सारे राउंड क्लियर कर लिए. एयर इंडिया में भर्ती हो गईं. साल 2004 में पहली फ्लाइट उड़ाई. दुबई के लिए. जोया ने बताया कि उस दिन पहली बार उन्होंने सितारों को छुआ.
इसके बाद उन्होंने खुद अपने पापा का लोन चुकाया. मां के लिए डायमंड के झुमके लिए. फिर 2013 में बोइंग 777 उड़ाने वालीं वे दुनिया की सबसे युवा महिला पायलट बनीं. उस दिन उनके माता-पिता के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.
जोया ने कोरोना वायरस महामारी में अलग-अलह रेस्क्यू ऑपरेशन में भी अपना योगदान दिया है. जोया कहती हैं कि उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है, वो आसानी से उन्हें नहीं मिला है. वे यह भी बताती हैं कि कई महिलाओं ने उन्हें संदेश भेजे हैं. उन संदेशों में कहा गया है कि जोया कि यात्रा देखकर फिर से उठ खड़े होने की प्रेरणा मिलती है और लगता है कि इतनी जल्दी हार नहीं माननी थी. जोया कहती हैं कि वे जब भी कहीं फंस जाती हैं तो आठ साल की जोया की याद करती हैं, जिसके अंदर सपने देखने का साहस था.