
इलाहाबाद से हैं. 2018 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) विमेंस कॉलेज की प्रेसिडेंट चुनी गई थीं. वहां वो बीए लैंग्वेज की स्टूडेंट रहीं. 2019 में मास्टर्स के लिए JNU में एडमिशन लिया. इनके पिता जावेद बिजनेसमैन हैं.
इस वीडियो में आफ़रीन कह रही हैं,
आज जब हम उतरे हैं, CAA-NRC की वजह से उतरे हैं, लेकिन सिर्फ उसके खिलाफ नहीं उतरे हैं. CAA NRC के बाद हम रियलाइज करते हैं कि हमारा कोई भरोसा ही नहीं है किसी चीज़ पर. न हम सरकार पर भरोसा कर सकते हैं, न हम सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा कर सकते हैं. ये वही सुप्रीम कोर्ट है जिसने ‘कलेक्टिव कौन्शियंस के लिए अफ़जल गुरु को फांसी पर चढ़ाया था. ये वही सुप्रीम कोर्ट है जिसको आज पता चलता है कि पार्लियामेंट अटैक में अफ़जल गुरु का कोई हाथ नहीं था. ये वही सुप्रीम कोर्ट है जो बोलती है कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई मंदिर नहीं था. ताला तोड़ना गलत था. मंदिर/मस्जिद गिराना गलत था. और फिर बोलती है कि यहां पर मंदिर बनेगा. हमको सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं है.ये भी पढ़ें: अफज़ल गुरु ने पहले ही बताया था आतंकियों के साथ पकड़े गए DSP का संसद हमले से कनेक्शन
इस वीडियो के वायरल होने के बाद आफ़रीन फ़ातिमा पर फोकस हुआ, उनके पुराने ट्वीट निकाले गए. देखा गया तो उन्होंने शरजील इमाम के समर्थन में भी ट्वीट कर रखे थे.
शरजील गिरफ्तार हो चुका है. मामले की पूरी जानकारी के लिए आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
JNU की पॉलिटिक्स में कहां मौजूद हैं आफ़रीन?
प्रेसिडेंट नहीं हैं. सेक्रेटरी नहीं हैं. काउंसलर हैं. ABVP, AISA, SFI, AISF से भी नहीं हैं. BAPSA-फ्रैटर्निटी मूवमेंट की कैंडिडेट हैं. ये लेफ्ट और राइट दोनों पार्टियों से अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रही है. एक इंटरव्यू में आफ़रीन ने बताया कि लेफ्ट और राइट दोनों ही दबे-कुचलों को अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं. राइट विंग वाले ये खुलेआम करते हैं, लेफ्ट वाले सोशल जस्टिस के नाम पर करते हैं तो उतना पता नहीं चलता. लेफ्ट से उन्हें ये भी दिक्कत है कि उसने कभी कैम्पस में विकल्पों को पनपने नहीं दिया. मुस्लिमों की सेल्फ-आइडेंटिटी को लेकर उनके विचार बहुत तल्ख़ हैं. 'मनोरमा ऑनलाइन' को पिछले साल दिए एक इंटरव्यू में कहती हैं,
बहुत गहरे धंसा इस्लामोफोबिया (इस्लाम को लेकर बैठा हुआ डर/नफरत) है इस कैम्पस पर. जैसे ही कोई मुस्लिम लेफ्ट या राइट की बाइनरी से आगे बढ़कर अपने मुस्लिम होने या अपनी अलग पहचान की बात करता है, उसे कम्यूनल कह दिया जाता है.संबित के इस ट्वीट के बाद ख़बरों में आईं आफ़रीन ने शरजील की गिरफ्तारी के बाद भी ट्वीट किया है और कहा है कि ऐसा उन्होंने ‘गुड फेथ’ यानी भरोसे में आकर किया है.
वीडियो: CAA प्रोटेस्ट: शरजील इमाम असम को देश से काटकर क्या हासिल करना चाहते हैं?