संदर्भ है वाघ बकरी चाय के कार्यकारी निदेशक पराग देसाई की मौत. वो अहमदाबाद में रहते थे. 15 अक्टूबर के दिन घर से वॉक पर निकले थे, सड़क के कुत्तों ने दौड़ाया. बचने के लिए भागे. गिर पड़े. सिर पर चोट आई. भर्ती करने पर ब्रेन हेमरेज का पता चला. उन्हें शहर के जाइडस अस्पताल में भर्ती कराया गया. लगभग 7 दिनों तक उन्हें बचाने की कोशिश की गई. लेकिन 22 अक्टूबर को देर रात उनकी मौत हो गई.
वाघ बकरी चाय के मालिक पराग देसाई की मौत, आवारा कुत्तों के हमले से बचने की कोशिश में हुआ हादसा
15 अक्टूबर को मॉर्निंग वॉक पर निकले पराग देसाई पर स्ट्रीट डॉग्स ने हमला कर दिया था. खुद को डॉग अटैक से बचाने के दौरान वो फिसलकर जमीन पर गिर गए थे, जिससे उन्हें सिर में चोट लगी और उनकी मौत हो गई.
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23 अक्टूबर को दिन भर खबरें चलीं कि पराग देसाई को कुत्तों ने काट खाया था. लेकिन जैसे ही दिन ढलना शुरू हुआ, उनके मौत के कारण साफ हुए. लेकिन पराग देसाई की मौत में कुत्ते विलेन बन गए थे. लिहाजा "आवारा कुत्तों का बढ़ता आतंक" टाइप के कीवर्ड फिर से मजबूत हो गए. लेकिन कीवर्ड की आंधी में मुद्दा समझने की जरूरत है. आवारा कुत्तों का स्केल कितना बड़ा है? क्या ये सचमुच आतंक की परिभाषा गढ़ते हैं? अगर हां तो इनसे कैसे बचें? काटे तो क्या करें? न काटे उसके लिए क्या करें? इनके साथ जियें कैसे?
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