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अपना टेंडर खुद ही पास किया? केजरीवाल के बंगले में 45 करोड़ खर्च होने के पीछे का सच

दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास का पता. ये बंगला इन दिनों सुर्खियों में है. राजनीतिक वार और पलटवार के केंद्र में है. वजह है इस सरकारी आवास की मरम्मत पर किया गया खर्च.

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6 फ्लैग स्टाफ रोड, सिविल लाइंस, दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री के सरकारी आवास का पता. ये बंगला इन दिनों सुर्खियों में है. राजनीतिक वार और पलटवार के केंद्र में है. वजह है इस सरकारी आवास की मरम्मत पर किया गया खर्च. एक पार्टी बंगले के रिनोवेशन में 45 करोड़ खर्च करने का आरोप लगाते हुए CBI जांच मांग रही है, तो दूसरी पार्टी दूसरे मुख्यमंत्रियों के खर्च का ब्यौरा जारी कर रही है. लेकिन इन सबके बीच आम आदमी का मुद्दा और उससे किए वादे, कैसे पीछे छूट गए?

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2015 में अरविंद केजरीवाल 6 फ्लैग स्टाफ रोड के इस सरकारी आवास में रहने आए. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक तब ये करीब 14 सौ वर्गमीटर में फैला हुआ बंगला हुआ करता था. ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर के साथ. डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक पुनर्निर्माण के बाद, एक मंजिल बढ़ गई है और कुल क्षेत्रफल भी बढ़कर 1,905 वर्गमीटर हो गया है. और इसी पर शुरू हो गया है बवाल. इस विस्तार पर नहीं बल्कि इस पर हुए खर्च पर. 

भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमलावर है. कहना है कि राजनीति बदलने का वादा करके आई आम आदमी पार्टी के नेता ने आवास के सौंदर्यीकरण पर 44 करोड़ 78 लाख रुपए खर्च किए. बीजेपी नेताओं ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस खर्च का ब्रेकअप भी दिया है. इसके मुताबिक मुख्यमंत्री आवास पर 36 करोड़ 67 लाख और कैम्प ऑफिस पर 8 करोड़ 11 लाख रुपए खर्च हुए. बीजेपी सोर्सेज की ओर से आए डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक,

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> इंटीरियर डेकोरेशन पर 11 करोड़ 3 लाख,
> स्टोन और मार्बल पर 6 करोड़ 2 लाख,
> इलेक्ट्रिकल फिटिंग्स और गैजेट्स अप्लाएंसेज पर 2 करोड़ 58 लाख,
> फायर फाइटिंग सिस्टम पर 2 करोड़ 85 लाख,
> वार्डरोब एसेसरीज फिटिंग्स पर 1 करोड़ 41 लाख,
> किचन पर 1 करोड़ 10 लाख
> और सुपरीयर इंटीरियर कंसल्टेंसी पर 1 करोड़ रुपए खर्च हुए.

सौंदर्यीकरण का ये काम सितंबर 2020 से जून 2022 के बीच हुआ. इस टाइमिंग पर भी बीजेपी ने सवाल उठाए. बीजेपी ने केजरीवाल को संवेदनहीन बताते हुए कहा कि जब पूरा देश कोविड से जूझ रहा था, उद्योग धंधे मंदी से जूझ रहे थे, दिल्ली सरकार ने भी अपने कई डेवलपमेंट प्रोजेक्ट रोक दिए थे उस समय केजरीवाल अपने बंगले पर इतना पैसा खर्च कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने केजरीवाल को महाराज बताते हुए कहा कि राजा भी उनकी विलासिता के आगे नमस्तक हो जाएंगे.

बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस ने भी मुख्यमंत्री आवास पर हुए खर्च को लेकर केजरीवाल पर हमला बोला. पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन, केजरीवाल का पुराना शपथ पत्र लेकर आए. ये शपथ पत्र तब का है जब 2013 में केजरीवाल पहली बार चुनाव में उतरे थे. क्या लिखा है इस शपथ पत्र में?

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इसमें ऊपर अरविंद केजरीवाल का नाम लिखा है और साथ में ये भी कि मैं चुनाव लड़ने का इच्छुक हूं और जीतने के बाद इन बातों का पालन करूंगा

- मैं लालबत्ती गाड़ी नहीं लूंगा.
- मैं अपने लिए अनावश्यक सुरक्षा नहीं लूंगा. नेताओं को आम आदमी से ज्यादा सुरक्षा नहीं होनी चाहिए.
- मैं बड़ा बंगला नहीं लूंगा. आम आदमी की तरह सामान्य घर में रहूंगा.

इसके अलावा आम आदमी पार्टी के चुनावी वादे और जनलोकपाल बिल के बारे में किए वादों को पूरा करने की बात है. इस शपथ पत्र को ट्वीट करते हुए अजय माकन ने लिखा,

केजरीवाल साहब ने अपने बंगले पर जनता के 45 करोड़ रुपए खर्च किए. आरोप है कि Dior पॉलिश के वियतनामी मार्बल, करोड़ों रुपए के पर्दे, करोड़ों के कालीन लगाए गए हैं लेकिन 7 जून 2013 का यह शपथ पत्र देखिए. शपथ पत्र की यह प्रति नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में केजरीवाल ने अपने चुनाव से पहले बांटे थे...दिल्ली की जनता, जब एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए तरस रही थी तब अपने बंगले पर कर दाताओं की गाढ़ी कमाई के 45 करोड़ उड़ाने वाले को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है

विपक्षी पार्टियों की ओर से सवाल उठे तो आम आदमी पार्टी ने सफाई भी दी और पलटवार भी किया. सफाई ये कि ये मुख्यमंत्री आवास का सौंदर्यीकरण नहीं बल्कि नवीनीकरण है. पार्टी ने कहा कि जिस प्रॉपर्टी का पुनर्निर्माण किया गया वो सरकारी आवास है. 1942 में बना यह घर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था. जिसमें 3 बार छत गिरने की घटनाएं हो चुकी थीं. एक बार केजरीवाल के माता-पिता के कमरे की छत गिरी, दूसरी बार केजरीवाल के बेडरूम की छत गिरी और तीसरी बार जहां केजरीवाल लोगों से मुलाकात करते हैं वहां की छत गिरी. इन तीनों घटनाओं के बाद दिल्ली PWD से इसका आकलन करने के लिए कहा गया. दिल्ली PWD, दिल्ली सरकार के अंतर्गत आती है.  PWD ने ऑडिट रिपोर्ट में घर के पुनर्निर्माण की सिफारिश की थी. इसके बाद एस्टीमेट तैयार किया गया कि कहां-कितना खर्चा होगा और फिर इस एस्टीमेट को वित्त विभाग ने मंजूरी दी. फिर टेंडर निकाला गया. और फिर काम शुरू हुआ.

ये तो हो गई सफाई. अब जवाबी हमले पर आते हैं. आम आदमी पार्टी, बीजेपी के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के खर्च की लिस्ट लेकर आई. कहा कि
> कोरोना काल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 हजार 400 करोड़ का जहाज खरीदा.
> गुजरात के मुख्यमंत्री ने 191 करोड़ का जहाज खरीदा.
> मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री आवास की रंगाई-पुताई में 20 करोड़ रुपए खर्च हुए.
> दिल्ली के उपराज्यपाल के आवास की मरम्मत में 15 करोड़ खर्च हुए.
> सेंट्रल विस्टा का बजट 20 हजार करोड़ से बढ़ाकर 23 हजार करोड़ कर दिया गया.
> PM निवास पर 500 करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा है. जब तक वहां शिफ्ट नहीं होते तब तक मौजूदा निवास की मरम्मत पर 90 करोड़ खर्च किया जा रहा है.

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि ये सारा मसला इसलिए उठाया जा रहा है ताकि सत्यपाल मलिक ने प्रधानमंत्री पर जो सवाल उठाए हैं उन्हें दबाया जा सके.

इन सबके बीच बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन किया और CBI जांच की मांग की है. ये तो हो गया पूरा मामला और उस पर हुआ आरोप-प्रत्यारोप. 

अब आते हैं सवालों पर. किसी मुख्यमंत्री के बंगले के रिनोवेशन में अगर कुछ खर्च हुआ है और नियमों के मुताबिक है तो फिर बहस क्या है और क्यों है?

अमुक क्षेत्र में रहने वाला एक व्यक्ति औसतन कितना कमाता है? इसका माप है पर-कैपिटा इनकम. कैसे मापा जाता है? राष्ट्रीय आय को आबादी से भाग दे कर. हमने देश का उदाहरण दिया, मगर ये किसी भी भू-भाग के लिए ऐसे ही लागू होता है. मसलन 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत की पर-कैपिटा इनकम या प्रति व्यक्ति आय है 412 रुपये प्रतिदिन. माने 30 से गुणा करें, तो एक औसतन भारतीय की महीने भर की कमाई है 12 हज़ार 377 रुपये. हालांकि, आपको समझ आ ही गया होगा कि ये बहुत व्यवहारिक तरीक़ा नहीं है. देश में भतेरे लोग हैं, जो इतना पैसा नहीं कमाते या बेरोज़गार हैं; सो कमाते ही नहीं. और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो औसतन हर घंटे करोड़ों कमा लेते हैं. आप हर साल ख़बरें पढ़ते होंगे कि 1% आबादी के पास 73% संपत्ति है. एशियन डेवलपमेंट बैंक कहता है कि हिंदुस्तान की 63 फ़ीसदी आबादी extreme poverty यानी भयानक ग़रीबी में रहती है. 

हालांकि, देश में कितनी प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं, इसका कोई पुख़्ता और नया आंकड़ा नहीं है. पुरानी मेथेडोलॉजी है, आंकड़े भी पुराने हैं. द प्रिंट के निखिल रामपाल की रिपोर्ट के मुताबिक़, NSO हर पांच साल में उपभोग-व्यय सर्वे (CES) करता है. आख़िरी बार 2017-18 में किया गया था, लेकिन सरकार ने "गुणवत्ता" का हवाला देते हुए इसके नतीजों को रद्द कर दिया था. जो सबसे हालिया डेटा हमारे पास है, वो भी वर्ल्ड बैंक का है. ये डेटा कहता है कि कोविड महामारी की वजह से 5.6 करोड़ भारतीय ग़रीबी रेखा के नीचे चले गए.

ऐसी जनता के वोट पाकर चुने जाने वाले नेताओं को निजी ऐशो-आराम की चीज़ों पर किस हद तक ख़र्च करना चाहिए? आज ये सवाल पूछा जाना चाहिए. सवाल में कोई ख़म नहीं, लेकिन कुछ लोग प्रतितर्क दे सकते हैं. कि भारत एक आज़ाद देश है. कि कोई भी व्यक्ति क़ानून के दायरे में रहते हुए जितना चाहे, उतना पैसा कमा सकता है. कोई अपर-लिमिट नहीं है. बात वाजिब है. लेकिन हमने आपको पहले बताया. यहां सवाल रिप्रेज़ेंटेशन का है, प्रतिनिधित्व का है. जनता के प्रतिनिधि. ग़रीब जनता के प्रतिनिधि. आम आदमी की राजनीति करने का दावा करने वाले. वो इतनी मंहगी सुविधाओं का भोग कैसे कर रहे हैं? दिल्ली की पर-कैपिटा इनकम देश की तुलना में ज़्यादा है. लगभग दुगनी है. लेकिन औसतन 755 रुपये कमाने वाले दिल्ली के नागरिक का प्रतिनिधि 8 लाख के पर्दे लगाने की इजाज़त कैसे दे सकता है? एक पंक्ति में कहें तो बहस यही है.

और अगर ये बहस ईमानदारी से की जाए तो ... न मुख्यमंत्री के बंगले पर ख़र्च होने वाली रक़म जायज़ है, न प्रधानमंत्री के परिधान पर. न विधायकों-सांसदों के काफ़िलों में चलने वाली 45-45 लाख की गाड़ियां और न ही प्रधानमंत्री के प्रचार में ख़र्च हुए एक हज़ार करोड़ रुपए. फिर इन सब मुद्दों पर सवाल क्यों नहीं? ग़ौर से सुनिए, हम ये नहीं कह रहे कि अरविंद केजरीवाल के बंगले पर सवाल क्यों? हम ये कह रहे हैं कि बाक़ियों पर सवाल क्यों नहीं? माने सवाल जनता के सारोकार का नहीं, राजनीति का है.

और आदमी पार्टी की राजनीति शुरु होती है आम आदमी की छवि और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से. लेकिन आज पार्टी के दो बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं. और अब मुख्यमंत्री आवास पर खर्च को लेकर पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये कि आम आदमी की राजनीति का दावा करने वाला इतनी मंहगी सुविधाओं का भोग कर रहा है. ये आरोप अरविंद केजरीवाल की छवि को कितना डेंट करेंगे, समझते हैं दिल्ली की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले पत्रकारों से.

अब एक सवाल ये भी है कि क्या पहले भी नेताओं के बंगलों या खर्च को लेकर कभी इस तरह का कोई विवाद हुआ है? या ये अपनी तरह का पहला मामला है? सुनिए जानकार क्या बताते हैं-

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर उठ रहे हैं. इसलिए ज्यादा उठ रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति चमकाते हुए बार-बार कहा था: सरकारी बंगला नहीं लेंगे, गाड़ी नहीं लेंगे, सुख-सुविधाएं नहीं लेंगे. सुरक्षा के हवाले से, या अन्य कारणों से भी, वो आज सारी सुविधाओं के भोगी हैं. कोई हर्ज़ नहीं है. लेकिन VIP कल्चर को धिक्कारने का दावा करने वाला व्यक्ति अगर ख़ुद के बंगले की साज-सज्जा का बजट 45 करोड़ रखे, तो लाज़मी है कि उनकी राजनीति पर सवाल उठेंगे. और जनता भी पूछेगी कि चुनाव से पहले हम आपके वादों पर भरोसा तो कर लें लेकिन क्या गारंटी है कि आप चुनाव जीतने के बाद पलट नहीं जाएंगे. और जब सवाल उठे तो उन्होंने पलट कर सवाल कर दिए - कि प्रधानमंत्री ने कोरोना काल में 84 सौ करोड़ का जहाज ख़रीदा. सवाल के बदले सवाल. ख़ालिस वॉटबाउट्री. बाक़ी इस सवाल के अलावा कोई जवाब आया, तो लल्लनटॉप आपको बता देगा.

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