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जब शिवसेना ने दिलीप कुमार से कहा, 'साबित करो कि असली हिंदुस्तानी हो'

यहां भी पाकिस्तानी कनेक्शन था.

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जब दिलीप कुमार को सबके सामने आकर कहना पड़ा कि वो अपने देश के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकते हैं. फोटो क्रेडिट: (निशान-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित होते हुए - अल जज़ीरा, बाल ठाकरे - इंडिया टुडे)
साल 1998. पाकिस्तान सरकार ने फैसला किया कि वो एक हिंदुस्तानी एक्टर को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ से नवाज़ेगी. वो एक्टर थे दिलीप कुमार. उस वक्त पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ की सरकार थी. दिलीप कुमार पाकिस्तान पहुंचे और सम्मानित हुए. अब तक के इतिहास में वो इकलौते इंडियन एक्टर रहे जिन्हें ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया. पेशावर में जन्मे दिलीप कुमार इससे पहले पद्म भूषण से भी सम्मानित किए गए थे. साल 1991 में. लेकिन वो पाकिस्तानी सम्मान था, जिसकी वजह से उनका नाम कंट्रोवर्सी के साथ जोड़ा गया.
बवाल शुरू हुआ उनके अवॉर्ड मिलने के ठीक एक साल बाद. 03 मई, 1999 को पाकिस्तानी सेना ने इंडिया के बॉर्डर में घुसपैठ की. दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ. जिसे हम कारगिल युद्ध के नाम से जानते हैं. युद्ध के दौरान पाकिस्तान को लेकर लोगों में भयंकर गुस्सा था. उस समय की नवाज़ शरीफ सरकार ने पहले तो इंडिया से अच्छे संबंध बनाने की बात की. उसके बाद घुसपैठ कर दी. आम नागरिकों से लेकर नेताओं तक, सब पाकिस्तान पर बरस रहे थे. महाराष्ट्र में शिवसेना ने भी खूब बवाल मचाया. दिलीप कुमार पर दबाव बनाया कि वो पाकिस्तानी सम्मान लौटा दें. उस समय इंडिया के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. पॉलिटिक्स गर्माती हुई देख, उनपर भी दबाव बढ़ने लगा. कि वो दिलीप कुमार को सम्मान वापस करने के लिए मनाएं.
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हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान, दिलीप कुमार को हर जगह भरपूर प्यार मिला.

बीजेपी का नाम कंट्रोवर्सी से बचाने के लिए उस समय के पार्टी जनरल सेक्रेटरी नरेंद्र मोदी ने कहा कि दिलीप कुमार को अवॉर्ड लौटाना चाहिए या नहीं, इसका फैसला उनके विवेक पर छोड़ देना चाहिए. जब शिवसेना ने दिलीप कुमार की मंशा पर सवाल उठाए तो वो भी चुप नहीं रहे. जवाब दिया कि वो अपने देश के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकते हैं. उस समय पीटीआई से बात करते हुए कहा,
अवॉर्ड क्या है? अपने देश और उसके मान के लिए सब कुछ न्योछावर कर देना चाहिए.
दिलीप कुमार को निराशा भी थी. कि कैसे राजनीति साधने के लिए उनपर गैर-जरुरी दबाव बनाया जा रहा था. इसपर उन्होंने कहा,
इतनी छोटी-सी बात के लिए इतना शोर मचाया जा रहा है. जैसे कोई सर्कस चल रहा हो. हमारे जवान करगिल में शहीद हो रहे हैं. क्या नेता उनके लिए कुछ नहीं कर सकते?
दिलीप कुमार के बयान के बाद भी बवाल कम नहीं हुआ. सिचुएशन काबू में न आती देख उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी से सलाह मांगी. इसके बाद वाजपेयी ने कहा कि दिलीप कुमार देश के लिए कुछ भी कुर्बान कर सकते हैं. उस समय टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो ने भी अपनी नाराज़गी जताई थी. कहा था,
उन्हें कला के क्षेत्र में दिए अपने योगदान के लिए ये अवॉर्ड मिला है. इसका करगिल युद्ध से क्या नाता!
शिवसेना लगातार दबाव बना रही थी. कि दिलीप कुमार कुमार अवॉर्ड वापस कर दें. तभी साबित होगा कि वो असली भारतीय हैं या नहीं. इस पर सायरा बानो ने कहा था,
उन्होंने वाजपेयी जी और राष्ट्रपति जी से बात करने के बाद पाकिस्तानी सम्मान को कुबूल किया. हमनें अपनी ज़िंदगी यहां बिता दी. क्योंकि हम मुस्लिम हैं तो क्या हमें ये साबित करना होगा कि हम इंडियन हैं या नहीं? उन्हें सिर्फ अपने धर्म की वजह से निशाना बनाया जा रहा है.
07 जुलाई, 2021 को दिलीप कुमार इस दुनिया से विदा हो गए. दिलीप कुमार इस देश के सेक्युलर कल्चर के प्रतीक थे. जो इस बात से सहमत न हों उन्हें 1993 बॉम्बे दंगों के वक्त का किस्सा पढ़ लेना चाहिए. जब दिलीप कुमार ने बिना ज्यादा सोचे अपने घर के दरवाज़े राहत कार्यों के लिए खोल दिए थे.