पिछले कुछ दिनों से देश भर में तीन शब्द चर्चा में हैं- अमृतपाल सिंह, 'वारिस पंजाब दे' और खालिस्तान. पंजाब पुलिस ने अमृतपाल सिंह को फरार घोषित किया हुआ है. पुलिस के मुताबिक उसे पकड़ने के लिए तलाशी अभियान जारी है. अमृतपाल सिंह 'वारिस पंजाब दे' संगठन का प्रमुख है. अलग स्वतंत्र देश 'खालिस्तान' की वकालत करते हैं. पुलिस ने अमृतपाल के संगठन से जुड़े 78 लोगों को गिरफ्तार किया है. इस बीच खालिस्तान शब्द फिर से भारतीय राजनीति के केंद्र में आ चुका है.
खालिस्तान, खालिस्तान बहुत सुना... 'खालिस्तान' शब्द का असली मतलब आपको चौंका देगा!
खालिस्तान की मांग समय-समय पर उठती रहती है. लेकिन इस शब्द का मतलब क्या है?

भारत के लिए खालिस्तान शब्द नया नहीं है. पिछले कई दशकों से इस खालिस्तान की मांग के कारण देश में हिंसा हुई. ऑपरेशन ब्लूस्टार जैसी त्रासदपूर्ण घटना घटी. देश और विदेश में रह रहकर ये शब्द चर्चा में रहता है. क्या है खालिस्तान का मतलब?
आपने कई बार सुना होगा- ये घी ‘खालिस घी’ है, ये दूध ‘खालिस दूध’ है. यानी शुद्ध घी है, शुद्ध दूध है. तो इसी तरह खालिस्तान का लिटरल मीनिंग होता है- प्योर या शुद्ध स्थान.
इस शुद्ध स्थान को एक अलग राष्ट्र बनाने की दिशा में जो प्रयास हुए, हो रहे हैं, उसे खालिस्तान मूवमेंट कहा जाता है. खालिस्तान मूवमेंट उन राष्ट्रवादी सिक्खों का आंदोलन है जो पंजाब के रूप में एक अलग राष्ट्र चाहते थे या हैं. अलग राष्ट्र यानी सिखों का अलग राष्ट्र.
पंजाब में ढेर सारी रियासतें थीं. वो यदि अलग-अलग रहतीं तो मुग़लों द्वारा दबा दी जातीं. इसलिए इन सबने खुद को अलग-अलग मिस्ल में संगठित कर लिया. इन मिस्ल को आप आज के यूरोपीय संघ की तरह या राष्ट्र-मंडल की तरह मान सकते हैं. सिख मिस्ल ने पूरे पंजाब पर 1767 से 1799 तक शासन किया. महाराजा रंजीत सिंह (1780-1839), वही जिन्होंने हरमिंदर साहब पर सोने की परत चढ़ाई, इन सब मिस्लों को एक अम्ब्रैला के नीचे ले आए. और जिस साम्राज्य की स्थापना की वो कहलाया- सिख साम्राज्य और उसकी राजधानी बनी लाहौर.
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आधी सदी तक ये साम्राज्य चला लेकिन अंग्रेजों से हार चुकने के बाद सिख साम्राज्य फिर कई टुकड़ों में बंट गया जिसमें से लगभग सारा पंजाब अंग्रेजों के अधीन हो गया और उन्होंने उसका नाम पंजाब प्रोविन्स रख दिया. जो छोटे मोटे प्रिंसली स्टेट बचे भी, उन्होंने भी अंततः अंग्रेजों की दासता स्वीकार कर ली.
साल 1947 में भारत को आजादी मिलने के साथ ही देश दो हिस्सों में बंट गया. और अंग्रेजों का पंजाब प्रोविनेंस भी दो भागों में बंट गया, जिसमें से बड़ा भाग पाकिस्तान के पास चला गया और कुछ भाग भारत के पास. इस दौरान हिंदुओं और मुस्लिमों को जान-माल का बहुत नुकसान हुआ. लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान सिखों को हुआ. भारत के सिखों को और नए-नए बने पाकिस्तान के सिक्खों को. लाहौर, जो कभी सिख साम्राज्य की राजधानी था वो एक मुस्लिम राष्ट्र में चला गया. इन सबसे आहत होकर फुसफुसाहट में ही सही सिखों की भी अलग राष्ट्र की मांग जोर पकड़ने लगी.
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इसी अलग राष्ट्र की मांग समय-समय पर उठती रहती है. देश से लेकर विदेश तक. विदेशों में खालिस्तान समर्थक अक्सर इसके लिए कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं. खुलेआम झंडा फहराते हैं. 'जनमत संग्रह' तक करवाने की कोशिश करते हैं. इसी साल 29 जनवरी को खालिस्तान समर्थित संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह करवाने की घोषणा की थी.
अमृतपाल सिंह ने हाल में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आप शांतिपूर्ण तरीके से खालिस्तान की बात कर सकते हैं. 'खालिस्तान जिंदाबाद' कहने को भी उन्होंने कानूनी बताया था. इंटरव्यू में अमृतपाल ने कहा था कि 2006 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, शांतिपूर्ण तरीके से खालिस्तान की बात करना, इसकी वकालत करना, खालिस्तान के बारे में लिखना और पर्चे बांटना पूरी तरह से कानूनी है.
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