NIA ने 19 अक्टूबर को वाराणसी (Varanasi) से एक आतंकी को गिरफ्तार किया है. ये आतंकी, इस्लामिक स्टेट (IS) से जुड़ा हुआ था. NIA के प्रवक्ता ने बताया कि आतंकी का नाम बासित कलाम सिद्दिकी है और उसकी उम्र 24 साल है. वो अफगानिसतान में बैठे ISIS के आतंकियों के कहने पर केमिक्लस के जरिए ‘ब्लैक पाउडर’ (Black powder) नाम का विस्फोटक बना रहा था. साथ ही वो टेलीग्राम ग्रुप के जरिए और लोगों को ब्लैक पाउडर बनाना और उसका इस्तेमाल करना सिखा रहा था.
क्या होता है ब्लैक पाउडर, जिसे IS का आतंकी बनारस में बना रहा था और NIA ने धर लिया?
9वीं सदी में चीन में कुछ चीनी रशायनशास्त्री एक एक्सपेरिमेंट कर रहे थे और तभी ब्लैक पाउडर बन गया.


रेड के दौरान NIA को सेल फोन, लैपटॉप, पेन ड्राइव और ब्लैक पाउडर मिला है. फोन, लैपटॉप, पेन ड्राइव तो आप जानते हैं, लेकिन ये ब्लैक पाउडर क्या है? कितना घातक है? कैसे बनता है? और, कब से इसका इस्तेमाल किया जा रहा? ये सब जानते हैं.
ब्लैक पाउडर का इतिहास और इसका विकास कैसे हुआ.
दुनिया में इस्तेमाल किए जाने वाले विस्फोटक, चार अलग तरह के पॉउडर से बनते हैं - ब्राउन, वाइट, फ्लैश और ब्लैक पाउडर. इनमें से सबसे पुराना है ब्लैक पाउडर. इतिहासकार बताते हैं कि 9वीं सदी में चीन में तांग शासनकाल के दौरान कुछ चीनी रशायनशास्त्री सल्फर, कोयले और साल्ट-पीटर से एक्सपेरीमेंट कर रहे थे. और इसी दौरान उनसे ब्लैक पाउडर बन गया था. बाद में वे इसका इस्तेमाल पटाखों और हथियारों में करने लगे. ये मानव इतिहास में इंसानों द्वारा बनाया गया सबसे पहला विस्फोटक था. समय-समय पर इसमें कई बदलाव भी किए गए, जिससे इसकी विस्फोटक क्षमता बढ़ी और समय के साथ ये पाउडर और घातक होता गया.
मसलन, 11वीं शताब्दी में सॉन्ग साम्राज्य के दौरान इसमें और खुरपेंची की गई थी. इसमें लहसुन और शहद मिलाया गया, जिसकी वजह से विस्फोट होने के बाद इससे आग की लपटे और तेज निकलने लगीं.
कैसे बनता है ब्लैक पाउडर?
ब्रिटानिका के मुताबिक, ब्लैक पाउडर को बनाने के लिए तीन जरूरी चीजें चाहिए होती हैं. 10 भाग सल्फर, 15 भाग कोयला और 75 भाग साल्टपीटर. इसमें सल्फर के इस्तेमाल से पाउडर की विस्फोटक क्षमता को बढ़ाया जाता है. कोयले का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता है, जो इसको जलाने में मदद करता है. और, सबसे जरुरी चीज है- साल्टपीटर. या कहें, पोटैशियम नाइट्रेट, जो मिश्रण में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाता है और इसी वजह से पाउडर के बाकी दोनो कम्पोनेंट जल्दी आग पकड़ते हैं. और तेजी से जलते हैं. जलने पर होने वाली केमिकल रिएक्शन से कई बाई-प्रोडक्ट निकलते हैं. जैसे, पोटैशियम कार्बोनेट, पोटैशियम सल्फेट, पोटैशियम सल्फाइड, हाइड्रोजन, मीथेन, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रोजन, अमोनियम कार्बोनेट, कार्बन डाईऑक्साइड और कार्बन.

इतिहास में कब कब इसका इस्तेमाल किया गया?
आज तक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1240 के बाद मंगोलों ने इस्लामिक देशों में ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल किया था. हालांकि, मंगोलों ने ये कभी नहीं माना कि उन्होंने ब्लैक पाउडर का आइडिया चाइना से लिया था. साल 1260 में ऐन जलूत की जंग में मामलुकों ने मंगोल की सेना के खिलाफ पहली बार तोप में ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल किया था.
सीरिया के हसन अल-रामाह ने अपनी किताब ‘अल-फुरसैयाह वा अल-मनसिब अल हरबिया’ में ब्लैक पाउडर बनाने के 107 तरीके बताएं हैं. जिनमें से 22 तरीके रॉकेट्स में इस्तेमाल के लिए थे और बाकी के कुछ फ्यूज, देसी बम, नफ्था पॉट्स और टॉरपीडो के लिए. साल 1241 में मोही में यूरोपीय सेनाओं और मंगोलों के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें मंगोलों ने यूरोपीय सेना पर ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल किया था. उसी युद्ध के बाद यूरोप में ब्लैक पाउडर पहुंचा था.
भारत में कब और कैसै आया ?
बताया जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के शासन के दौरान मंगोल आक्रांता जब भारत आए थे, तो युद्ध के बाद कुछ मंगोल भारत में ही रुक गए थे, जिन्होंने भारत में ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल शुरु किया था.
आज के समय में कैसे इस्तेमाल होता है ब्लैक पाउडर?
ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल प्रोपेलेंट माने ईंधन के तौर पर किया जाता है. दूसरे विश्व युध्द के दौरान ब्लैक पाउडर का इस्तेमाल एनफील्ड राइफ्ल में किया जाता था. अरे, वो मंगल पाण्डेय वाली बंदूक, जिसकी वजह से बवाल हो गया था. वही है एनफील्ड राइफल. हालांकि, अब मिलिट्री में प्रोपेलेंट के तौर पर इसका इस्तेमाल बंद हो गया है, मगर आज भी ये इग्नाइटर या बूस्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसका इस्तेमाल टाइम फ्यूज, सैल्यूटिंग चार्ज और आतिशबाजी में फुफकार वाली आवाज के लिए किया जाता है.

अगर मेटल की किसी चीज में बंद करके इसमें विस्फोट किया जाए, तो ये घातक साबित होता है. जिस वजह से आज नक्सलीयों द्वारा इसका इस्तेमाल कुकर बम, रस्सी बम, पाइप बम के साथ-साथ और भी तरह के देसी बमों को बनाने में किया जाता है.
(आपके लिए ये स्टोरी लिखी है हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे आर्यन ने)
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