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झूठे केस में 43 साल सजा काटी, निकला तो भारत डिपोर्ट करने का ऑर्डर आया, अब कोर्ट ने दी राहत

64 वर्षीय सुब्रमण्यम 'सुबू' वेदम ने एक हत्या के झूठे मामले में 43 साल जेल में बिताए, लेकिन हाल ही में वो बरी हो गए. अब, अमेरिका के इमिग्रेशन विभाग उन्हें भारत भेजना चाहता है, जिसे लेकर अदालतों ने फिलहाल रोक लगा दी है.

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US courts halt deportation of Indian origin man Subramanyam Subu Vedam wrongfully jailed for 43 years

एक व्यक्ति हत्या के इल्जाम में 43 साल अमेरिका की जेल में रहा. बाद में पता चला कि वो तो बेगुनाह था. जब वो जेल से बाहर आया तो अमेरिका के इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट (ICE) ने हिरासत में ले लिया. कहा कि इन्हें भारत डिपोर्ट किया जाएगा. उस व्यक्ति के वकीलों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. आखिरकार अमेरिका की दो अदालतों ने उसे डिपोर्ट करने पर रोक लगा दी है. ये कहानी है सुब्रमण्यम 'सुबू' (Subramanyam Subu Vedam) वेदम की. 

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क्यों हुई थी जेल?

1980 में पेंसिल्वेनिया में 19 साल के थॉमस किन्सर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उनका शव स्टेट कॉलेज के पास एक सिंकहोल में मिला. इस मर्डर केस में पुलिस ने उनके हाईस्कूल क्लासमेट रहे वेदम पर शक जताया, क्योंकि वेदम ही आखिरी बार किन्सर के साथ देखे गए थे. हालांकि, वेदम ने हमेशा कहा कि वे बेगुनाह हैं. लेकिन इस मामले में उन्हें दो बार (1983 और 1988 में) बिना पैरोल के उम्रकैद की सजा सुनाई गई. 

उनके वकीलों ने दावा किया कि उन्हें सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) के आधार पर दोषी ठहराया गया था, जबकि कोई गवाह, मकसद या सबूत नहीं था. इतने सालों तक, उनके परिवार ने उनकी बेगुनाही साबित करने के लिए लगातार कोशिशें कीं. वेदम को दो बार समझौता करने का ऑफर मिला. यानी, अगर वो गुनाह कबूल कर लेते तो सजा कम हो जाती. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसके अलावा उन्हें ड्रग्स से जुड़े एक जुर्म के लिए ढाई से पांच साल की अतिरिक्त सजा मिली.

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इंसाफ मिला, लेकिन देर हो गई

4 दशक बीतने के बाद 2025 में सेंटर काउंटी के एक जज ने उनके दोषी ठहराए जाने का फैसला पलट दिया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजकों (Prosecutors) ने बचाव (Defence) पक्ष के वकीलों से FBI की रिपोर्ट गैरकानूनी तरीके से छिपाई थी. रिपोर्ट्स में किन्सर की खोपड़ी में गोली के छेद का आकार विस्तार से बताया गया था. उन्होंने दावा किया था कि हत्या में .25 कैलिबर की बंदूक का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन इतने सालों बाद आई गोली की जानकारी और बैलिस्टिक एनालिसिस ने पूरी कहानी बदल दी. आखिरकार मामले पर फैसला देते हुए जज ने कहा,

अगर ये सबूत पहले मिल जाता, तो इस बात की पूरी संभावना है कि जूरी का फैसला कुछ और होता.

इसके बाद सेंटर काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी बर्नी कैंटोर्ना ने बहुत वक्त गुजरने, गवाहों के ना बचने और वेदम के पहले ही 43 साल जेल में काटने का हवाला देकर सभी आरोपों को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया. लेकिन जेल से रिहा होते ही वेदम के सामने एक मुसीबत और आ गई. बाहर ICE वाले खड़े थे. ICE ने बताया कि उनके पास वेदम के खिलाफ 'लीगेसी डिपोर्टेशन ऑर्डर' है. ये 1980 का डिपोर्टेशन ऑर्डर है. 

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वेदम की लीगल टीम ने उनके इमिग्रेशन केस को फिर से खोलने के लिए एक मोशन और केस पेंडिंग रहने तक उनके डिपोर्टेशन को रोकने के लिए एक पिटीशन फाइल की. उनका तर्क था कि इमिग्रेशन कानून में भी छूट की इजाजत है. खासकर सजा की उम्र और उनके रिहैबिलिटेशन के रिकॉर्ड को देखते हुए.

कोर्ट ने रोका डिपोर्टेशन

अमेरिका का ICE उन्हें उस ड्रग्स केस के लिए देश से निकालना चाहता है, जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया था. डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी का कहना है कि मर्डर केस में फैसला पलटने से ड्रग्स केस में मिली सजा खत्म नहीं होती. वहीं वेदम की बहन और वकीलों का कहना है कि चार दशकों तक गलत तरीके से जेल में रखने की बात ड्रग्स केस के आरोप से ज्यादा अहम है. अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में, एक इमिग्रेशन जज ने उनके निर्वासन पर रोक लगा दी. ये रोक तब तक रहेगी, जब तक कि इमिग्रेशन अपील ब्यूरो यह तय नहीं कर लेता कि उनके मामले की समीक्षा की जाए या नहीं. 

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