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ऊंचाई के साइड इफेक्ट: सहरी और इफ्तार, दिन में तीन बार

दुबई के बुर्ज खलीफा में रोजादार अलग-अलग वक़्त करते हैं इफ्तार. क्योंकि सूरज ही तीन बार उगता और छिपता है.

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Credit: AP
इमारत एक. उसमें रोजा इफ्तार के वक्त तीन-तीन. यहां ये एलान नहीं होता. हजरात ! रोजा इफ्तार कर लीजिए, इफ्तार का वक्त हो गया है. इसकी वजह यहां इमारत की उंचाई होना है. बात कर रहे हैं हम बुर्ज खलीफा की. वही इमारत जो दुबई में है. दुबई की इस इमारत में रोजा ही तीन अलग-अलग वक्त इफ्तार नहीं किया जाता. यहां नमाज का वक्त भी अलग-अलग है. यहां लोग लाउडस्पीकर से एलान होने का इंतजार नहीं करते. खुद ही अपने-अपने वक्त पर रोजा इफ्तार करते हैं. नमाज पढ़ते हैं. उर्दू वेबसाइट से बातचीत में इमारती आलमे दीन और मुफ्ती ए आजम अहमद अब्दुल अजीज ने बताया कि बुर्ज खलीफा की ऊंचाई ज्यादा है. इस वजह से अलग-अलग मंजिल में अलग-अलग वक्त रोजा इफ्तार होता है और पांचों वक्त नमाज होती है. रोजा इफ्तार करने के लिए सूरज का छिपना जरूरी है. रोजादार सूरज के छिपने का इंतज़ार करते हैं.

इस तरह होता है इफ्तार और सहरी 

बुर्ज खलीफा में 163 मंजिलें हैं. इसकी ऊंचाई तकरीबन 30 हजार फीट है. ग्राउंड से लेकर 79 मंजिल तक रहने वाले बाकी शहर वालों के साथ रोजा इफ्तार करते हैं और सहरी करते हैं. 79 से 149 मंजिल तक रहने वाले दो मिनट के बाद इफ्तार और सहरी करते हैं. ऐसे ही बाकी ऊपर कि मंजिल के लोग दो मिनट तक सूरज के छिपने का इंतजार करते हैं. इसी तरह दो-दो मिनट बाद नमाज़ का टाइम होता है.

सऊदी अरब में रमजान के दौरान बदल रहे तौर तरीके 

उर्दू वेबसाइट एक्सप्रेस न्यूज़ के मुताबिक सऊदी अरब में सहरी के वक्त जगाने के तरीकें बदल रहे हैं. पहले जद्दा, मदीना, मुन्नवरा, मक्का में रोजे का एहसास करने के लिए खुले मैदान में बैठते थे, ताकि धूप में एहसास कर सकें. वहीं सहरी में जगाने के लिए एक तोप हुआ करती थी, जिससे गोला दागकर लोगों को जगाया जाता था. अब न तोप से गोला दागा जाता है और न लोग खुले मैदान में बैठते हैं.

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