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वेब सीरीज रिव्यू: द फेम गेम

ये शो पूरी तरह से माधुरी दीक्षित और उनके किरदार का है.

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माधुरी का शो एक सुपरस्टार की कहानी बताता है जो अपना स्टारडम छोड़कर एक दिन अचानक गायब हो जाती है.
रवीना टंडन के बाद माधुरी दीक्षित ने भी अपना डिजिटल डेब्यू कर लिया है, नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सीरीज़ ‘द फ़ेम गेम’ के ज़रिए, जिसे पहले ‘फाइंडिंग अनामिका’ के नाम से बनाया जा रहा था. माधुरी ने शो में अनामिका आनंद नाम की बॉलीवुड एक्ट्रेस का रोल प्ले किया है. बड़ी सुपरस्टार है. फैन्स से लेकर पैपराज़ी तक, सब उसकी एक झलक पाना चाहते हैं. ऑफ कैमरा वाली ज़िंदगी में अनामिका अपनी मां, पति और दो बच्चों के साथ रहती है. सामने से देखने पर सब कुछ पिक्चर परफेक्ट लगता है.
तभी एक दिन अचानक अनामिका अपना स्टारडम, अपनी फैमिली पीछे छोड़कर गायब हो जाती है. वो कहां गई, उसके साथ क्या हुआ, ऐसे सवालों का जवाब जानने के लिए पुलिस अपनी जांच शुरू कर देती है, मीडिया अपना सर्कस, और फैन्स अपनी थ्योरीज़. शो के अंदर मौजूद किरदार और उन्हें देखने वाली ऑडियंस, दोनों को लगता है कि ये शो अनामिका कहां हैं के बारे में है. लेकिन ऐसा नहीं है. अनामिका के गायब होने वाला हिस्सा दिखाकर शो अपने मेन पॉइंट पर आता है, कि अनामिका कौन है. उसकी फैमिली, को-वर्कर्स और करीबी रहे लोगों से हमें अनामिका का आइडिया मिलने लगता है.
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रील लाइफ जितनी ब्राइट, रियल लाइफ उतनी ही डार्क.

‘फिल्म स्टार्स की लाइफ में तो क्या ऐश है यार’, शो इस सोच को तोड़ने की कोशिश करता है. तभी अनामिका की फिल्मी लाइफ को ब्राइट लाइट्स के ज़रिए कैप्चर किया गया, कि जैसे सारा जग रोशन है उसके लिए. लेकिन उसकी रियल लाइफ बिल्कुल उलट है, या यूं कहें कि बिल्कुल वैसी है जिसे आम भाषा में बोरिंग कहा गया है. फिर चाहे बच्चों के साथ मिसअंडरस्टैंडिंग हो या अपनी फीलिंग्स पर अमल न कर पाना, वो किसी नॉर्मल इंसान जैसी ही है. उसकी लाइफ में वो मसाला नहीं, जिसकी उम्मीद फैन्स करते हैं. रील और रियल लाइफ का कॉन्ट्रास्ट लाइटिंग के थ्रू भी दिखाया गया है. रील वाली लाइफ जगमगाती हुई, वहीं रियल वाली डार्क, जहां वॉर्म कलर मिसिंग है.
ये शो पूरी तरह से माधुरी दीक्षित और उनके किरदार अनामिका का है. इसलिए हमें बाकी किरदारों के बारे में लिमिटेड नॉलेज मिलती है. उनकी इनसिक्योरिटीज़, उनके डर से हमें रूबरू ज़रूर करवाया गया, लेकिन उनकी गहराई में नहीं उतरे. अनामिका को देखकर यही लगता है कि अपनी फिल्मों की तरह उसे रियल लाइफ में भी नायिका बनने की आदत हो चुकी है. पति को सपोर्ट करना है, घर को संभाले रखना है, बच्चों के लिए अच्छी मां का एग्ज़ाम्पल बनना है. वो रील और रियल वाली लाइन को धुंधला कर चुकी है. ऐसे में असली अनामिका कौन है, बस यही शो का मेन प्लॉट है.
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शो अपना मोमेंटम बरकरार नहीं रख पाता, जिस वजह से एक पॉइंट के बाद झिलाऊ लगने लगता है.

चाहे सुपरस्टार की ग्रेस हो या एक वलनेरबल औरत की इनसिक्योरिटी, माधुरी को दोनों पार्ट्स में ट्रांज़िशन करने में कोई दिक्कत नहीं होती. उनके अलावा कास्ट में मानव कौल का काम भी अच्छा है. बस उनके किरदार को ज़्याद शेड्स नहीं दिए गए. ये शो पूरी तरह से माधुरी का है, मेकर्स भी ये बात भूलते नहीं दिखते. परत-दर-परत अनामिका की लाइफ उधड़ने लगती है. जहां हमें पता लगने लगता है कि सब कुछ नॉर्मल नहीं. अंदर कहानी कुछ और ही है. शो ने अपने इसी पार्ट के दौरान बॉडी शेमिंग, मेंटल हेल्थ और नेपोटिज़्म जैसे टॉपिक्स को भी छुआ. बस छुआ, ज्यादा डेप्थ में नहीं उतरे. शो कोशिश करता है खुद को एक स्लो बर्न मिस्ट्री की तरह ट्रीट करने की, लेकिन यहीं गड़बड़ हो जाती है. ऐसा करने के चक्कर में रीपीटेटिव होने लगता है. एक तरह के कॉन्वर्ज़ेशन बार-बार देखने को मिलते हैं. ऐसे में क्लाइमैक्स की मिस्ट्री भी अपना इम्पैक्ट नहीं छोड़ पाती. मुझे ज़रूरत से ज्यादा बार फोन चेक करना पड़ा, और बस ये मन में था कि आठ एपिसोड खत्म हो जाएं बस.
ग्लैमर से इतर ये शो फिल्मी दुनिया की ‘नॉट सो अट्रैक्टिव’ साइड को अच्छे से दिखाता है. जैसे एक जगह डायलॉग है कि हीरो की एक टांग कब्र में है, और रोमांस अपनी बेटी की उम्र की लड़की से करना है. या फाइनैंसर का ये कहना हो कि फिल्में आर्ट नहीं हैं, बिज़नेस है. ‘द फ़ेम गेम’ शुरू इस तरह होता है कि आप धीरे-धीरे अनामिका के बारे में जानना चाहते हैं, लेकिन कुछ देर बाद ही आपका अटेंशन बंटने लगता है. फिर बता दें कि ‘द फ़ेम गेम’ को आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.