
बनवारीलाल पुरोहित नागपुर से तीन बार सांसद रह चुके हैं. इससे पहले वो असम के गवर्नर नियुक्त किए थे.
मगर आज जिस वजह से बनवारीलाल पुरोहित गूगल सर्च पर कीवर्ड बने हुए हैं, वो उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस है. जो उन्होंने ये सफाई देने के लिए बुलाई थी कि निर्मला देवी नाम की महिला से उनकी कोई जान-पहचान नहीं है. और सफाई देने के सिलसिले में महिला पत्रकार लक्ष्मी सुब्रमनियन के सवाल को टालने के लिए उन्होंने लक्ष्मी का गाल थपथपा दिया.
जब उनको आईना दिखाया गया, तो पुरोहित ने इस तरह माफ़ी मांगी:

मदुरई के देवांग आर्ट्स कॉलेज में इस मसले की शिकायत महीने भर पहले ही हो चुकी थी. मगर पुलिस तक तब पहुंची जब प्रफेसर निर्मला का एक ऑडियो क्लिप वायरल हो गया. जिसमें वो पैसों का हिसाब कर रही थीं.
अपने बचाव में पुरोहित ने कहा :
'मैं उस महिला को नहीं जानता. मैं पॉलिटिक्स से दूर हूं. अगर जांच में पाया गया कि ऐसा सच में हुआ है तो इसके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे. इसके आगे कुछ भी जांच के बाद ही कहा जा सकता है.'यौन शोषण के एक केस से खुद को बचाते हुए पुरोहित ने खुद ऐसा काम कर दिया है, जिसे यौन शोषण के दायरे में देखा जा रहा है. मीडिया में अपनी छवि सुधारने चले थे, अब बिगाड़ आए हैं. सिर्फ इसलिए, क्योंकि वो अपनी सत्ता को काबू में नहीं रख पाए. सत्ता 3 तरह की:
1. उम्र में पत्रकार से कई साल बड़े होने की 2. बड़े ओहदे पर होने की 3. पुरुष होने की

सोर्स: ट्विटर

सोर्स: ट्विटर
फर्क है. मगर दो बातों पर हमें गौर करना चाहिए:
1. यौन शोषण हुआ है या नहीं, ये पीड़ित ही तय कर सकता है. क्योंकि यौन शोषण करने वाला ये कभी नहीं कहेगा कि उसकी नीयत बुरी थी. 2. यौन शोषण की कोई कैटेगरी नहीं होती. वो किसी को घूरने से लेकर किसी का रेप करने तक हो सकता है.
सवाल ये नहीं है कि पुरोहित की नीयत क्या थी. सवाल ये है कि बिना इजाज़त आप किसी को हाथ लगाएंगे ही क्यों, खासकर तब, जब आप उसे जानते ही नहीं. इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो पत्रकार औरत है या पुरुष, भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार के सवाल का जवाब देने के बजाय आप इस तरह उसका गाल थपथपा कर उसे टाल दें, जैसे आपके ओहदे के सामने पत्रकार की कोई औकात है ही नहीं, इसमें 'दादाजी वाली फीलिंग' कहां से आती है?

और जहां तक बात है लक्ष्मी सुब्रमनियन की, ये उनकी ज़िम्मेदारी या फ़र्ज़ नहीं है कि वो पुरोहित या किसी और की 'नीयत' को समझें. उन्हें शोषित महसूस हुआ है तो वो आवाज उठाएंगी ही. आवाज उठाने के पहले कोई औरत इस बात का इंतज़ार नहीं करेगी कि उसके साथ कोई और बड़ी, बुरी हरकत हो. फ़र्ज़ तो सिर्फ और सिर्फ पुरोहित का बनता है कि वो अपने हाथ और सत्ता को वश में रखें. और 80 की उम्र में अपनी छीछालेदर न करवाएं.