स्वीडन (Sweden) में कुरान (Quran) जलाने वाली घटना को एक महीना पूरा होने को आया है, लेकिन अब भी बवाल जारी है. खबर है कि 20 जुलाई की सुबह नाराज प्रदर्शनकारियों ने बगदाद में स्वीडिश एंबेसी (Swedish Embassy) पर हमला कर दिया. परिसर में आगजनी की जानकारी भी सामने आई है. घटना से जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं.
एक महीने पहले कुरान जलाई, अब इराक में प्रदर्शनकारियों ने एंबेसी में आग लगा दी!
बगदाद में स्वीडिश एंबेसी पर हमला, वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं.

वीडियो में प्रदर्शनकारी प्रभावशाली इराकी शिया मौलवी और राजनीतिक नेता मुक्तदा अल-सद्र से जुड़े झंडे लहराते और नारे लगाते दिख रहे हैं.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा बल के लोगों के साथ झड़प भी हुई.

इस दौरान सुरक्षा बल ने उन पर वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया.

स्वीडिश विदेश मंत्रालय के प्रेस ऑफिस ने एक बयान में कहा कि बगदाद दूतावास के सभी कर्मचारी सुरक्षित हैं. बयान में हमले की निंदा की गई और सुरक्षा के लिए इराकी अधिकारियों की जरूरत की बात भी की गई.
इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 28 जून को स्वीडन की मुख्य मस्जिद के सामने एक शख्स ने कुरान में आग लगा दी थी. आरोपी ईराकी नागरिक है जो सालों पहले वहां से भागकर स्वीडन आ गया था. 37 साल का सलवान मोमिका. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये घटना एक विरोध प्रदर्शन के तहत हुई. इसके लिए स्वीडन पुलिस ने पहले ही अनुमति दी थी. पुलिस अब 'एक जातीय या राष्ट्रीय समूह के खिलाफ आंदोलन' के रूप में इसकी जांच करेगी.
अब तक क्या क्या हुआ?इस घटना के बाद मुस्लिम देशों में विरोध प्रदर्शन हुए. OIC ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आवाज उठाई. संगठन ने इन घटनाओं को रोकने के लिए उपाय करने की बात की.
11 जुलाई को UNHRC में पाकिस्तान और फिलिस्तीन की ओर से इस पर प्रस्ताव पेश किया गया. प्रस्ताव ‘मजहबी नफरत बढ़ाने वाली गतिविधियों’ के खिलाफ उपाय किए जाने के लिए था. इस पर खूब बहस हुई. इस दौरान इस्लामिक देश और अमेरिकी-यूरोपीय देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आमने-सामने आ गए.
ईरान, पाकिस्तान, सऊदी अरब समेत कई मुस्लिम देशों ने कहा कि कुरान जलाए जाने की घटना धार्मिक नफरत को बढ़ावा देती है. वहीं कुछ देश प्रस्ताव के विरोध में थे. उनका कहना था कि ये प्रस्ताव मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उनके रुख के अनुरूप नहीं है. इस पर इस्लामिक देशों की ओर से कहा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसी घटनाओं को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता.
28 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया. इसमें भारत भी शामिल है. 12 जुलाई को UNHRC में वोटिंग के बाद ये प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया.
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