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सहारा ग्रुप निवेश करके डूबने वालों का पैसा लौटाएगा? सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दे दिया है

क्या है सहारा-सेबी मामला जिसके चलते सुब्रत रॉय को जेल हो गई थी?

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सुप्रीम कोर्ट और सुब्रत रॉय. (तस्वीरें- पीटीआई और इंडिया टुडे से)

सहारा ग्रुप की मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज (MSCS) में पैसा लगाकर पछताए निवेशकों को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को SAHARA-SEBI फंड से इन लोगों को निवेश का पैसा लौटाने की अनुमति दे दी है. केंद्र सरकार ने इसके लिए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. सहारा-SEBI में कुल 24 हजार करोड़ रुपये का फंड है. केंद्र सरकार ने इसमें से 5000 करोड़ रुपये निवेशकों को भुगतान के लिए आवंटित किए जाने की मांग की थी.

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इंडिया टुडे से जुड़ीं अनीषा की रिपोर्ट के मुताबिक सहारा ग्रुप की MSCS में पैसा लगाने वाले निवेशकों की संख्या एक करोड़ 10 लाख से भी ज्यादा है. इन लोगों ने अपनी जीवन भर की बचत का सहारा चिटफंड कंपनियों और क्रेडिट फर्म में निवेश किया था. लेकिन उनका पैसा डूब गया.

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल पिनाक पानी मोहंती नाम के एक शख्स ने इस मामले में केंद्र सरकार को जनहित याचिका (PIL) भेजी थी. उन्होंने याचिका के जरिये सरकार से कहा था कि सहारा ग्रुप में निवेश करने वाले लोगों को उनका पैसा लौटाने की दिशा में कदम उठाए जाएं. इसके बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. इसकी सुनवाई करते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने आदेश दिया कि जमाकर्ताओं के पैसे उन्हें लौटाए जाएं.

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क्या है सहारा-SEBI केस?

मामला शुरू होता है 2009 से. सहारा ग्रुप की एक कंपनी 'सहारा प्राइम सिटी' शेयर मार्केट में जाने के लिए SEBI के पास अनुमति लेने पहुंचती है. SEBI यानी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया. काम है शेयर मार्केट में होने वाली गड़बड़ियों को रोकना, कंपनियों से नियमों का पालन कराना और निवेशकों के हितों की रक्षा करना. सितंबर 2009 में सहारा प्राइम सिटी SEBI को IPO लाने के लिए DRHP भेजती है. DRHP एक तरह का बायोडेटा होता है जिसमें शेयर मार्केट से पैसा उठाने वाली कंपनी अपनी तमाम जानकारियां डालती है. जैसे, नाम, पता, कितना पैसा है, काम क्या करती है वगैरा-वगैरा.

SEBI सहारा प्राइम सिटी का बायोडाटा जांच रही थी. उसी दौरान सहारा ग्रुप की दो कंपनियां मार्केट रेग्युलेटर की आंख को खटक गईं. इनके नाम हैं सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL). SEBI को लगा कि इन्होंने गलत तरीके से जनता से पैसे उठाए हैं.
ये सब चल ही रहा था कि तभी SEBI को इन कंपनियों के बारे में एक शिकायत मिली. उसे बताया गया कि ये कंपनियां गलत तरीके से OFCD जारी कर रही हैं. OFCD जनता से पैसे उधार लेने का एक तरीका है. इसमें पैसा उठाने के बदले में ब्याज चुकाना होता है.

SEBI की जांच में खुली पोल
SEBI ने सहारा की कंपनियों की जांच शुरू की. दी लल्लनटॉप से जुड़े रहे शक्ति की फरवरी 2020 एक रिपोर्ट के मुताबिक जांच में सामने आया कि SIRECL और SHICL ने दो-ढाई करोड़ लोगों से 24 हजार करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे. ये कह कर कि इस पैसे से देश के अलग-अलग शहरों में टाउनशिप बनाए जाएंगे. लेकिन सहारा ने इसके लिए SEBI से अनुमति नहीं ली थी. जांच में ये भी पता चला कि सहारा के कई निवेशक फर्जी थे और उनमें से कइयों का कंपनी से कोई संबंध नहीं था. बाद में सहारा ने न तो टाउनशिप बनाई, न लोगों के पैसे वापस किए.

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ये गड़बड़ी सामने आते ही SEBI ने सहारा का नया OFCD रोक दिया. उसने कंपनी को लोगों के पैसे 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया. इसके खिलाफ सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय इलाहाबाद हाई कोर्ट गए और SEBI पर केस कर दिया. दिसंबर, 2010 में कोर्ट ने SEBI के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन 4 महीने बाद उसने SEBI को सही पाया और सहारा को निवेशकों को भुगतान करने को कहा.

फिर सुब्रत रॉय सुप्रीम कोर्ट गए. उसने सहारा को सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) जाने को कहा जो कंपनियों के मामलों का निपटारा करता है. SAT से सहारा को झटका लगा. उसने SEBI के आदेश को सही करार दिया. इसके बाद भी सहारा ने गलती नहीं मानी. सो मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में गया. लेकिन यहां भी सुब्रत रॉय की सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं. शीर्ष अदालत ने SEBI के आदेश का समर्थन करते हुए सहारा के खिलाफ आदेश दिया. कहा कि लाखों छोटे निवेशकों से जमा हुई करीब 24 हजार करोड़ रुपये की रकम लौटा दी जाए.

कोर्ट के आदेश के बाद भुगतान को लेकर सहारा की टालमटोल चलती रही. बाद में अदालत ने कंपनी को तीन किश्तों में SEBI के यहां रकम जमाने कराने को कहा. इसकी को SAHARA-SEBI FUND कहते हैं. सहारा ने 5210 करोड़ रुपये SEBI के खाते में डाल दिए. लेकिन आगे के भुगतान को लेकर बहाना बनाया. दावा किया कि बाकी का पैसा निवेशकों को सीधे ही दे दिया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को लपेट दिया. उसने सहारा के बैंक खाते और संपत्ति को सील करने का आदेश जारी कर दिया. फरवरी, 2014 में सुब्रत रॉय गिरफ्तार कर लिए गए. दो साल बाद उन्हें परोल मिल पाई. तब से वो जेल से बाहर हैं. लेकिन सभी निवेशकों को उनके पैसे अभी तक नहीं मिले हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट ने SAHARA-SEBI FUND से 5000 करोड़ रुपये निवेशकों को भुगतान के लिए जारी करने की अनुमित दे दी है. 

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