राजधानी दिल्ली से बनारस की दूरी 815 किलोमीटर है. शायद यही वजह है कि हम जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) और दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) से आगे कुछ देख नहीं पाते. निगाह इतनी दूर पहुंचने से पहले ही हांफते हुए कहीं बैठ जाती है. फिर जब चीजों को राष्ट्रवाद और देशभक्ति का रंग दे दिया जाता है, तो हम बदहवासी से कूदना-फांदना शुरू कर देते हैं. इस बार ऐसा न हो, इसलिए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) पर अभी ध्यान देने की जरूरत है.
BHU में लड़कियों को वाईफाई इसलिए नहीं दे रहे कि कहीं वे पॉर्न न देख लें
वाईफाई, नॉनवेज मांगने पर बीएचयू गर्ल्स को धमकियां - 'रेप कैसे होता है, बता देंगे'.

बीएचयू में विवाद पनप रहा है. लड़कियों के लिए यहां के इकलौते कॉलेज 'महिला महाविद्यालय' (एमएमवी) की लड़कियां जेंडर के आधार पर भेदभाव झेल रही हैं. वो लंबे समय से अपनी मांग विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने रख रही हैं, लेकिन पहली बार उन्हें हाईजैक होने का डर सता रहा है. क्योंकि हम उस दौर में हैं, जब टॉयलेट का फ्लश न चलाने की बात भी राष्ट्रवाद पर जाकर खत्म होती है. इन पर भी यही खतरा है.
अपनी परेशानी बताते हुए आखिरी सेमेस्टर की निवेदिता कहती हैं कि एमएमवी हॉस्टल की लड़कियों को अपने कमरों में वाई-फाई चलाने की इजाजत नहीं है. उन्हें कनेक्शन ही नहीं दिया गया. जबकि लड़कों और लड़कियों के कई दूसरे हॉस्टल्स में इसकी सुविधा है. हमें निवेदिता से एमएमवी हॉस्टल का हाल जानने को मिला कि "लड़कियों को हॉस्टल देने से पहले उनके मां-बाप को बुलाकर नियम दिखाए जाते हैं और उनके दस्तखत लिए जाते हैं कि अगर उनकी बेटी ने कोई नियम तोड़ा, तो उसे हॉस्टल से निकाला जा सकता है."
हमें लगा कि किसी लड़की को हॉस्टल से निकाले जाने की सजा का गुनाह भी इसके मुताबिक होगा. पर ऐसा नहीं है. 8 बजे के बाद हॉस्टल से बाहर रहना, सरकारी नीतियों के खिलाफ बोलना या किसी तरह के विरोध प्रदर्शन में भाग लेना एक लड़की को हॉस्टल से बाहर करवा सकता है. बकौल प्रशासन, 'आपकी डिग्निटी आपके हाथ में है.' लेकिन प्रशासन इस बात का जवाब नहीं देता कि ऑनलाइन लाइब्रेरी 24 घंटे क्यों नहीं खुल रही है. प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया का खूब प्रचार किया.

महिला महाविद्यालय की स्टूडेंट निवेदिता
एमएमवी स्टूडेंट्स की समस्याएं हाईलाइट तब हुईं, जब जेडीयू नेता अली अनवर ने राज्यसभा में इनका जिक्र किया. अभी तक लिखकर अपनी बात कहने वाली इन लड़कियों ने हाल ही में मीडिया से बात करने की ज़हमत उठाई. इसके दो-तीन दिनों में ही बाकी बीएचयू का व्यवहार इनके प्रति बदल गया. भेदभाव के बाद अब लानतें भी इनके हिस्से में हैं.
एक और स्टूडेंट मिनेषी बताती हैं, "लड़कों की मेस में नॉन-वेज का शेड्यूल है, लेकिन अगर हम खाना चाहें, तो हमें बाहर से मंगाना पड़ता है. मेरा किसी आइडियोलॉजी से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हॉस्टल में हम मॉरल पुलिसिंग झेल रहे हैं.' वाई-फाई न देने के पीछे प्रशासन का ये डर बताया जाता है कि लड़कियां कहीं पॉर्नोग्राफी न देख लें, लेकिन बीएचयू के दूसरे हॉस्टल्स के लड़के और लड़कियां इस मॉरल पुलिसिंग से मुक्त हैं. नॉन-वेज और पॉर्न जैसी चीजें हमारे यहां कैरेक्टर डिफाइन करने के काम आती हैं. एमएमवी की लड़कियों के साथ इसकी शुरुआत हो चुकी है.
https://www.youtube.com/watch?v=NUFguQXHGwQ&feature=youtu.beनाम जाहिर न करने की शर्त पर एक स्टूडेंट ने बताया कि उनके हॉस्टल में 8 बजे के बाद बाहर जाने की इजाजत नहीं है. इस स्टूडेंट को 'बेटर हाफ, अदर हाफ' (हाल में आए एक विज्ञापन की पंक्ति जिसमें महिलाओं की पुरुषों से बराबरी की बात कही गई) से कोई लेना-देना नहीं है. इसकी तरह ही एमएमवी की सैकड़ों ऐसी लड़कियां हैं, जिन्हें इससे कोई तकलीफ नहीं कि दूसरे हॉस्टल के लड़के-लड़कियों को 10 बजे तक बाहर रहने की इजाजत क्यों है. वो बस इतना चाहती हैं कि 8 बजे के बाद जब बीएचयू में कोई इवेंट हो, तो उन्हें अपने कमरों में कैद न रहना पड़े.
ग्रेजुएशन कोर्स वाले एमएमवी में करीब एक हजार लड़कियां पढ़ती हैं. इनमें से कई हॉस्टल में रहती हैं. हॉस्टल की मेस में इन्हें शॉर्ट्स पहनकर भी जाने की इजाजत नहीं है. ये तो वो जमात भी नहीं है, जो बिकिनी और बुरके की बहस में खर्च होती है. ये लड़कियां सिर्फ तीन साल के लिए एमएमवी में आई हैं, जो समानता चाहती हैं. अपने हिस्से का हक. सीधी सी बात है कि जब दूसरी लड़कियों के हॉस्टल के दरवाजे 10 बजे बंद होते हैं, तो इन पर पाबंदी क्यों?
फर्स्ट और सेकेंड इयर की लड़कियां अगर 10 बजे के बाद फोन पर बात करना चाहें, तो इन्हें किसी कर्मचारी के सामने स्पीकर मोड पर बात करनी पड़ती है. ये बताते हुए ये लड़कियां कोई विशेषण इस्तेमाल नहीं करती हैं. वो खुद भौंचक हैं कि कोई आपकी बातें कैसे मॉनीटर कर सकता है. जवाब मांगने पर वीसी साहब चेहरे पर गहरे दार्शनिक भाव लाकर कहते हैं, "मुझे लगता है कि संसद से बड़ी कोई संस्था देश में नहीं है और इसलिए संसद सदस्य होना भी बड़ी प्रतिष्ठा और बड़े गौरव की बात है. तो सांसदों ने संसद में अगर कोई चीज उठाई है, तो उस पर बात करने के पहले भी मैं बहुत सहज नहीं हूं.'

बीएचयू के वीसी गिरीश त्रिपाठी
ये बात वो शख्स कह रहा है, जिसके गर्वित संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उसे सिखाया है कि विश्वविद्यालय किसी एक विचारधारा के आधार पर नहीं चलाए जा सकते. कितनी अच्छी बात है. पर इसका उन लड़कियों से कोई लेना-देना है क्या? गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने 40 साल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बिताए हैं. उन्होंने नहीं बताया कि इतने वक्त में उन्होंने इस संस्था से क्या सीखा.
एमएमवी की लड़कियों से बात करके आपको खुद डर लगने लगेगा. न जाने किन शहरों, कस्बों, गांवों, परिवारों से आईं इन लड़कियों के पुतले फूंके जा रहे हैं. उन्हें धमकियां दी जा रही हैं. उन्हें बताया जा रहा है कि 'रेप लड़कियों का ही होता है! रेप क्या होता है, समझा देंगे तुम्हें! बीएचयू बीएचयू ही रहेगा!'
यही हाल डीयू की गुरमेहर कौर के साथ हुआ है. उन्होंने एक विषय पर अपनी राय रखी और उन्हें गैंगरेप और गोली मारने की धमकियां दी गईं. धमकाने वाले आमतौर पर सैनिकों और उनके परिवार के लोगों की शहादत के लॉजिक अपनी बातें मनवाने के लिए खूब देते रहे हैं लेकिन यहां ये भी भूल गए कि उसके आर्मी ऑफिसर पिता ने भी अपनी जान देश के लिए दी. गुरमेहर को गद्दार कहा गया. पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया. अब जब वो चुप हो चुकी हैं तो भी उनका चरित्र हनन किया जा रहा है. दो दिन से सोशल मीडिया पर एक वीडियो को गुरमेहर का वीडियो कहकर प्रचारित किया जा रहा है जिसमें एक लड़की अपनी एसयूवी में नुसरत फतेह अली खान के गाने पर नाच रही है और पानी की बॉटल हाथ में ले रखी है. इस वीडियो से आभास ये दिया जा रहा है कि ये गुरमेहर कौर मौज मस्ती करने वाली लड़की है, अय्याश है, गाने सुन रही है, मर्द दोस्तों की मौजूदगी में मस्ती वाला डांस कर रही है और शराब पी रही है. असल में ये छह महीने से भी पुराना है. दुबई का बताया जाता है. इसमें दिख रही लड़की कौन है पता नहीं. 22 लाख लोग इसे देख चुके हैं. किसी महिला को मर्दवादी मानसिकता किस हद तक अपने कब्जे में रखना चाहती है उसका ये उदाहरण है. जब वो एेसा नहीं कर पाती तो लड़कियों को चेतावनी देती है, पीटती है, रोकती है, रेप की धमकी देती है और जब वे न डरें तो उनका चरित्र हनन करती है.

इंडिया टुडे के साथ बातचीत के दौरान महिला महाविद्यालय की छात्राएं
एमएमवी की लड़कियां जब बीएचयू में हो रही किसी पॉलिटिकल डिबेट या प्रोटेस्ट का हिस्सा बनना चाहती हैं, तो इन पर मॉरैलिटी का कंबल डालकर नियमों के डंडे से दरेरा दिया जाता है. इनमें से किसी की भी ख्वाहिश नेतागिरी करने की नहीं है. उन्हें खाक फर्क नहीं पड़ता, बीएचयू में छात्रसंघ चुनाव हों या न हों. वो बस ऐसी बातें नहीं सुनना चाहतीं कि 'एनसीसी में मत जाइए, आपकी इज्जत खराब हो जाएगी.'
बीते दिनों जिन मीडिया संस्थानों ने एमएमवी का कवरेज किया, उनकी रिपोर्ट्स विवादों में हैं. एक रिपोर्ट में वीसी त्रिपाठी का भी जिक्र है. उनकी वाकपटुता आपका मन मोह लेगी. लड़कियों के आरोपों पर वो कहते हैं, "जितनी बातें कही गईं, ये प्रथम दृष्टया गलत हैं. ये झूठ हैं या नहीं, ये मैं नहीं कह सकता."
काशी में तीन दिनों तक पोलिटिकल चमक-धमक रहने वाली है और डर है कि तब तक इन लड़कियों की आवाज नहीं सुनाई देगी.
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उस वीडियो का सच, जिसमें गुरमेहर कौर को शराबी बताया जा रहा है