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43 साल पहले हुए मुरादाबाद दंगों पर UP सरकार का बड़ा फैसला, 83 लोगों की हुई थी मौत

'300' मौतों का भी दावा किया जाता है. जांच आयोग ने नवंबर 1983 में ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.

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दंगों के पीड़ित लोग. (फोटो- इंडिया टुडे)

यूपी के मुरादाबाद में 43 साल पहले हुए दंगों की जांच रिपोर्ट जल्द ही सार्वजनिक होने वाली है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 12 मई को कहा था कि राज्य विधानसभा में रिपोर्ट पेश की जाएगी. सरकारी आंकड़ा है कि इस दंगे में कम से कम 83 लोगों की जान गई थी. 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. तब राज्य में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. ये दंगा ईद के दिन शुरू हुआ था. जांच आयोग ने नवंबर 1983 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने कभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया.

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मुरादाबाद दंगों की पूरी कहानी

पश्चिमी यूपी का शहर मुरादाबाद पीतल के कारोबार के लिए मशहूर है. यहां के पीतल के प्रोडक्ट विदेशों में भी निर्यात होते हैं. शहर में हिंदू-मुस्लिम आबादी करीब बराबर है. 13 अगस्त 1980 की सुबह खास थी. ईद का दिन था. लोग एक-दूसरे को बधाई देने और नमाज पढ़ने ईदगाह में जुट रहे थे. सुबह 9 बजे 60 से 70 हजार लोग नमाज के लिए जुटे थे. ईदगाह के भीतर इतने लोगों के लिए जगह नहीं थी, तो हजारों लोग ईदगाह बाउंड्री के बाहर भी खड़े थे. परंपरा के मुताबिक, सड़कों के किनारे अलग-अलग संगठनों की दुकानें भी लगी थीं. हिंदू-मुस्लिम, राजनीतिक दल वाले भी दुकान लगाते थे.

कुछ देर बाद वहां नमाज शुरू हुई. तभी शोर होने लगा. शोर इसलिए हुआ क्योंकि एक सूअर ईदगाह में घुस गया और नमाजियों की तरफ बढ़ने लगा. मुसलमान सूअर को हराम मानते हैं. नमाज अदा कर रहे लोगों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने वहां खड़ी पुलिस से सूअर को भगाने के लिए कहा. लेकिन पुलिसवालों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. इसी वजह से पुलिस और वहां मौजूद लोगों के बीच बहस शुरू हो गई. उन्होंने पुलिसवालों पर आरोप लगाया कि उन्हीं के कारण वहां सूअर घुस आया. बहस पत्थरबाजी में बदल गई. एक पत्थर एसएसपी के सिर पर जा लगा. जल्द ही यह आम लोगों और पुलिस के बीच की झड़प बन गई. आरोप लगा कि पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी.

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हालांकि ये सभी आरोप हैं. फायरिंग कैसे शुरू हुई, लोगों की मौतें कैसे हुईं, इसके अलग-अलग वर्जन हैं. कुछ लोग ये भी आरोप लगाते हैं कि पहले भीड़ की तरफ से ही फायरिंग हुई और बगल के पुलिस स्टेशन को आग में झोंक दिया गया था.

145 लोगों का पोस्टमार्टम हुआ

इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) पत्रिका की सितंबर 1980 की एक रिपोर्ट बताती है कि हिंसा शुरू होने के बाद लोग एक-दूसरे की दुकान लूटने लगे थे. मामला इतना बिगड़ गया कि 13 अगस्त को ही CRPF और BSF को शहर में तैनात कर दिया गया. पहले दिन मामला मूल रूप से पुलिस और मुस्लिम समुदाय के बीच झड़प का था. लेकिन एक दिन बाद यानी 14 अगस्त को हिंदू संगठनों के कुछ लोग सक्रिय हो गए. वे भी मुस्लिमों की दुकानों को लूटने लगे. इस तरह ये पूरी तरह सांप्रदायिक दंगे में बदल गया.

इंडिया टुडे मैगजीन की नवंबर 1980 में छपी एक रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से लिखा गया था कि दंगों में मारे गए 145 लोगों का पोस्टमार्टम किया गया था. कई मौतों की रिपोर्ट नहीं हुई. हिंसा शुरू होने के बाद एक महीने से ज्यादा समय तक पूरे जिले में कर्फ्यू लागू रहा. स्कूल-कॉलेज बंद रहे.

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अक्टूबर की शुरुआत में जैसे ही कर्फ्यू में ढील दी गई, फिर से दंगे शुरू हुए गए. रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौरान 14 लोगों की मौत हुई. जिले में तीसरी बार कर्फ्यू लगाया गया. कर्फ्यू हटने के बाद भी माहौल ऐसा हो गया कि लोग दूसरे समुदाय के मोहल्ले में जाने से डरते थे. कर्फ्यू लगने के पहले पांच दिनों में 1300 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से आधे कर्फ्यू का उल्लंघन करने वाले थे. अगस्त में शुरू हुई हिंसा नवंबर तक अलग-अलग इलाकों में होती रही.

पूर्व पत्रकार और पूर्व विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने इस घटना को तब कवर किया था. उन्होंने अपनी किताब 'रायट आफ्टर रायट' में इस घटना को "सांप्रदायिक" पुलिस फोर्स द्वारा किया गया "नरसंहार" बताया था. एमजे अकबर ने लिखा था, 

"मुरादाबाद में जो हुआ वो हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं था. बल्कि सांप्रदायिक पुलिस द्वारा मुस्लिमों का नरसंहार था. पुलिस ने बाद में इस नरसंहार को ढकने के लिए इसे हिंदू-मुस्लिम दंगा बना दिया."

राज्य सरकार ने बाद में एक जांच आयोग का गठन किया था. एकमात्र सदस्य वाले इस आयोग में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस एमपी सक्सेना को इसमें शामिल किया गया. आयोग ने 20 नवंबर 1983 को रिपोर्ट सौंपी थी. हालांकि ये रिपोर्ट कभी सामने नहीं आई. इस बीच कई लोग हिंसा में मरने वालों की संख्या 300 भी बताते रहे. अब जाकर इस 40 साल पुरानी रिपोर्ट का इंतजार खत्म होने वाला है.

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