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सुलेमान बेकरी केस: मौलाना के बेटे की गवाही, कहा- पुलिस पिता को ले गई थी, शव पर चोट के निशान थे

कासिम ने कहा कि वो अब पुलिसकर्मियों की पहचान नहीं कर सकते क्योंकि घटना काफी साल पुरानी है.

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सुलेमान बेकरी केस 1993 का है. (फोटो-आजतक)

इस 18 अक्टूबर को 1993 के सुलेमान बेकरी केस (Suleman Bakery Case) में सुनवाई हुई. मामले में चश्मदीद गवाह के तौर पर पेश हुए अबदुल्लाह कासिम. दंगों के दौरान पुलिस कर्मियों ने कथित तौर पर बेकरी के पास बने मदरसा के एक मौलाना की हत्या कर दी थी. कासिम उन्हीं मौलाना के बेटे है. 9 जनवरी 1993 को जब मौलाना को पुलिस ने हिरासत में लिया, तब कासिम वहीं मौजूद थे. गवाही देते हुए कासिम ने 28 साल पहले हुई घटना का ब्योरा दिया. तब वो करीब 10 से 12 साल के होंगे.

कासिम ने अदालत के सामने दावा किया कि उनके पिता के मृत शरीर पर कई गहरी चोट के निशान थे. कासिम ने कहा,

शहर में कर्फ्यू था. उस दिन दोपहर करीब एक बजे हम कमरे में बैठे थे. तभी फायरिंग हुई और हमारे दरवाजे में गोली लगी. कुछ देर बाद 10 से 15 पुलिसकर्मी दरवाजा तोड़कर कमरे में घुसे. उनमें से कुछ सादे कपड़ों में थे, तो कुछ वर्दी में. हम सभी डरे हुए थे. पुलिस पूछ रही थी कि हथियार कहां हैं. पुलिसकर्मियों ने मेरे पिता और उनके दो छात्रों पर लाठियों से हमला करना शुरू कर दिया. उनमें से एक बेहोश हो गया था. इसके बाद वो मेरे पिता को ले गए.

उन्होंने आगे कहा,

मुझे लगा कि मेरे पिता को जेल ले जाया गया है. चार दिन बाद मुझे एक कब्रिस्तान में बुलाया गया. वहां मैंने अपने पिता का शव देखा. उनकी छाती और सिर पर चोट के निशान थे.

कासिम ने कहा कि वो अब पुलिसकर्मियों की पहचान नहीं कर सकते क्योंकि घटना काफी साल पुरानी है और तब वो एक बच्चे थे. उन्होंने अदालत को आगे बताया,

मेरे पिता 1980 में शहर आए थे और दक्षिण मुंबई के दारुल उलूम इमदादिया मदरसे में पढ़ाते थे. मैं खुद भी उनसे पढ़ता था. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये छठवीं बार था जब अब्दुल्ला अदालत में आए थे. इससे पहले बिना गवाही लिए ही उन्हें वापस लौटना पड़ा था. इस मामले में एक पूर्व बेकरी कर्मचारी भी गवाही दे चुका है. उसने बताया था कि कैसे पुलिस ने उसके सहकर्मी शमशाद को खड़े होने के लिए कहा और फिर उसे गोली मार दी.

बता दें 2001 में सुलेमान बेकरी के कार्यकर्ता और मदरसे के छात्रों ने दंगों की जांच के लिए हलफनामा दायर किया था. तभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मौलाना की हत्या का मामला दर्ज किया गया था. तब मामले में 17 पुलिसकर्मियों का नाम सामने आया था. अब उनमें से केवल सात मुकदमों का सामना कर रहे हैं. बाकियों को सबूत की कमी का हवाला देकर बरी कर दिया गया. 

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