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फिल्म रिव्यू: सैटेलाइट शंकर

ये फिल्म एक एक्सपेरिटमेंट टाइप कोशिश है, जो सफलता और असफलता के बीच सिर्फ कोशिश बनकर रह जाती है.

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फिल्म 'सैटेलाइट शंकर' के एक सीन में सूरज पंचोली. इस फिल्म को इरफान कमाल ने डायरेक्ट किया है.
'हीरो' से डेब्यू करने के चार साल सूरज पंचोली की दूसरी फिल्म आई है. नाम है 'सैटेलाइट शंकर'. और ये कोई साइंस-फिक्शन नहीं है. इसे बनाया है इरफान कमाल ने. ये उनकी दूसरी फिल्म है. इससे पहले 2010 में वो ‘थैंक्स मां’ नाम की एक क्राइम ड्रामा फिल्म बना चुके हैं. पहली वाली तो ठीक थी. अब दूसरी भी देख ली है. कैसी है नीचे बता रहे हैं.
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कहानी
कश्मीर में एक जवान शंकर तैनात है. उसके पास खिलौना है, जिस पर भी भगवान शिव की फोटो लगी हुई है. ये लड़का कई सारी आवाज़ें निकालता है. टेलीपैथी जैसा भी कुछ करता है. मतलब मस्ती में रहता है. एक दिन पाकिस्तान के साथ हुई फायरिंग में वो हल्का घायल हो जाता है. सीनियर कहता है रेस्ट करो. लेकिन शंकर को अपनी मां का ऑपरेशन कराने पोलाची (तमिलनाडु) जाना है. वो अपने सीनियर को सैनिक शपथ देता है कि सातवें दिन ड्यूटी जॉइन कर लेगा. जो दोस्त खुद घर नहीं जा पाए, वो शंकर को अपनी फैमिली के गिफ्ट रास्ते में डिलीवर करने के लिए दे देते हैं. वो कश्मीर से कन्याकुमारी वाली ट्रेन में चढ़ता है. लेकिन यहां से वो एक के बाद एक लोगों की मदद करता जाता है. कभी ट्रेन एक्सीडेंट होने से बचाता है, कभी जर्नलिस्ट की मदद करता है, तो कभी ट्रक ड्राइवर के चक्कर में लोगों से मारपीट करता है. इस सारे तामझाम के बीच उसे उस लड़की से भी मिलना है, जिसे उसकी शादी के लिए मां ने चुना है. और ये सब निपटाने के बाद उसे पूरा इंडिया लांघकर सातवें दिन ड्यूटी भी जॉइन करनी है. और इसमें उसकी मदद करता है पूरा देश. कैसे? यही तो फिल्म है.
ये रहा अपना सैटेलाइट शंकर, जो नाच-गाकर और मस्ती करके कैंप में लोगों का मन बहलाए रखता है.
ये रहा अपना सैटेलाइट शंकर, जो नाच-गाकर और मस्ती करके कैंप में लोगों का मन बहलाए रखता है.


एक्टिंग
सूरज पंचोली ने फिल्म में सैनिक शंकर का रोल किया है. फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस ईमानदार लगती है. लेकिन इसमें उनकी कोशिश भी दिखती है. कुछ एक सीन्स में वो ओवर-एक्साइटेड हो जा रहा थे. लेकिन इस चीज़ को को उनका डांस और एक्शन बहुत हद तक बैलेंस करने की कोशिश करता है. मेघा आकाश ने प्रमिला यानी उस तमिलियन लड़की का रोल किया है, जिससे शंकर को मिलना था. सबसे अच्छी बात कि मेघा को उसी जगह (तमिलनाडु के किसी इलाके से) से रखा गया है, जहां से असल में हैं. इसलिए उनकी तमिल मिक्स्ड हिंदी सुनने में भी मज़ा आता है. लेकिन उनके हिस्से फिल्म में समय और स्क्रीनस्पेस नहीं था. वो लैंग्वेज बैरियर के बावजूद बहुत कंफर्टेबल और कॉन्फिडेंट लगती हैं. इस फिल्म के बाद आप उन्हें किसी और फिल्म में कायदे के रोल में देखना चाहते हैं. पलोमी घोष ने उस ऑनलाइन रिपोर्टर का रोल किया है, अपने रास्ते में शंकर जिनकी दो दफे मदद करता. बदले में रिपोर्टर उन्हें सोशल मीडिया पर देश का स्टार बना देती है. लेकिन रिपोर्टर का ये किरदार अतिश्योक्तियों से भरा हुआ है. लेकिन इसमें पलोमी की गलती नहीं है. उन्होंने अपना कैरेक्टर वैसे प्ले किया है, जैसे इंस्टिट्यूट से निकलने के बाद कोई मीडिया स्टुडेंट होता है. एक्साइटमेंट से भरपूर.
फिल्म की सबसे खास बात लीडिंग लेडी मेघा आकाश.
फिल्म की सबसे खास बात लीडिंग लेडी मेघा आकाश.

फिल्म के बाकी विभाग
फिल्म के डायलॉग्स के अपनी बात आप तक पहुंचा देते हैं. लेकिन इस दौरान ऐसा कुछ नहीं कहते है, जो यहां आपको बताने के लिए थिएटर में नोट किया जा सके. ये फिल्म देशभक्त दिखती है, बोलकर नहीं बताती है. ये बात डायलॉग्स और फिल्म दोनों के फेवर में जाती है.
सिनेमटोग्रफी- इस फिल्म को देश के 10 से ज़्यादा राज्यों में शूट किया गया है. हमें अलग-अलग लोकेशंस दिखते हैं. लेकिन कैमरा भी फिल्म के सब्जेक्ट के आसपास ही रहता है. ज़्यादा एक्सप्लोर करने की कोशिश नहीं करता है.
अपना हीरो शंकर, जो लोगों की मदद करने के चक्कर में जब वी मेट का गीत बन जाता है. इसके ट्रेन छूटने बंद ही नहीं हो रहे.
अपना हीरो शंकर, जो लोगों की मदद करने के चक्कर में 'जब वी मेट' का गीत बन जाता है. इसके ट्रेन छूटने बंद ही नहीं हो रहे.


म्यूज़िक तो है फिल्म में. लेकिन अभी ऐसा़ी कोई लाइन या धुन नहीं याद, जो आपसे शेयर की जा सके. दो तीन गाने हैं फिल्म में, जो फिल्म का बहुत नुकसान नहीं करते. बैकग्राउंड म्यूज़िक फिल्म के दूसरे हिस्से में थोड़ा लाउड है. लेकिन वो लगातार बदलता रहता है. इसलिए फिल्म से हटकर आपका ध्यान कई बार नेप्थ्य में चला जाता है. फिल्म का एक रोमैंटिक गाना आप यहां सुन सकते हैं:

फिल्म की अच्छी बातें
'सैटेलाइट शंकर' वो बात कहती है, जिसे अब तक किसी ने नहीं कहा. सेना के नाम पर युद्ध और गोली-बारूद की बहुत बातें हो चुकी हैं. यहां उससे इतर बात हो रही है. एक आर्मी मैन की कहानी, जो अपने युद्ध के मैदान से बाहर है. हमें उसकी लाइफ का दूसरा पहलू, जो काफी मानवीय है, देखने को मिलता है. सिर्फ आर्मी ही नहीं, इस फिल्म के रास्ते में जो भी आता है, ये उसे थैंक यू बोलकर ही आगे बढ़ती है. और यहां मज़ाक नहीं हो रहा है. ये फिल्म में लिटरली होता है. कुल मिलाकर 'सैटेलाइट शंकर' प्यारी बातें कहना चाहती है. ये बातें आपका दिमाग तो नहीं समझ पाता लेकिन दिल पचा लेता है. फिल्म की दूसरी अच्छी बात है इसकी लव स्टोरी, जो बिलकुल छोटी सी है. लेकिन जितनी भी देर है काफी स्वीट है. ऑर्गैनिक लगती है. और इसमें मेघा आकाश की परफॉर्मेंस का बहुत बड़ा हाथ है.
न्यूज़ रिपोर्टर के रोल में पलोमी घोष. ये फिल्म में जो भी करती हैं शंकर का एहसान चुकाने के लिए करती हैं.
न्यूज़ रिपोर्टर के रोल में पलोमी घोष. ये फिल्म में जो भी करती हैं शंकर का एहसान चुकाने के लिए करती हैं.


फिल्म की बुरी बातें
इसकी लंबाई और रफ्तार. ये फिल्म 2 घंटे 20 मिनट की है. और पहले सवा घंटे तो ऐसा निकलते हैं, जैसे घड़ी की सुई रुक गई हो. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये कुछ जगहों पर बहुत ऑब्वियस चीज़ें करती है. कई बार तो बहुत इल्लॉजिकल भी हो जाती है, जो खटकता है. हमारे दिमाग में हिंदी फिल्मों ने आज तक जितनी भी क्लीशे चीज़ें गढ़ी हैं, ये उन सबको जी लेना चाहती है. फिल्म शुरू होती है, तो लगता है कि कहीं तो पहुंचेगी. कुछ तो नया दिखाएगी. लेकिन नहीं, ये बस अपने जवान को कैंप तक पहुंचाकर रफूचक्कर हो लेती है. यहां काफी निराशा होती है. इस फिल्म में बहुत सारे सोशल इशूज़ पर बात करने की कोशिश की गई है. और ये मामले बहुत ही आम हैं. लेकिन इनमें से कोई भी सीन या सीक्वेंस ऐसा नहीं है, जो आप पर कोई असर डाल पाए. फिल्म की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि पेपर पर जो काफी क्लीयर लग रहा था, वो 77 एमएम की स्क्रीन पर हॉचपॉच सा हो हो गया.
फिल्म के एक सीन में सूरज पंचोली और मेघा आकाश यानी शंकर और प्रमिला.
फिल्म के एक सीन में सूरज पंचोली और मेघा आकाश यानी शंकर और प्रमिला.


ओवरऑल एक्सपीरियंस
फिल्म का टाइटल खुद को भले ही तरीके से जस्टीफाई नहीं कर पाता लेकिन फिल्म अपनी समझ के हिसाब से अपनी बात कह देती है. अगर इसे एंटरटेनमेंट वाले लेवल पर देखेंगे, तो थोड़ी ढीली लगेगी. लेकिन इतनी भी नहीं कि आप पक जाएं. लीक से हटकर जो बात ये फिल्म कह रही है, यहां वो अपने कुछ पॉइंट्स कमाती है. लेकिन आगे वो इस सब्जेक्ट के साथ जो करती है, उसके लिए इसके नंबर कटने चाहिए. मतलब एक एक्सपेरिटमेंट टाइप कोशिश है, जो सफलता और असफलता के बीच सिर्फ कोशिश बनकर रह जाती है. महीने की शुरुआत है, देखने नहीं देखने का फैसला अपनी जेब के हिसाब से करिए. जाते-जाते बस ये जान लीजिए कि फिल्म की ऑनलाइन स्ट्रीमिंग पार्टनर ज़ी5 है.


 

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