तमिलनाडु में चेन्नई के पास सैमसंग का एक बड़ा प्लांट है. इस कारख़ाने में घरेलू उपकरण बनाए जाते हैं. वहां के कर्मचारी 9 सितंबर से हड़ताल पर हैं. इनमें प्लांट के स्थायी कर्मचारी भी शामिल हैं. उनकी मांग है कि कंपनी उनके संघ को मान्यता दे, वेतन सुधार पर बातचीत शुरू करे और काम की स्थितियों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करे. सोमवार, 16 सितंबर को लगभग 120 सैमसंग कर्मचारियों ने कांचीपुरम में ज़िला कलेक्टर के कार्यालय तक मार्च भी किया था. हालांकि, बिना अनुमति के प्रदर्शन के चलते उन्हें हिरासत में ले लिया गया और बाद में रिहा कर दिया.
सैमसंग के प्लांट में सबसे बड़ी हड़ताल, कंपनी ने कहा - 'काम नहीं करोगे, तो न पैसे मिलेंगे, न नौकरी'
वर्कर्स की मांग है कि कंपनी उनके संघ को मान्यता दे, वेतन सुधार पर बातचीत शुरू करे और काम की स्थितियों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करे.


अब सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स ने दक्षिण भारत में अपने हड़ताली कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि अगर वो विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे, तो उन्हें वेतन नहीं मिलेगा और नौकरी से भी हाथ धो बैठेंगे.
सरकार के लिए द्वंदये प्लांट चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में है. यहां सैमसंग रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन और टेलीविज़न सहित कई तरह के घरेलू उपकरण बनााए जाते हैं. यहां से कंपनी को कुल राजस्व का लगभग एक-तिहाई हिस्सा आता है.
हड़ताल में प्लांट के 1,723 स्थायी कर्मचारियों में से लगभग 1,350 शामिल हैं. ये सैमसंग में भारत का सबसे बड़ी हड़ताल है. फ़ैक्ट्री में सबसे ज़्यादा संख्या कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी हैं. लगभग पांच हजार कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी हैं. वो हड़ताल का हिस्सा नहीं हैं. मगर इस हड़ताल से उत्पादन पर जरूरत असर पड़ा है.
इस हड़ताल का समर्थन सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) कर रही है, जो CPI(M) से जुड़ा एक मज़दूर संगठन है. कई और मज़दूर समूहों ने भी प्रदर्शन में जुड़ने की घोषणा की है.
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एक तरफ़ ये हड़ताल की खबर है, तो दूसरी तरफ़, तमिलनाडु सरकार राज्य में विदेशी निवेश लाने के लिए आक्रामक रूप से जुटी हुई है. हाल ही में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी कंपनियों से 7,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की डील की है. तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK को डर है कि अगर प्रदर्शन को समर्थन मिला, तो सैमसंग और उसके कर्मचारियों के साथ-साथ कंपनी और राज्य अधिकारियों के बीच तनाव बढ़ा सकता है.
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा,
यहां सरकार के सामने चुनौती है कि कोई भी मुख्य मुद्दा (जैसे वेतन बढ़ाने की मांग) नहीं है, जिसमें सरकार हस्तक्षेप करके समाधान कर सके. कंपनी मज़दूरों की यूनियन बनाने की मुख्य मांग से भी सहमत नहीं है, क्योंकि उन्हें इसके पीछे किसी साजिश का संदेह है. सैमसंग का मानना है कि CITU समस्याओं को बढ़ा रही है, क्योंकि 2007 में प्लांट शुरू करने के बाद से उन्हें पहले कभी ऐसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा था.
CITU के राज्य अध्यक्ष ए सुंदरराजन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि जब से फ़ैक्ट्री है, तब के 16 साल बाद यूनियन बनाने की घोषणा की. इससे पता चलता है कि प्रबंधन ने उन्हें मजबूर कर दिया.
सैमसंग इंडिया कर्मचारी संघ का गठन इसी साल के जून में हुआ था और इसकी मान्यता की मांग को कंपनी के प्रबंधन ने प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. सुंदरराजन ने आरोप लगाया कि कंपनी ने यूनियन बनाने से रोकने के लिए डराने-धमकाने की रणनीति अपनाई है, जिसमें छुट्टी देने से मना करना और कर्मचारियों का तबादला करना शामिल है.
शुरुआत में सैमसंग यूनियन के साथ जुड़ने के लिए अनिच्छुक था, क्योंकि CITU से इसका जुड़ाव कंपनी के लिए चिंता का विषय था.
सैमसंग ने पिछले हफ्ते एक जिला अदालत में विरोध करने वाले यूनियन पर मुक़दमा दायर किया. कारख़ाने में और उसके आसपास नारेबाज़ी और भाषण देने पर रोक लगाने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा की मांग की. लेकिन जज ने त्वरित समाधान करने की बात कही.
अब सैमसंग इंडिया की HR टीम ने कुछ हड़ताली कर्मचारियों को एक ईमेल लिखकर कहा है कि अगर वो इस ‘अवैध' हड़ताल में शामिल होते हैं, तो वेतन के हक़दार नहीं होंगे.
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